तस्वीर का सच

मयकशीःगरीब मजदूर भी देता है मोटा टैक्स

देशी शराबः बोतल से दो सौ और अद्धे से सौ रुपये सरकारी खजाने में

एक पौव्वे पर मिलता है 50 रुपये का कर

ठेकेदार के हिस्से में दो से पांच गुना मुनाफा

देहरादून। सामान्य तौर पर यह कहा जाता है कि सरकार का खजाना संपन्न लोगों के टैक्स से भरता है। लेकिन एक सच यह भी है कि अपने मयकशी के शौक के चलते गरीब और मजदूर भी राज्य सरकार को मोटा टैक्स दे रहे हैं। इस मामले में सरकार की कमाई का आलम यह है कि देशी शराब की एक बोतल पर राज्य सरकार को सभी तरह के कर मिलाकर 196 रुपये मिल रहे हैं।

विगत मई माह में राज्य सरकार ने देशी शराब का बिक्री मूल्य तय किया है। इसकी पड़ताल करने पर पता चल रहा है कि बगैर कोई पैसा लगाए ही सरकार को मोटा राजस्व मिल रहा है। इसमें शराब ठेकेदार का हिस्सा भी खासा ज्यादा है। लेकिन मयकशों को इससे कोई मतलब नहीं है। उन्हें तो शाम को ठेके पर जाकर नौ रुपये वाला पौव्वा 70 रुपये में खरीदना ही है।

अब एक नजर देशी शराब की कीमत पर। आबकारी विभाग शराब बनाने वाली डिस्टलरी से देशी शराब की एक बोतल 27.89 पैसे में खरीदता है। विभाग ने इसकी एमआरपी 265 रुपये तय की है। यानि मयकशी के शौकीन मजदूर में एक बोतल 265 रुपये में मिलेगी।  इस राशि में से ठेकेदार का हिस्सा 40.77 रुपये है। इस प्रकार ने सरकार को एक बोतल पर 196.44 रुपये सीधे तौर पर बच रहे हैं। इस मुनाफे में उत्पाद शुल्क, जीएसटी, सैस, प्रतिफल, एमजीडी और विस्तारित प्रतिफल जैसे मद शामिल है।

आबकारी विभाग देशी शराब का अद्धा डिस्टलरी से 15.80 रुपये में खरीदता है और ठेकेदार इसे 140 रुपये में बेच रहा है। इसमें 21 रुपये ठेकेदार के हिस्से में आते रहे है। सरकार को एक अद्धे पर शुद्ध मुनाफा 103 रुपये का हो रहा है। डिस्टलरी ने नौ रुपये में खरीदा जाने वाला पौव्वा बाजार में 70 रुपये में बेचा जा रहा है। ठेकेदार को एक अद्धे पर साढ़े दस रुपये मिल रहे हैं तो सरकार को 50.50 रुपये की आय हो रही है।

2016 ने नहीं बढ़ा डिस्टलरी का मूल्य

राज्य सरकार हर साल आबकारी विभाग के राजस्व का नया लक्ष्य निर्धारित करती है। इसी के आधार पर विभिन्न करों और शराब के बाजार मूल्य की कीमत तय की जाती है। अपने करों के साथ ही सरकार ठेकेदार के मुनाफे में भी बढ़ोतरी करती है। इसी आधार पर देशी शराब का बाजार मूल्य बढ़ाती है। इसे बढ़े मूल्य का डिस्टलरी को कोई फायदा नहीं हो रहा। कीमत दे रहा है गरीब मजदूर और हिस्सा जा रहा है ठेकेदार और सरकार के खातों में। बताया जा रहा है कि डिस्टलरी से खरीदी जाने वाली शराब की कीमत 2016 के बाद नहीं बढ़ी है।

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