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स्मार्ट सिटीः अब तक काम के बोझ के मारे मिले मुखिया

जरूरत एक अदद ‘फुल टाइम’ सीईओ की

अपने आप में खासा व्यस्त है डीएम का ओहदा

फिर एमडीडीए के उपाध्यक्ष का भी दे दिया चार्ज

यही वजह है कि कामों पर नहीं हो पा रहा है गौर

धीमे और गुणवत्ताविहीन कामों से सीएम चिंतित

देहरादून। पीएम नरेंद्र मोदी का स्मार्ट सिटी का सपना देहरादून में अधूरा है। इसमें देर दर देर हो रही है। धीमी गति और गुणवत्ता विहीन कामों से सब चिंतित हैं। इसकी एक बड़ी वजह इस स्मार्ट सिटी के मुखिया का काम के बोझ से मारा होना भी है। अब तक डीएम को ही इसका सीईओ बनाया जाता रहा है। उस पर तुर्रा ये कि उसे मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण के वीसी का दायित्व भी दे दिया जाता है। हालात इशारा कर रहे हैं कि स्मार्ट सिटी परियोजना के लिए एक फुल टाइम सीईओ की दरकार है।

तमाम मशक्कतों के बाद किसी तरह से देहरादून को पीएम मोदी के एक बड़े सपने स्मार्ट सिटी में शामिल कराया जा सका। लेकिन इसे लेकर सरकार शुरू से ही गंभीर नहीं नहीं। त्रिवेंद्र सरकार में इस प्रोजेक्ट के सीईओ का जिम्मा देहरादून के डीएम को दिया गया। डीएम का पद अपने आप में एक अहम है। इस पद को 24 घंटे की नौकरी वाला माना जाता है। सरकार यहीं नहीं नहीं रुकी। डीएम को स्मार्ट सिटी सीईओ के साथ ही एमडीडीए के उपाध्यक्ष का काम भी दे दिया गया। तैनात रहे अफसर डीएम और वीसी के काम में इस कदर उलझे कि स्मार्ट सिटी के कामों को ठेकेदारों के हवाले ही छोड़ दिया गया। नतीजा यह रहा कि काम पिछड़ता रहा और ठेकेदारों ने गुणवत्ता को दरकिनार कर दिया।

धामी सरकार का ध्यान इस ओर गया और सीएम ने खुद तमाम कामों की समीक्षा की। लेकिन केवल इससे काम नहीं होने वाला। स्मार्ट सिटी को एक फुल टाइम सीईओ की जरूरत है। सरकार को किसी अफसर को केवल स्मार्ट सिटी का ही काम सौंपने के साथ उसे रिजल्ट देने की जिम्मेदारी भी देनी होगी। मौजूदा समय में स्मार्ट सिटी की सीईओ सोनिका के पास जिलाधिकारी देहरादून और एमडीडीए उपाध्यक्ष की भी जिम्मदारी है। सीईओ के अलावा अन्य दोनों ओहदे भी अहम हैं। ऐसे में उनके पास स्मार्ट सिटी के लिए वक्त ही कितना बचता होगा।

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