‘आप’ की दस्तक से भाजपा विधायक ‘चौड़े’
नाराजगी के बहाने हाईकमान पर प्रेसर बनाने की हो रहीं कोशिशें
साढ़े तीन साल बाद ही क्यों याद आई उपेक्षा
कांग्रेस में भी कमोवेश इसी तरह के हैं हालात
देहरादून। आम आदमी पार्टी (आप) ने उत्तराखंड में दस्तक क्या दी कि तमाम अतिमहत्वाकांक्षी नेताजी खासे चौड़े हो रहे हैं। भाजपा के विधायक अपनी नाराजगी जताने दिल्ली तक जा रहे हैं तो कांग्रेसी भी सियासी आकाओं पर हमलावर हो रहे हैं। सवाल यह खड़ा हो रहा है कि भाजपा विधायकों और कांग्रेस के बड़े नेताओं को अपनी उपेक्षा अचानक ही क्यों याद आ रही है। क्या ये ‘आप’ की दस्तक के बाद प्रेसर बनाने की कोशिशें तो नहीं हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि ‘आप’ की उत्तराखंड में दस्तक के बाद भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अंदरखाने परेशान से हैं। यह अलग बात है कि दोनों ही जुबानी तौर पर इसे महज एक शगूफा ही बता रहे हैं। ‘आप’ की दस्तक के बाद से कांग्रेस और भाजपा में अपने नेतृत्व के खिलाफ स्वर मुखर हो रहे हैं। भाजपा सत्ता में है तो उसके विरोध के स्वरों को ज्यादा तरजीह मिल रही है।
‘आप’ की दस्तक के बाद भाजपा ने पहले तो कैबिनेट में खाली पड़े तीन पदों को भऱने की बात की। बताया जा रहा है कि भाजपा विधायकों का विरोध यहीं से मुखर हुआ है। विधायक और मंत्री अफसरशाही को लेकर तमाम बातें करते रहें हैं। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत भी अपने अंदाज में इसका समाधान करते रहे हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि कैबिनेट के तीन पदों को लेकर जिन नामों की चर्चा तेज हुई तो भाजपा विधायकों का दिल का दर्द जुबां पर आ गया। सूत्र बता रहे हैं कि पूरन फर्त्याल के कंधे पर बंदूक चला रहे एक पूर्व अध्यक्ष और पूर्व मंत्री ने एक बड़े समाचार पत्र के संवाददाता को फोन किया कि 28 एमएलए हैं। वो जब पहुंचा तो मैदान खाली था। इस बारे में पूर्व अध्यक्ष से बात नहीं हो सकी। उनका पक्ष मिलने पर प्रकाशित किया जाएगा।
पिछले कई रोज से कहा जा रहा है कि 18 विधायकों की बैठक फलां जगह हुई। फिर यह संख्या 27 तक पहुंच गई। एक वरिष्ठ विधायक विशन सिंह चुफाल की तो भाजपा अध्यक्ष नड्डा से मुलाकात और एक भाजपा सांसद के भी इस मुहिम में शामिल होने की चर्चा खासी तेज हो रही है। सूत्र बता रहे हैं कि पूरन फत्यार्वाल यह है कि इन भाजपा विधायकों को ‘आप’ की दस्तक के बात ही अपना दर्द बयां करने की याद कैसे आ गई। ‘आप’ ने इस राज्य में अभी कोई खास काम नहीं किया है। लेकिन भाजपा और कांग्रेस की ओर से जिस अंदाज में आप का विरोध किया या करवाया जा रहा है, उससे साफ दिख रहा है कि ये दोनों ही बड़े सियासी दल ‘आप’ से खतरा महसूस कर रहे हैं। ऐसे में भाजपा विधायकों और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं का बदला रुख इस बात का इशारा कर रहा है कि ये अपने-अपने हाईकमान पर प्रेसर बनाकर मनमानी की चाहते हैं।
अब देखना यह होगा कि भाजपा और कांग्रेस जैसे बड़े दल ‘आप’ की दहशत से घबरा कर इनकी बात मानते हैं या फिर अपने फैसले पर अडिग रहते हैं।