ऑल वेदर रोडः रोज गहरे होते सवाल
भयावह है पर्यावरणविद् की सच होती दिख रही आशंकाएं
प्रमोद शाह का आलेख
अगस्त-2018 से उत्तराखंड में चारधाम परियोजना का काम जमीन पर दिखाई देने लगा। पहली नजर में तो यह अचंभित और लुभाने वाली परियोजना है। इसमें कुल 889 किमी. लंबी सड़क चौड़ाई 12 मीटर होनी है। 11700 करोड़ के बजट में तैयार होनी हैं। लेकिन जैसे-जैसे इसके निर्माण की अवधि पास आती जा रही है, पर्यावरण वादियों की आशंकाएं सच होती दिख रही हैं। इन आशंकाओं का सच हो जाना बहुत भयावह है ।
पूर्व में एनजीटी ने सड़क निर्माण कार्य में बेतहाशा पेड़ काटने के आधार पर इस परियोजना पर रोक लगा दी थी। लेकिन तब तक 640 किमी. सड़क लगभग बन चुकी थी और 72 92 करोड़ से अधिक रुपया खर्च किया जा चुका था। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय ने एक हाईपावर कमेटी का गठन कर सड़क निर्माण के दौरान पर्यावरण और इकोलॉजी पर पड़ रहे प्रभाव का आंकलन करने तथा निर्माण प्रक्रिया को जांचने के लिए कमेटी का गठन किया था।
इस हाई पावर कमेटी में उत्तराखंड के पर्यावरण से गहरा संबंध रखने वाले रवि चोपड़ा को भी शामिल किया गया है। अक्टूबर 2019 में इस कमेटी ने परियोजना निर्माण का पर्यावरणीय आंकलन किया। कमेटी ने 13 अगस्त 2020 रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय में पेश करते हुए कहा कि इस सड़क निर्माण को 12 मीटर चौड़ा बनाने की आवश्यकता नहीं है। निर्माण से जमीन पर जो परिस्थितिकी प्रभाव उत्पन्न हो रहे हैं। वह सड़क से मिलने वाली भौतिक सुविधा से कई गुना अधिक कष्टप्रद पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण की समस्या को उत्पन्न करने वाले हैं। भविष्य में हिमालय में सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर रखना का सुझाव भी कमेटी ने दिया है। जबकि इससे पूर्व एक अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय हिमालय क्षेत्र में सड़क निर्माण की चौड़ाई 8 मीटर रखने की हिदायत कर चुका है ।
जमीनी हकीकत और बढ़ती दुश्वारियां, सड़क निर्माण के ड्राइंग और तकनीकी पक्ष को यदि हम छोड़ भी दें तो जमीन पर अभी से ही ऑल वेदर रोड के गंभीर प्रभाव दिख रहे हैं। पर्यावरण और भू-गर्भ शास्त्र की बहुत मामूली समझ रखने वाले व्यक्ति भी इसे गंभीर खतरे के रूप में देख रहे हैं। निर्माण कार्य को तेजी से करने के दबाव में पूरे सड़क निर्माण की प्रक्रिया को जेसीबी और पोकलैंड के ड्राइवर के जिम्मे छोड़ दिया गया है। पचासों किमी. तक कोई जानकार इंजीनियर साइट पर दिखाई नहीं देता । इस कारण पहाड़ों की बेतरतीब खुदाई हुई जिससे पूरे पहाड़ों में नए और गहरे जख्म उभर आए हैं ।
ऑल वेदर रोड से पहले एन.एच-58, इसे हम ऋषिकेश -बद्रीनाथ मार्ग कहते हैं वहां सांकणी धार, देवप्रयाग श्रीनगर तक कोई स्लाइडिंग जॉन नहीं था। उसके आगे शिरोबगड, नंदप्रयाग, हेलंग और लामबगड चार महत्वपूर्ण स्लाइडिंग जोन थे। इनकी संख्या बढ़कर अब एक दर्जन से ऊपर हो गई है। रास्तेभर बड़े-बड़े बोल्डर लटके हैं सो अलग। इसी प्रकार एनएच 94, इसे हम ऋषिकेश उत्तरकाशी गंगोत्री मार्ग कहते हैं इस पर भी दर्जनों नए स्लाइडिंग जॉन उभर आए हैं। इन सड़कों के निर्माण में पिछले दो वर्ष में पत्थर गिरने से लगभग 50 लोगों की मौत हो चुकी हैं।
स्थानीय प्रभाव
ऑल वेदर रोड में 12 मीटर के अतिरिक्त सड़क निर्माण के सहायक कार्यों पुस्ता दीवाल की ढलान आदि के लिए 18 मीटर और कुल 30 मीटर चौडी भू पट्टी का अधिग्रहण किया गया है। बहुत बड़ी मात्रा में मलबा डंपिंग जोन में अथवा बाहर इकट्ठा किया गया है। जो बह कर गांव के खेत और चारे के मैदानों तक पहुंच गया हैं। उपजाऊ जमीन बर्बाद हुई है। ऑल वेदर रोड से जुड़े गांव के पहुंच मार्ग इस निर्माण कार्य से क्षतिग्रस्त हुए हैं। गांव के गांव भू-स्खलन की जद में हैं। उनके मरम्मत की कोई अन्य मद नहीं है। सड़क निर्माण का डिजाइन निशाने पर है। पहाड़ों में आमतौर पर एक मीटर पर पर 75 सेंटीमीटर अनुपात चौड़ी दीवाल बनती है जिसकी अंदर की ओर ढाल होती है। लेकिन इस डिजाइन में सड़क के बाहर को डिजाइन है जिस कारण दर्जनों स्थानों पर पुस्तै टूटकर व्यापक जनहानि कर चुके हैं।
सफेद हाथी बनता प्रोजेक्ट
एनएचएआई द्वारा बनाए जा रहे नेशनल हाईवे कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देश में बहुत बड़े सफेद हाथी साबित हो रहे हैं और बहुत बड़ी व्यापक आर्थिक धांधली की आशंका बन रही है। एनएच-74 खटीमा -पानीपत राष्ट्रीय राजमार्ग पर घोटाले की प्रवृत्ति से आप इसे समझ सकते हैं। पूर्व में एनएचएआई के प्रोजेक्ट जिस लागत पर टेंडर होते हैं उसकी पूर्ति तक विलंब के कारण टेंडर में लगभग 25 फीसदी धनराशि की स्वाभाविक रूप से वृद्धि की प्रवृत्ति देखी गई है। इस चारधाम परियोजना में सड़क निर्माण की लागत लगभग 13 करोड़ प्रति किमी. आंकी जा रही है। जबकि राज्य लोक निर्माण विभाग पर्वतीय क्षेत्र में 6 मीटर की नई सड़क 65 लाख प्रति किमी. और 12 मीटर चौड़ी 130 लाख में तैयार करती है । इस सड़क पर यदि हॉट मिक्स किया जाता है तो अधिकतम इन सुविधाओं के साथ एक करोड़ पचास लाख रुपए प्रति किलोमीटर सड़क निर्माण की लागत आती है । योजना में तैयार सड़क पर विस्तार की कार्यवाही के लिए 13 करोड़ रुपए प्रति किमी. स्वीकृत है। इसमें और 25फीसद की वृद्धि संभव है। इस प्रकार लागत के खेल को भी हम नजरअंदाज नहीं कर सकते ।
प्रभावित हो रहा जनजीवन
सड़क पर नए-नए स्लाइडिंग जॉन बनने से जहां एनएच-58 तोता घाटी में पिछले 45 दिन से बंद है। वही पूरे गढ़वाल की लाइफ लाइन एनएच 94 भी तीन ‘चार दिन के लिए आए दिन बंद हो रहा है। जिससे चमोली से बद्रीनाथ तक का जनजीवन प्रभावित हो रहा है। यदि सामरिक महत्व को समझें तो यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। कुल मिलाकर चारधाम परियोजना जो पहली नजर में बेहद लाभकारी है। लेकिन इस पर रोज गहरे होते सवाल और पर्यावरण के संकट ने बड़ी चिंता पैदा कर दी है। अभी भी अति संवेदनशील क्षेत्र में इसकी चौड़ाई को थोड़ा कम कर बड़े नुकसान की भरपाई की जा सकती है