उत्तराखंड

सच बोलना अब अपराध: उत्तराखंड में सत्ता का डर उजागर

देहरादून।

देश में अब सच बोलना अपराध बन गया है, विशेषकर उन राज्यों में जहां जहां डबल इंजन की सरकार है। एक पत्रकार अगर जनता के हक़ में सवाल पूछ ले, तो उसे नोटिस भेजा जाता है, उसके घर पुलिस पहुँचती है, और उसके परिवार को डराने की कोशिश होती है। इसका ताज़ा उदाहरण उत्तराखंड में देखने को मिला है, जहाँ सत्ता इतनी संवेदनहीन हो गई है कि सच्चाई सुनने से भी डरने लगी है।

वरिष्ठ पत्रकार अजित राठी ने जब राज्य सरकार के एक फैसले पर सवाल उठाया कि देहरादून के आईटी पार्क की कीमती सरकारी ज़मीन को 90 साल की लीज़ पर एक निजी बिल्डर को क्यों दे दिया गया ?, तो सत्ता तिलमिला उठी।

जिस जगह से प्रदेश के युवाओं के लिए आईटी इंडस्ट्री और रोजगार की उम्मीद जगनी चाहिए थी, वहाँ अब फ्लैट बिकेंगे। और जब एक निर्भीक पत्रकार ने इस लूट पर सवाल किया, तो सरकार ने उन्हें “लीगल नोटिस” और “पुलिस दबाव” का तोहफ़ा दिया। तीन दिन तक पुलिस उनके घर के दरवाजे पर पहुँची। परिवार को डराने की कोशिश हुई। क्या यही है “डबल इंजन सरकार” का चेहरा?

जो जनता के सवालों का जवाब देने की बजाय, सवाल पूछने वालों को चुप कराने में व्यस्त है?
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, क्या अब इस राज्य में पत्रकारिता अपराध है? क्या आपकी सरकार इतनी असहिष्णु हो चुकी है कि अब कलम की नोक से भी डरने लगी है?

यह वही उत्तराखंड है जहाँ कभी विचारों की स्वतंत्रता पर गर्व किया जाता था लेकिन आज, यहाँ एक पत्रकार का हक़ छीना जा रहा है केवल इसलिए कि उसने “सत्ता से सवाल” करने की हिम्मत दिखाई। लीगल नोटिस भेजकर आप सच्चाई नहीं मिटा सकते। पुलिस भेजकर आप डर दिखा सकते हैं, लेकिन सच्चाई को कैद नहीं कर सकते। और सबसे बड़ा सच यही है जो सरकार सवालों से डरती है, वह भ्रष्टाचार में डूबी होती है।

कांग्रेस पार्टी इस कायरता की निंदा करती है। हम साफ़ कहना चाहते हैं पत्रकार अजित राठी या जनता के सवाल उठा रहे अन्य किसी भी पत्रकार पर दबाव बनाना लोकतंत्र पर सीधा हमला है। हम इस लड़ाई में उनके साथ हैं, क्योंकि जब पत्रकार चुप हो जाता है, तब तानाशाही बोलती है।

धामी सरकार भूल गई है कि लोकतंत्र में कलम तलवार से भी ज़्यादा शक्तिशाली होती है।

इस कलम को डराकर या दबाकर कोई भी सरकार ज़्यादा दिन नहीं टिक सकती। उत्तराखंड कांग्रेस हर उस आवाज़ के साथ खड़ी है जो सच्चाई बोलने की हिम्मत रखती है।

मुख्यमंत्री, याद रखिए नोटिस भेजने से सवाल नहीं रुकते, पुलिस भेजने से सच्चाई नहीं झुकती, और डर दिखाने से जनता की नज़रें नहीं हटतीं। आपकी कोशिशें असफल होंगी, क्योंकि जब जनता जागती है, तो सत्ता काँपती है।

आज उत्तराखंड पूछ रहा है कि क्या लोकतंत्र अब सिर्फ़ सरकार की सुविधा का नाम रह गया है, या अभी भी उसमें सच बोलने की जगह बाकी है?

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