प्राचीन काल में भू-स्खलन से आई मिट्टी पर बसा है जोशीमठ
भूकंप की स्थिति में चौड़ी हो सकती हैं दरारें
रतन सिंह असवाल
मुझे घूमने विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों में घूमने का शौक बचपन से ही है और घूमने की मेरी भूख आज भी बदस्तूर जारी है। हिमालय का शायद ही कोई कोना मुझसे अछूता रह गया होगा। पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों से मिलना उनके रहन सहन, एवं उनके प्रकृति के प्रति समसायिक ज्ञान को समझना ही मेरा प्रमुख उद्देश्य रहता है। साथ ही उनकी समस्याओं को सही मंच तक पंहुचा कर निराकरण में सहयोग करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूं।
खैर, इसी कड़ी में 1996 में मुझे जोशीमठ क्षेत्र में भ्रमण करने का अवसर मिला था। उस समय मैंने स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के क्रम में कुछ संवेदनशील स्थानों का भ्रमण किया था तथा पाया कि हेलंग से लेकर मारवाड़ी तक के क्षेत्र में ज़मीन पर दरारे पड़ी हुई थीं। हेलंग से जोशीमठ के मध्य मार्ग में एक झरना था, जिसके आसपास स्थानीय आबादी रहती थीं आज वो आबादी कहीं और विस्थापित हो गयी है।
अभी कुछ बुद्धिजीवीयों ने जोशीमठ आपदा के खतरे के पर चर्चा की। केंद्र में रहा कि क्या जोशीमठ आपदा में चारधाम मोटरमार्ग परियोजना अथवा एनटीपीसी द्वारा बनाई जा रही टनल का कोई हाथ है? यद्यपि मैं कोई भूवैज्ञानिक नहीं हूँ और न ही आपदा विषय का कोई विशेषज्ञ ही हूं पर घूमक्कड़ी ज्ञान के आधार पर कह सकता हूं कि जोशीमठ उपशहर प्राचीन भूवैज्ञानिक काल खंड में हुए भूस्खलन के द्वारा लायी गयी मिट्टी के ऊपर बसा है। मिट्टी उच्च हिमालयी क्षेत्र की होने के कारण उसमें मौरेन का अधिक प्रतिशत होना स्वाभाविक है।
इस क्षेत्र में लाइम स्टोन डोलोमाईट एवं उनके अंतर्गत सोप स्टोन जैसे खनिज की चट्टाने पाई जाती हैं। सोप स्टोन घुलनशील व क्ले पार्टिकल से बना होता है। वहीं लाइम स्टोन व डोलोमाइट कैल्शियम प्रधान चट्टाने हैं। जो घुलनशील माने जा सकते हैं। वर्षकाल में जमा पानी के संपर्क में आने पर ये क्ले पार्टीकल व कैल्शियम घुल कर अपना स्थान छोड़कर पानी के साथ बह जाते हैं। उनके स्थान को भरने के लिए दूसरे कण शिफ्ट होते है. यही दरारों के पड़ने की प्रक्रिया है जो बहुत ही धीमी गति से प्रकृति में होती है। किसी भूकंप की स्थिति में ये दरारे चौड़ी हो सकती हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि जोशीमठ के ठीक ऊपर स्थित औली में एक झील स्थित है एवं औली में बर्फ की मोटी चादर रहती हैष वहीं औली से और अपहिल में गौरषो स्थित है जहां वर्ष में सात आठ महीने वर्फ पड़ी रहती है और गोरसो के ऊपर सदाबहार बर्फ का क्षेत्र है। यहां जन्मे पानी का रिसाव स्वभावतः नदी की ओर ही होगा। यहां यह भी गौर करने वाली है कि पिछले वर्ष इस क्षेत्र में भी रिकॉर्ड वर्षा हुई है। जिस कारण भूमिगत जल के भंडार भर गये होंगे वहीं खनिज कणों की घुलन प्रक्रिया में भी वृद्धि हुई होगी।
तीसरा बिंदु आता है अनियंत्रित एवं अवैज्ञानिक निर्माण कार्यों की बाढ़ के कारण निर्मित कनक्रिट के जंगल एक कारक हैं।अब एक बिंदु और हैं कि वृहद निर्माण परियोजनाएं, परियोजनाओं के निर्माण के दौरान प्रयोग किये जा रहे भारी मशीनें, विस्फोटक तथा उतखनन भी इसके लिए अवश्य ही जिम्मेदार हैं। इन सभी कारणों से आज जोशीमठ शहर की यह स्थिति हो गई है कि सनातनी धर्म के एक प्रमुख मठ के परिचालक, एक सभ्यता, एक संस्कृति आज समाप्त हो रही है।
समस्या के हल के लिए सरकार को चाहिए कि सबसे पहले नागरिकों को वहां से हटाए, अति संवेदनशील घरों को तोड़ कर अलग करें, पानी के रिसाव, जो कि इस समस्या का मूल कारण हैं, पानी के उदभव स्थल/स्थलों का पता लगा कर वहां पर ट्रीटमेंट करें जिससे पानी का बहाव नियंत्रित हो और भू-स्खलन को रोका जा सके, आवश्यकतानुसार जगह जगह सुरक्षा दीवारें स्थापित की जाय, स्लोप पर वृक्षारोपण किया जाए। साथ ही उन सभी विस्थापित परिवारों को एक ही जगह पर बसाया जाय उनके लिए स्कूल व अस्पताल भी बनाये जायष मैं यह भी अनुरोध करना चाहूंगा कि बहुत से तकनीकी सर्वे दल जोशीमठ पहुँच रहे हैं, इससे हट के वहां के लोगों की मनोस्थिति को नियंत्रित करने व समझने के लिए मनोविज्ञानियों व समाज शास्त्रियो के भी दल वहां अस्थायी रूप से ही सही स्थापित किए जाएं। जिनमे महिलाए विशेषज्ञ अवश्य हों।