उत्तराखंड

कवियों ने कवि गोष्ठी में प्यार-मोहब्बत और देशभक्ति की रचनाओं से श्रोताओं की तालियां बटोरी

‘हादिसा दर हादिसा हो चौंकता कोई नहीं’

– राष्ट्रीय कवि संगम की महिला इकाई की ओर से विधानसभा रोड स्थित गुफ्तगू बुक एंड काफी बार में हुआ कवि सम्मेलन

– कवियों ने कवि गोष्ठी में प्यार-मोहब्बत और देशभक्ति की रचनाओं से श्रोताओं की तालियां बटोरी

देहरादून: राष्ट्रीय कवि संगम की महिला इकाई की ओर से रविवार को विधानसभा रोड स्थित गुफ्तगू बुक एंड काफी बार में आयोजित काव्य गोष्ठी में कवियों ने जहां प्यार-मोहब्बत की रचनाएं सुनाई, वहीं देशभक्ति की रचनाओं से जोश भरा। कवि गोष्ठी की अध्यक्षता संस्था की अध्यक्ष मीरा नवेली ने की, जबकि संचालन सतेंद्र शर्मा तरंग ने किया।

काव्य गोष्ठी की शुरुआत नीरू गुप्ता मोहिनी ने सरस्वती वंदना से की। इसके बाद कविताओं का सिलसिला शुरू हुआ। मीरा नवेली ने मौजूदा हालात को भगवान श्रीकृष्ण से जोड़ते हुए अपनी रचना ‘अब तक सुनाई थी बंसी कन्हाई, अब है सुदर्शन चक्र की बारी।’ से श्रोताओं का दिल जीत लिया। वरिष्ठ शायर अंबर खरबंदा ने इस शेर ‘बेहिसी इस शहर पर ऐसे मुसल्लत हो गई। हादिसा दर हादिसा हो चौंकता कोई नहीं।।’ से हालात बयां किए।

श्रीकांत श्री ने ‘पर्वतों को काटकर मैंने ही रस्ता बनाया। सत्य कहता जगनियंता सोते से मैंने जगाया’ से श्रोताओं की तालियां बटोरी। दर्द गढवाली के चार मिसरे ‘भर गया है जी इनायत चाहिए। अब नई कोई मुसीबत चाहिए।। हूर हमने पाल रक्खी हैं बहत्तर।

बोलिए किस-किस को जन्नत चाहिए।।’ को भी काफी सराहा गया। वरिष्ठ साहित्यकार केडी शर्मा ने ‘अब बात हृदय में ही करती हर समय ही गुनगुनाती’ रचना से वाहवाही लूटी। शिवशंकर कुशवाहा ने कहा : ‘भरी महफ़िल में तू बहुत याद आती है मां। रोक नहीं पाता आंखें बरस जाती हैं मां’ से वाहवाही लूटी। वरिष्ठ कवि शिव मोहन सिंह ने ‘बादल बूंदे धूप बयारी मौसम की सब रीत अच्छी’ से दाद बटोरी।

राज्य कर के डिप्टी कमिश्नर कुमार विजय ‘द्रोणी’ ने अपने शेर ‘अनकहे सवालों का जवाब ज़िंदगी। रोज़ घटते पलों का हिसाब ज़िंदगी।।’ सुनाकर ज़िंदगी का फलसफा बयां किया। सतेन्द्र शर्मा तरंग ने कहा:

मानव जीवन हीरा मिला मैं ही खुद को छलता रहा’ सुनाकर तालियां बटोरी। महिमा श्री ने ‘करूं निसार उसपर खुशियां अपने दामन की। मैं तो पगली हूं अपने साजन की’ से खूब वाहवाही लूटी। जसवीर सिंह हलधर ने कहा’ हिंदू या मुसलमान व्यापारी हो या किसान। देश की अखंडता का ध्यान होना चाहिए।।’ सुनाकर देश के प्रति जिम्मेदारी का अहसास कराया।
वरिष्ठ कवि नीरज नैथानी की रचना ‘अब आपके सामने एक और अलमारी खोलता हूं, अपने बारे में बोलता हूं, मेरी अलमारी में मिलेंगी, आपको किताबें और सिर्फ किताबें।।’ से महफ़िल में रस घोल दिया।

शिवचरण शर्मा मुज़्तर ने शेर: तुझे हस्बे-जरुरत हूं मिल रहा हूं। मुझे मर्जी मुताबिक खर्च मत कर।। से तालियां बटोरी। तसनीमा कौसर ने अपने शेर ‘फिजा में जहर घोला जा रहा है। हमें अग्यार बोला जा रहा है।।’ से वाहवाही बटोरी। इसके अलावा, पवन कुमार सूरज, जावेद अहमद, स्वाति ‘मौलश्री’, इंदू जुगरान, आनन्द दीवान, रविन्द्र सेठ ‘रवि’ ने भी अपनी रचना सुनाई।

 

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