तस्वीर का सच

कुशाः पितृ कर्म में न हो तो नहीं मिलता फल

पांच हजार साल से अधिक पुरानी है इस औषधि देव की परंपरा

 
इस औषधि को आज दिया जाएगा आमंत्रण

18  अगस्त को है कुशा ग्रहणी अमावस्या  

वर्ष भर इसी से होंगे सभी संस्कार कर्म

नवीन पाण्डेय
देहरादून/हरिद्वार। शायद कम ही लोग जानते होंगे एक औषधि को कुशा के नाम से जाना जाता है। इसके बिना कोई देव और पितृ कार्य संभव ही नहीं हो सकता। यदि ये कुशा नहीं हो तो ये कर्म संस्कार पूरे नहीं हो सकते। छोटे से पूजन में दिखने वाला कुशा बेहद जतन और आदर से ब्राहृमण वैदिक काल से जंगल और नदियों के किनारे से लेकर आते रहे हैं। एक दिन संग्रह किया गया कुशा, पूरे वर्ष भर पूजन के काम आता है। ये परंपरा वैदिक काल यानि पांच हजार साल से चली आ रही है। इसकी उर्जा कभी खत्म नहीं होती है। सोमवार को वह शुभ दिन है जब जंगल में ब्राहृमण कुशा को निमंत्रण देने जाएंगे और मंगलवार को हर संस्कार के लिए कुशा लेकर आएंगे।
पूरे वर्ष भर धर्म और पितृ कार्यों में कुशा की जरूरत होती है।। बिना कुशा के तर्पण, श्राद्ध, दैनिक श्राद्ध इत्यादि कुछ भी नहीं होता है। नित्य ही प्रत्येक तीर्थ में कुशा की जरूरत होती है। कुशा तो पहले पूरे हरिद्वार में बहुत होती थी परन्तु अब केवल चीला के जंगल में गंगा नदी के उस पार ही मिलती है। कुशा को जड़ सहित लेकर आने का विधान है। भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अमवस्या के दिन कुशा लेकर आते हैं तथा ॐ हूं फट स्वाहा, इस मंत्र को पढ़ते हुए कुशा को उखाड़ कर लेना होता है। कहीं-कहीं कहा गया है कि एक दिन पहले निमंत्रण देकर अगले दिन कुशा लाने का पुण्य होता है। ये पूरे वर्ष भर में निवास करती है। इस दिन यदि कुशा किसी ब्राह्मण के हाथों से लेकर घर ले कर आई जाए तो उस घर में वास्तु दोष, गुरु दोष, चांडाल योग, इत्यादि समाप्त हो जाते है। पितृ दोष भी पूरे वर्ष नहीं सताता। इस वर्ष कुशा ग्रहणी अमावस्या मंगलवार 18 अगस्त को आ रही है। इस दिन पूर्व की मुख करके मंत्र जाप करते हुए समस्त ब्राह्मण कुशा को उखड़कर घर लाएंगे। कुशा ऊपर से हरी हो।

प्रतीक मिश्रपुरी

भारतीय प्राच्य विद्या सोसाइटी के निदेशक डॉ. प्रतीक मिश्र पूरी बताते हैं कि पहले समूह में ब्राहृमण कुशा को लेने जाते थे पर बदलते दौर में अपने-अपने समायानुसार ब्राहृमण कुशा लेने जाते हैं। इसके बिना कोई संस्कार-कर्म संभव नहीं है। इसके गुणों और अनन्य लाभ के बारे में भी सामान्य जन कम ही जानता है।

इतना महत्वपूर्ण, सोने जैसी तुलना


कहा ये भी जाता है कि यदि किसी को सोना पहनने को बोला जाए और वह किसी रूप में वह उसे धारण करने में सक्षम नहीं है तो महज एक कुशा उसके लिए काफी है। कहा जाता है कि कुशा की पवित्रि बनाकर अंगुली में धारण करने से ये सोने का काम करती है। इसकी महत्ता का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है।



विकासवाद की दौड़ में कुशा को किया नष्ट


विकासवाद की दौड़ में बेहद महत्वपूर्ण और उपयोगी कुशा को हरिद्वार में कई जगहों पर नष्ट कर दिया गया। पहले ब्राहृमण राजघाट गंगा के किनारे से कुशा लेकर आते थे लेकिन अब कई जगहों पर हरिद्वार में इसे जाने—अनजाने में विकास करने वालों ने उखाड़ फेंका जबकि इसका संग्रह और इसे बचाने की जरूरत है। कहीं ऐसा नहीं हो कि आने वाले समय में कुशा के लाले पड़ जाए और देव कर्म और पितृ कर्म करने के लिए हरिद्वार के ब्राहृमण को कुशा के लिए दूसरे वन यानि दूसरे राज्यों या जिलों की ओर रुख करना पड़े।


वास्तुदोष के लिए तो रामबाण है कुशा


विद्वान ब्राहृमण कुशा पर ही बैठकर देव और पितृ कर्म करवाते हैं। इसके पीछे बड़ा रहस्य छिपा है। मान्यता है कि कुशा में जबरदस्त एनर्जी होती है। कुशा ही एक ऐसी चीज है, जिसकी एनर्जी क्षय नहीं होती। कहा ये भी जाता है कि वास्तुदोष में तो यह गजब का उपयोगी साबित होता है। यदि टॉयलेट और किचन की दीवार जुड़ी हुई हो तो यह बड़ा वास्तुदोष माना जाता है लेकिन कम ही लोग जानते होंगे कि यदि कुशा की चटाई बनाकर रसोई में रख दिया जाए तो यह दोष पल भर में दूर हो जाता है। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button