ब्यूरोक्रेसी की कार्यशैली से हाईकोर्ट ‘खफा’ !
उत्तराखंड शासन के तीन आला अफसरों को दी नसीहत
स्वास्थ्य सचिव के शपथपत्र को बताया घटिया
दून में बैठकर आदेश जारी कर रहे पर्यटन सचिव
प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा को अवमानना नोटिस
देहरादून। सरकार का चेहरा भले ही बदल गया हो। लेकिन लगता है कि अफसरशाही अभी भी पुराने ढर्रे पर है। शायद यही वजह है कि नैनीताल हाईकोर्ट भी ब्यूरोक्रेसी की कार्य़शैली से खफा दिख रहा है। हालात ये हैं कि हाईकोर्ट अफसरों को न केवल तलब कर रहा है, बल्कि तल्ख टिप्पणियों के साथ नसीहत भी दे रहा है।
त्रिवेंद्र सिंह रावत के सीएम रहते अफसरशाही पर तमाम सवाल उठते रहे हैं। विधायकों ही नहीं, कई मंत्रियों का भी यही रोना था कि अफसर उनकी बात नहीं सुन रहे हैं। तीन महीने पहले तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उस समय लगा कि अब शायद कुछ और बेहतर होगा। लेकिन हाईकोर्ट की कई मामलों में तल्ख टिप्पणी इस बात का इशारा कर रही है कि ब्यूरोक्रेसी के स्तर पर कुछ अभी तक बदला नहीं है।
नैनीताल हाईकोर्ट पिछले काफी समय से सरकार और अफसरों की कार्यशैली पर पैनी नजर रखे हुए है। सूबे की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर दाखिल एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायमूर्ति की अध्यक्षता वाली खंडपीड ने सरकार को तमाम निर्देश दिए। स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी की ओर से दाखिल एक शपथपत्र पर हाईकोर्ट ने अपनी तल्ख टिप्पणी में लिखा कि इससे घटिया शपथपत्र कभी नहीं देखा। हाईकोर्ट ने नए सिरे से इसे दाखिल करने का आदेश दिया।
चारधाम यात्रा को लेकर दाखिल एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर पर अपनी टिप्पणी में कहा कि देहरादून में बैठकर ही हालात का अंदाजा लगा रहे हैं। दून से चिट्ठी जारी कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ रहे हैं। चारधाम यात्रा और पर्यटन सीजन के चलते जमीनी हकीकत देखने के लिए भ्रमण करना चाहिए थे। हाईकोर्ट ने 16 जून को उन्हें तलब किया है। इसी तरह से देहरादून के एमकेपी कालेज में गबन मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने उच्च शिक्षा सचिव को आदेश दिया था। इस पर अमल नहीं किया गया। इस पर याचिकाकर्ता ने अवमानना याचिका दाखिल की थी। हाईकोर्ट की एकलपीठ ने इसे स्वीकार करते हुए उच्च शिक्षा सचिव आनंद बर्धन को अवमानना का नोटिस जारी किया है।
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