इतिहास के पन्नों में दर्ज होंगी तमाम बातें

कई मायनों में खासी चर्चित रही चौथी निर्वाचित विस
सूबे के मिला ग्रीष्मकालीन राजधानी का तोहफा
बहुप्रचारित देवस्थानम् बोर्ड किया गया निरस्त
ठंडे बस्ते में गया गैरसैंण कमिश्नरी का प्रस्ताव
सत्ता पक्ष लाया विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव
एक सीएम नहीं ही देख सके विस का दरवाजा
मंत्री कौशिक बन कर रहे महज एक विधायक
विधायक से सीधे सीएम बन गए युवा पुष्कर धामी
सदन ने असमय ही खो दिए अपने छह सदस्य
देहरादून। उत्तराखंड की चौथी निर्वाचित विधानसभा का कार्यकाल यूं तो मार्च के तीसरे सप्ताह में खत्म होगा। लेकिन विस का अब कोई सत्र नहीं होगा। चौथी निर्वाचित विस का ये कार्यकाल कई मायनों में याद किया जाएगा। कुछ बातें तो उत्तराखंड के सियासी इतिहास के पन्नों में भी दर्ज होगी।
चौथी विस के कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि गैरसैंण में ग्रीष्मकालीन राजधानी की रही। इस बारे में घोषणा करके पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करवा लिया। यह अलग बात रही कि त्रिवेंद्र की गैरसैंण को उत्तराखंड की तीसरी कमिश्नरी बनाने की घोषणा को बाद के सीएम ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। यह कार्यकाल देवस्थानम् बोर्ड के लिए भी याद किया जाएगा। त्रिवेंद्र के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को पुष्कर सरकार ने भारी विरोध के बाद अंततः रद्दी की टोकरी में ही डाल दिया।
इस विस का कार्य़काल में शायद पहला मौका रहा है कि सत्ता पक्ष के विधायक ही विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव सदन में लाए। सबसे पहले विधायक राजेश शुक्ला, फिर पूरन सिंह फर्त्याल और अंत में प्रणव सिंह चैंपियन ने अपने प्रस्तावों से सरकार को पूरी तरह से असहज किया।
इस विस कार्य़काल को तीन मुख्यमंत्रियों के लिए भी याद किया जाएगा। अहम बात यह रही कि एक सीएम तीरथ सिंह रावत तो विस का दरवाजा भी नहीं देख सके। तीरथ का कार्यकाल महज 114 दिन का ही रहा। एक अहम बात यह भी रही कि चार साल तक संसदीय कार्य़मंत्री का काम देखने वाले मदन कौशिक विस के अंतिम सत्र में महज एक विधायक के रूप में ही सदन में नजर आए।
विस के इस कार्यकाल में एक खास बात यह भी रही कि विधायक पुष्कर सिंह धामी को सबसे कम उम्र का सीएम बनने का मौका मिला। कई बार मंत्री पद के लिए लाबिंग करने वाले पुष्कर को भाजपा हाईकमान ने सीधे मुख्यमंत्री पद पर आसीन कर दिया।
इस चौथी विस के कार्य़काल का एक दुखद पहलू भी है। चौथी विस ने अपने छह सदस्यों को समय से पहले ही काल का ग्रास बनते देखा। इनमें सबसे पहले विधायक मगनलाल शाह की और फिर काबीना मंत्री प्रकाश पंत की मृत्यु हुई। फिर युवा विधायक सुरेंद्र सिंह जीना को कोरोना ने अपनी चपेट में लिया। इसके बाद गोपाल सिंह रावत और नेता प्रतिपक्ष डॉ. श्रीमति इंदिरा ह्रदयेश की मृत्यु हुई। और आज सोमवार को सबसे वरिष्ठ विधायक हरबंस कपूर की भी मृत्यु हो गई।
विस कार्यकाल में एक और अहम बात देखने को मिली। स्व. प्रकाश पंत की जगह उनकी पत्नी चंद्रा पंत, शाह की जगह उनकी पत्नी और सुरेंद्र जीना की जगह उनके भाई को सदन में आने का मौका मिला।