कोरोना महामारीः अब निशाने पर अफसरशाही
नेताओं पर लानत के बाद सोशल मीडिया में छायी ब्यूरोक्रेसी
जमीनी हकीकत नहीं बन पा रहे आदेश दर आदेश
कोई कह रहा छह महीने के अवकाश पर जाएं ये
कोई लिख रहा डियर फाइन ब्रेन्स तुम से न होगा
देहरादून। कोरोना महामारी के इस दौर में परेशान लोगों ने पहले तो नेताओं पर हमला किया। लेकिन अब शायद उनकी समझ में आ गया है कि जमीन पर काम तो अफसरों को ही करना है। ऐसे में सोशल मीडिया में अब ब्यूरोक्रेसी निशाने पर आ गई है। कोई इन्हें डियर फाइन ब्रेन्स कहकर भड़ास निकाल रहा है तो कोई कह रहा है कि अगर ये मसूरी प्रशिक्षित छह माह के सामूहिक अवकाश पर चले जाएं तो समस्या हल हो जाएगी।
महामारी के इस दौर में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत फील्ड में दौरा कर हकीकत देख रहे हैं तो जमीनी काम के लिए जिम्मेदार अफसर इन दिनों आदेश दर आदेश का ही खेल कर रहे हैं। अगर यह मानीटरिंग की जाती कि उन पर कितना अमल हो रहा है तो पिछले साल के आदेशों से ही सूबे की इतनी बुरी स्थिति न होती। जाहिर है कि जिम्मदार अफसरों ने यह देखा ही नहीं कि उनके आदेश जमीनी हकीकत में बदले या नहीं।
शायद यही वजह है कि नेताओं की लानत मनानत के बाद सोशल मीडिया में सूबे की अफसरशाही निशाने पर आ गई है। हिमांशु अग्रवाल ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है कि अगर ये मसूरी प्रशिक्षित छह माह के सामूहिक अवकाश पर चले जाएं तो विश्वास मानिए उत्तराखंड समस्या मुक्त हो जाएगा। अखिलेश डिमरी ने तो अफसरों को फाइन ब्रेन्स का नाम दिया है। डिमरी रोजाना ही इन डियर फाइन ब्रेन्स के कामों पर हमला कर रहे हैं। समाजसेवी अनूप नौटियाल ने सीधे तो अफसरों का जिक्र नहीं किया। पर यह जरूर लिखा कि पिछले बीस वर्षों में पब्लिक हेल्थ कभी बड़ा मुद्दा रहा ही नहीं। जिस दिन लोग मुखर होकर बेहतर सुविधाओं की मांग करेंगे। उसी दिन से सुधार आने लग जाएगा। अनूप तो इसके लिए एक जन आंदोलन की पैरोकारी भी करते दिख रहे हैं।
अखिलेश ने अपनी एक पोस्ट में उत्तराखंड सरकार को भी इस तरह से नसीहत दी है। वे लिखते हैं सुनिये सरकार….! हालांकि इस सूबे में सत्ता मिलने के बाद आम जन की सलाह लेने की परंपरा है नहीं पर हम भी बेशर्म की तरह सलाह देना छोड़ेंगे नहीं। आज की सलाह यह है कि जिन स्थाई तनख्वाह वाले साहबों की हरकतों पर यदि अंकुश न लगा तो इसी सूबे का इतिहास गवाह है कि इन्होंने अस्थाई तनख्वाह वालों को भी समय से पहले ही पैदल कर दिया। सनद रहे कि यदि आदेशों की प्रतिपूर्ति की एवज में फ़ाइल फाइल खेलने का मौका दिया जाना बिल्कुल सही नहीं, अतः नाफरमानी करने अथवा लेट लतीफी करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करते हुए संदेश दिया जाना अति आवश्यक है। हुजूर यदि आपके द्वारा दिये गये आदेशों की प्रतिपूर्ति में भी वक्त लगाया जाएगा यो समझिये कि आम आवाम के लिए इनके क्या हाल होते होंगे…?। सनद रहे कि आपके आदेशों के अनुपालन के लिए किसी को भी ईद, शनिवार, इतवार की छुट्टी मायने नहीं होती और यदि किसी के लिए छुट्टी मायने होती हो तो फिर वो आपके लिए मायने नही होना चाहिए। बदल डालिये तुरंत ताकि संदेश चला जाए। बल्कि दो चार की तो NOC ही काट डालिए।
एक साल से क्या जुगाली कर रहा था विभाग
पलायन एक चिंतन के संयोजक और समाजसेवी रतन सिंह असवाल ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा है कि आप कह रहे हैं किइलाज हम कर रहे है लेकिन हमारी प्राथमिकता में संक्रमण रोकना है। ये कौन सी नई बात कही बाबूजी आपने ?। वैसे भी पिछले 20 वर्षो से स्वास्थ्य सेवाएं वर्ष दर वर्ष बीमार ही हुई है स्वस्थ नहीं। बादबाक़ी यदि प्रार्थमिकता में संकरण रोकना ही था? तो क्या रोक पाए हो। यदि नही तो विगत एक वर्ष से आपका विभाग या तो जुगाली कर रहा था या क्या घुंये छिल रहा था। जनता को उत्तर तो देना ही होगा। भोलेनाथ की धरती है यह। हिसाब मांगता है हर कंकड़ और पौधा और हर जीवित जीव। बस यहां सब पकने के बाद होता है और अब जनता लगभग पक चुकी है साहब आप लोगो की अकर्मण्य और राज्य विरोधी सोच से।
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