राजनीति

सरकार को सदन में ‘खलेगी’ मदन की कमी

सीएम तीरथ के सामने ‘वोकल’ संसदीय कार्यमंत्री की चुनौती

स्व. पंत के बाद कौशिक ने झेले विपक्ष के तीर

सीएम के विभागों का जिम्मा भी रहे हैं निभाते

मुन्ना सिंह चौहान हो सकते थे बेहतर विकल्प

देहरादून। काबीना मंत्री मदन कौशिक यूं तो विस सत्र के दौरान सदन में रहेंगे। लेकिन इसके बाद भी सरकार को उनकी कमी महसूस हो सकती है। स्व. प्रकाश पंत के बाद कौशिक ही सदन में बतौर प्रभारी संसदीय कार्यमंत्री विपक्ष के प्रहारों का जवाब देते रहे हैं। मदन अब सदन में एक सामान्य विधायक ही होंगे। ऐसे में सीएम तीरथ के सामने एक वोकल संसदीय कार्यमंत्री को तलाशने की भी चुनौती है।

विस सत्र के दौरान संसदीय कार्यमंत्री की अहम भूमिका होती है। विपक्ष के सवालों पर विभागीय मंत्री फंसते हैं तो संसदीय कार्यमंत्री ही मैदान में आकर उनका बचाव करता है। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री अगर किन्हीं वजहों से सदन में नहीं हैं तो उनके विभागों के सवालों का जवाब देने का जिम्मा भी संसदीय कार्य मंत्री का ही होता है। अपनी असमय मौत से पहले स्व. प्रकाश पंत ने दो सरकारों के समय में यह दायित्व बखूबी संभाला। उनकी बीमारी की शुरुआत भी सदन में ही हुई। स्व. पंत जी के लफ्ज ‘श्रीमन’ अचानक ही सदन में सुनाई देने बंद हो गए।

इसके बाद त्रिवेंद्र ने संसदीय कार्य का काम अस्थायी तौर पर मदन कौशिक को दे दिया। मदन ने इस काम को बखूभी निभाया। सदन में त्रिवेंद्र हो या न हो मदन ही विपक्ष ही अपनी ही पार्टी के विधायकों को जवाब देते रहे। विभागीय सवालों पर कई मंत्री कम जानकारी पर फंसे तो मदन ही संकटमोचक बने। यह अलग बात है कि दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को चुनौती देकर भी मदन सार्वजनिक मुकाबले से बचे। अब 2022 के चुनाव से पहले कम से कम दो नए सत्र होने हैं और बजट सत्र का समापन होना है। कौशिक को भाजपा ने नई जिम्मेदारी दी है। सत्र के दौरान वे सदन में तो रहेंगे लेकिन एक विधायक के तौर पर। सीएम के विभागों के जवाब वो अब नहीं दे पाएंगे और कमजोर होमवर्क वाले मंत्रियों का बचाव भी नहीं कर पाएंगे। ऐसे में नए सीएम तीरथ के सामने अपने सहयोगी मंत्रियों में से ही किसी ऐसे मंत्री को संसदीय कार्यमंत्री का दायित्व देना होगा जो स्व. प्रकाश पंत और मदन कौशिक का सही विकल्प साबित हो सके। इस मामले में विकास नगर से विधायक मुन्ना सिंह चौहान इस पद के लिए बेहतर विकल्प हो सकते थे। लेकिन सियासी वजहों के मजबूत दावेदार होने के बाद भी वे मंत्रिपरिषद में जगह नहीं पा सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button