गैरसैंण राजधानीः फिर सियायत के पाले में गेंद
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषणा पर कोरोना की मार
कांग्रेस को स्थायी राजधानी के लिए चुनाव का इंतजार
न्यूज वेट ब्यूरो
देहरादून। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य आंदोलनकारियों की गैरसैंण में राजधानी की चाहत एक बार सियासत के हाथों में आ गई है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ग्रीष्मकालीन राजधानी का जो सपना दिखाया था, फिलवक्त उस पर कोरोना का ग्रहण सा लगा हुआ है। और कांग्रेस को गैरसैंण में स्थायी राजधानी के मुद्दे पर खेलने के लिए 2022 के आम चुनाव का इंतजार करना होगा।
2000 में भाजपा ने उत्तराखंड राज्य का गठन तो किया। लेकिन राजधानी के मुद्दे को ऐसा लटकाया कि आज बीस साल बाद भी इसका हल नहीं निकल सका है। भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही विपक्ष में रहते हुए और चुनाव के दौरान जनभावनाओं से जुड़े इस मामले को अपना सियासी हथियार बनाती रहीं हैं। लेकिन समस्या के स्थायी समाधान पर कोई भी सियासी दल आगे नहीं बढ़ा।
पिछले दिनों इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई। इसमें गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित करने की मांग की गई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कर दिया है कि यह नीतिगत फैसला है और इस पर कोई आदेश नहीं दिया जा सकता है। जाहिर है कि ये नीतिगत फैसला इस राज्य की सरकार को ही लेना है।
विगत मार्च माह में सत्तारूढ़ भाजपा ने इस दिशा में एक कदम बढ़ाया और गैरसैंण (भराणीसैंण) को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया। इससे लोगों की भावनाओं पर कुछ तो मरहम लगा ही था। सरकार इस दिशा में कुछ बढ़ाती, उससे पहले कोरोना नाम की महामारी ने अपना प्रकोप दिखा दिया। नतीजा यह है कि ग्रीष्मकालीन राजधानी के अमल पर एक ग्रहण सा लग गया है। अभी हाल-फिलहाल में इस दिशा में कोई कदम उठाए जाने की संभावना भी न के बराबर ही है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राजधानी का मसला सियासी दलों के पाले में आ गया है। उत्तराखंड में विस के आम चुनाव 2022 की पहली तिमाही में होने हैं। इस चुनाव में दोनों ही सियासी दल एक बार राजधानी के मसले पर जनभावनाओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश करते दिखेंगे। सत्तारूढ़ भाजपा जहां ग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा से जनता को लुभाने का प्रयास करेगी। वहीं कांग्रेस गैरसैंण में स्थायी राजधानी का मुद्दा जनता के बीच उछालने की तैयारी में अभी से जुट गई है।