राज्य गठन के बाद मिली ‘उपेक्षा’, फिर भी पासी रहे समर्पित 
रासः क्या भाजपा खत्म करेगी बलराज का वनबास ?
रामजन्म भूमि आंदोलन से आए थे सुर्खियों में
1991 में एनडी को हरा जीती नैतीलाल सीट
2000 से अपनी बारी का करते रहे ‘इंतजार’
कभी कोश्यारी को कभी अजय ने मारी ‘बाजी’
विस टिकट की दावेदारी भी रही है ‘बेनतीजा’
देहरादून। पूर्व सांसद बलराज पासी भाजपा का एक ऐसा चेहरा है, जिसे पिछले बीस सालों से पुर्नवास का इंतजार है। उनका हिस्सा कभी भगत सिंह कोश्यारी ले उड़े तो कभी अजय भट्ट। पुख्ता दावेदारी के बाद भी भाजपा ने पिछले पांच विस चुनाव में उन्हें टिकट नहीं दिया। इसके बाद भी पासी पार्टी के लिए समर्पित रहे। अब भाजपा एक नेता को राज्यसभा भेजने वाली है। ऐसे में सवाल यह हो रहा है कि क्या भाजपा अपने इस उपेक्षित लेकिन बेहद समर्थित कार्यकर्ता को तरजी देगी।
नब्बे के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन पूरी तेजी पर था। ऐसे में बाजपुर के एक युवा बलराज पासी ने उसमें बढ़चढ़ कर हिस्सेदारी की। पुलिस का लाठियां खाईं तो जेल की रोटी भी। उस समय पर भाजपा आज जैसे पीक पर नहीं थी। लेकिन नैनीताल लोकसभा सीट से भाजपा ने इस युवा पासी को कांग्रेसी दिग्गज एनडी तिवारी के सामने मैदान में उतार दिया। उस समय के इस युवा ने तिवारी को शिकस्त देकर पहली बार भाजपा के लिए नैनीताल सीट जीती।
इस युवा ने अपनी छवि एक प्रखर वक्ता के रूप में निखारी। भाजपा ने इसका जमकर उपयोग भी किया। लेकिन आगे बढ़ने का मौका कम ही मिला। 1996 में टिकट दिया पर एनडी से पासी हार गए। 1098 में भाजपा ने इला पंत को टिकट दिया। 1999 में फिर से एनडी के मुकाबले पासी को उतारा गया। लेकिन वे हार गए।
2000 में राज्य गठन के बाद से तो मानो इस नेता के सपनों पर ग्रहण ही लग गया। लोकसभा सीट का टिकट पहाड़ से उतरने वाले भगत सिंह कोश्यारी को दिया गया। वे एक बार हारे और 2014 में जीते। पासी अपनी तैयारी करते रहे। लेकिन 2019 में लोस का टिकट अपना चुनाव हार चुके अजय भट्ट को दे दिया गया। अहम बात यह रही कि जब भाजपा कमजोर थी और मुकाबला एनडी तिवारी से था तो बलराज याद आए। लेकिन जब भाजपा मजबूत हुई तो पासी को कमजोर कर दिया गया।
पासी ने विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियां कीं। लोस सभा क्षेत्र की कई सीटों ने हर बार टिकट मांगा। लेकिन उन्हें हर बार मायूसी ही हाथ लगी। दो बार भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए भी अंदरखाने दावेदारी की लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। इसके बाद भी पासी संगठन के प्रति समर्पित रहे। दूसरे नेताओं की तरह पार्टी को कोसा और न छोड़ा। पूर्व सांसद ने अपनी पार्टी के सामने राज्यसभा सीट की भी दावेदारी की। लेकिन हर बार बाजी किसी और के हाथ ही लगती रही। इस बार फिर राज्यसभा की एक सीट खाली हो रही है। पासी मैदानी इलाके से हैं और 2026 के विस सीटों में मैदान की सीटें और भी बढ़ने वाली है। सभी सियासी दल उसी लिहाज से तैयारी भी कर रहे हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या भाजपा इस बार अपने इस समर्थित कार्यकर्ता को कुछ सम्मान देकर उसे राज्यसभा भेजेगी या फिर राज्य गठन से अब तक रीते ही रहे बलराज के हाथ इस बार भी कुछ नहीं आने वाला और सीट किसी पैराशूट या अन्य नेता को थमा दी जाएगी।