अफसरशाही को एक दिन में नौ ‘उच्च’ निर्देश

नैनीताल हाईकोर्ट तेजी से कर रहा पीआईएल पर सुनवाई
कहीं शासनादेश पर लग रही है रोक
कहीं जारी हो रहे वेतन देने के निर्देश
नियुक्तियों के मामले में देना है जवाब
ब्यूरोक्रेसी की कार्य़शैली पर उठे सवाल
देहरादून। शासन की ओर से जारी होने वाले आदेशों और निर्देश को लेकर लोग पीआईएल (जनहित याचिका) दाखिल कर रहे हैं। नैनीताल उच्च न्यायालय भी इन पर तेजी से सुनवाई कर रहा है। किसी मामले में शासनादेश पर रोक लगाई जा रही है तो कई मामलों से अफसरों से जवाब मांगा जा रहा है। आलम यह है कि बुधवार को एक ही दिन में अफसरशारी को नौ उच्च निर्देश जारी किए गए। इससे अफसरशाही की कार्यशैली पर सवाल उठना लाजिमी है।
विगत 10 फरवरी को सरकार ने एनआईओएस से डिस्टेंस एजुकेशन के जरिए डीएलएड का प्रशिक्षण लेने वाले युवाओं की प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापक की भर्ती में शामिल होने पर रोक लगा दी थी। इस आदेश को एक पीआईएल के जरिए चुनौती देते हुए कहा कि केंद्र सरकार और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद ने इसे मान्य किया है। उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की एकल पीठ ने शासनादेश पर रोक लगा दी। इस आदेश से सूबे के लगभग 37 युवाओं ने राहत की सांस ली होगी।
इसी तरह नैनीताल में बलियानाले पर रोप-वे मामले में एक पीआईएल पर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने निर्माण करने वाली संस्था को पक्षकार बनाने के आदेश के साथ टूरिज्म डेवलमेंट बोर्ड ने चार सप्ताह में जवाब मांगा है। चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति आरएस चौहान की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पौड़ी में ई-लर्निंग सामिग्री खरीद को लेकर दाखिल एक पीआईएल पर सुनवाई करते हुए सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगा है। रोडवेज कर्मियों के वेतन मामले की सुनवाई भी इसी खंडपीठ ने की और वेतन देने को उचित कदम उठाने के निर्देश दिए। साथ ही परिवहन निगम की वित्तीय स्थिति पर एक रिपोर्ट भी तलब की। मुख्य न्यायमूर्ति की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने ही जिला नियोजन समितियों (डीपीसी) के चुनाव होने के मामले में दाखिल पीआईएल पर सुनवाई के बाद सरकार से पूछा है यह बताया जाए कि चुनाव कब तक होंगे। इस मामले की सुनवाई जारी है।
चीफ जस्टिस आरएस चौहान और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने पर्यावरण को लेकर दाखिल एक पीआईएल पर सुनवाई की और कहा कि पर्यावरण बचाना औऱ विकास दोनों ही सरकार के काम है। अगर इस तरह काम करने की सरकार के पास कोई योजना है तो चार सप्ताह में पेश किया जाए। इसी खंडपीठ ने एक अन्य पीआईएल पर सुनवाई के बाद निर्देश दिए कि याची को सहायक वन संरक्षक की मुख्य परीक्षा में शामिल किया जाए। याची का कहना था कि प्रारंभिक परीक्षा पास करने के बाद भी उसे मुख्य परीक्षा में शामिल नहीं किया जा रहा है। इसी खंडपीठ ने एक याचिका पर सुनवाई की और निर्देश दिए कि उत्तराखंड की सभी जेलों की स्थिति पर एक रिपोर्ट चार सप्ताह में पेश की जाए। इसी खंडपीठ ने सरकार की शिवालिक एलीफेंट रिजर्व को निरस्त करने के आदेश के खिलाफ एक पीआईएल पर सुनवाई की। खंडपीठ ने वन्यजीव बोर्ड के सदस्य सचिव व अन्य को निजी तौर पर अदालत में पेश होने को कहा है। एक ही दिन में हाईकोर्ट में इतनी पीआईएल का दाखिल होना और सरकार को निर्देश मिलना उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी की कार्यशैली पर सवाल खड़ा कर रहा है। सवाल यह है कि अफसर मनमानी कर रहे हैं या फिर गैरजरूरी फैसले लिए जा रहे हैं।