राजनीति

सवालः क्या नहीं पलटे जाएंगे त्रिवेंद्र के फैसले

पूर्व सीएम अपने फैसलों के पक्ष में, धामी सरकार मौन

पूर्व सीएम तीरथ ने की थी इसकी घोषणा

देवस्थानम् बोर्ड को बढ़ावा दे रही सरकार

गैरसैंण कमिश्नरी पर भी नहीं कोई आदेश

विकास प्राधिकरण भी कर रहे अपना काम

भू-कानून के फायदे गिना रहे त्रिवेंद्र सिंह

देहरादून। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही त्रिवेंद्र सरकार के कई फैसलों को पलटने की बात करके तीरथ सिंह रावत ने तात्कालिक वाहवाही तो लूट ली थी पर चार माह में एक भी मामले में आदेश जारी नहीं करवा सके। अब हालात ये हैं कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस मामले में मौन हैं तो पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने फैसलों जमकर तारीफ कर रहे हैं। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या तीरथ की घोषणा पर धामी सरकार आगे बढ़ेगी या नहीं।

मार्च माह में तीरथ सिंह रावत ने शपथ लेते ही गैरसैंण कमिश्नरी को खत्म करने, देवस्थानम् बोर्ड पर फिर से विचार करने, जिला विकास प्राधिकरणों को खत्म करने की एलान किया था। वे लगभग चार माह सीएम रहे। लेकिन एक भी मामले में कोई आदेश जारी नहीं करवा सके। इसके बाद पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री बने। धामी के सीएम बनते ही पर्वतीय अंचलों से भू-कानून में बदलाव की मांग तेज हो गई। सोशल मीडिया में यह मुद्दा खासा चर्चित हो रहा है।

अब हालात ये हैं कि सीएम पुष्कर इन सभी मामलों में मौन साधे हुए हैं। हां, देवस्थानम् बोर्ड की बैठक में वे खुद भी शामिल हुए और जरूरत पड़ने पर बोर्ड को और पैसा देने की बात करके यह साफ कर दिया कि वे इस पर किसी तरह का कोई पुनर्विचार करने नहीं जा रहे हैं। दूसरी ओर पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत इन मामलों पर खासे सक्रिय हैं। नई मांग भू-कानून में बदलाव पर उनका कहना है कि सरकार को इस मामले में कोई फैसला करने से पहले पूरे हालात को गंभीरता से समझना होगा। इसी तरह देवस्थानम् बोर्ड की वे जमकर तारीफ कर रहे हैं। देशभर के अन्य धार्मिक स्थलों की आय का हवाला देकर वे कह रहे हैं कि उनकी तुलना में उत्तराखंड के धामों का आय न के बराबर हैं। अन्य धामों का संचालन बोर्ड ही कर रहा है। वे यकीन दिलाते हैं कि आने वाले समय में यह बोर्ड धामों के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। धामी सरकार के मौन और त्रिवेंद्र की सक्रियता से सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या तीरथ सरकार के फैसले पटलने के फैसले पर अब कोई अमल होगा या नहीं। सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि अगर तीरथ सही थे तो चार माह तक अपने किसा फैसले पर आदेश क्यों नहीं करवा सके।

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