तस्वीर का सच

‘फ्री-हैंड’ का मतलब मनमानी नहीं होता ‘बड़े बाबू’

अब सरकार ने दिखाई ‘हनक’ और अफसरों को फेंटा ताश के पत्तों की तरह

त्वरित टिप्पणी

देहरादून। किसी भी सरकार को अर्श तक पहुंचाने का जिम्मा अफसर यानि कि बड़े बाबुओं पर होता है। ऐसे में कुछ खास बड़े बाबुओं को सरकार फ्री-हैंड भी देती है। अगर इस फ्री-हैंड का मनमानी के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगेगा तो बट्टा तो सरकार की साख पर ही लगेगा। उत्तराखंड सरकार ने बड़े बाबुओं को ताश के पत्ते की तरह की फेंटकर यह संदेश दे दिया है कि मनमानी और अवाम की उपेक्षा को सहन नहीं किया जाएगा।

आज के फेरबदल में सरकार ने कई ऐसे बड़े बाबुओं पर भी तलवार चलाई है, जिनके बारे में सोशल मीडिया लगातार कह रहा था कि इनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। लेकिन सरकार ने मजबूत इच्छाशक्ति के साथ ये दिखा दिया कि काम तो उनकी मंशा के अनुसार ही होगा। बड़े बाबुओं पर एक-एक कर चर्चा करते हैं।

अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के पास से सरकार ने लोनिवि जैसा विभाग हटा दिया है। कोई सोच भी नहीं सकता था कि इस ताकतवर अफसर से कोई विभाग हट भी सकता है। यूं तो कई मामले चर्चा में रहे। पर सबसे अहम योगी के नाम पर एक विधायक को पास जारी करने का मामले में फ्री-हैंड लेना शायद इन्हें भारी पड़ गया।

सरकार ने एकदम अप्रत्याशित तौर पर नितेश झा से स्वास्थ्य महकमा हटा दिया है। इनका नाम आया तो पहली नजर में किसी को भरोसा न हुआ कि झा के साथ भी ऐसा हो सकता है। कोरोना के इस दौर में भी ये बड़े बाबू अपने दफ्तर से बाहर नहीं निकले। सारा काम अपने अधीन अपर सचिव पर छोड़ दिया। सोशल मीडिया में भी यह मामला छाया। आखिर में सरकार ने बता ही दिया कि चलेगी तो उसी की।

एक पीसीएस अभिषेक त्रिपाठी के रहते उत्तराखंड की आय़ुष्मान योजना खासी विवादित रही। लंबे समय तक इस योजना में हुई गड़बड़ियों पर मौन साध लिया गया। मामला हाईकोर्ट गया तो अस्पतालों पर एक साथ तीन-तीन एक्शन कर दिए गए। अब हालात ये हैं कि अधिकांश अस्पताल इस योजना से ही कन्नी काट रहे हैं।

अब सरकार ने अपने नए सिपहसालार के तौर पर आनंद बर्द्धन, अमित नेगी, आर मीनाक्षी सुंदरम, आरके सुधांशु, शैलेश बगौली और ब्रजेश संत जैसे बड़े बाबुओं पर भरोसा जताया है। अब देखने वाली बात ये होगी कि ये बड़े बाबू अब सरकार की उम्मीदों की कसौटी पर किस हद तक खरा उतरते हैं।

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