पीपीएस बने कप्तान, पीसीएस प्रमोशन को परेशान
एक अफसर की कंटेप्ट याचिका पर एससी ने जारी किया नोटिस
एसीएस राधा को व्यक्तिगत तौर पर ही होना होगा पेश
2004 बैच के पीसीएस अफसरों के प्रमोशन का मामला
देहरादून। उत्तराखंड के अफसरशाही का अंदाज ही अलग है। लोक सेवा आयोग ने निकले 2004 बैच के पीपीएस अफसर तो आईपीएस बनकर जिलों में कप्तान हैं। पर पीपीएस अफसर 2016 से ही प्रमोशन की बाट जोह रहे हैं। एक पीसीएस अफसर की अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कार्मिक विभाग की एसीएस को चार सप्ताह में जवाब देने के साथ ही व्यक्तिगत तौर पर अदालत में हाजिऱ होने का फरमान सुनाया है।
उत्तराखंड लोक सेवा आयोग ने 2004 में अपनी परीक्षा के जरिए पीपीएस और पीसीएस अफसरों का चयन किया था। उसके बाद आयोग सो गया। अफसरों की दिक्कत हुई तो सरकार ने तमाम अफसरों को तदर्थ तौर पर पीसीएस अफसरों के पदों पर तैनात कर दिया। इसके बाद से ही वरिष्ठता का विवाद शुरू हो गया। तदर्थ वाले खुद को वरिष्ठ बताते रहे तो सीधी भर्ती वाले खुद को। हाईकोर्ट से होकर ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। सुप्रीम कोर्ट से साफ कर दिया कि सीधी भर्ती वाले ही वरिष्ठ होंगे।
इसके बाद भी कुछ नहीं हुआ। आज हालात ये हैं कि 2004 में पुलिस सेवा में आने वाले पीपीएस अफसर आईपीएस बन चुके हैं। कई तो जिलों में कप्तान भी बन चुके हैं। लेकिन पीसीएस अफसर आज भी आईएएस का इंतजार कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि आईएएस पर पदोन्नति के लिए जो सूची तैयार की गई, उसमें चार सीधी भर्ती वाले अफसरों पर पदोन्नति वाले अफसरों को तरजीह दी गई है।
पीसीएस अफसर विनोद गिरि गोस्वामी ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की। इस पर सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति इंदू मल्होत्रा की खंडपीठ ने प्रतिपक्षी सुश्री राधा रतूड़ी और अन्य को चार सप्ताह में जवाब देने और अगली सुनवाई पर व्यक्तिगत तौर पर पेश होने का आदेश जारी किया है।