एक्सक्लुसिव

उत्तराखंड को सशक्त भू कानून की दरकार

पहाड़ में तेजी से बढ़ रही जमीन की खरीद-फरोख्त

दूसरे राज्य के लोग पहाड़ में खरीद रहे हैं जमीन

पलायन एक चिंतन ने शुरू किया पक्ष में अभियान

देहरादून। कोरोना महामारी के बाद पहाड़ में भूमि खरीदने के लिए बाहरी राज्यों के बाशिंदों की संख्या में भारी इज़ाफ़ा देखने को मिल रहा है। ऐसा अचानक ही हुआ है। इन हालात में पलायन एक चिंतन टीम ने उत्तराखंड में एक सशक्त भू-कानून बनाने के पक्ष में एक अभियान शुरू कर दिया है।

पलायन एक चिंतन के संयोजक और समाजसेवी रतन सिंह असवाल कहते हैं कि राज्य में तत्काल ही एक सशक्त भू-कानून की जरूरत है। कोरोना महामारी के दौरान उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों के दूरदराज गांवों में भी बाहरी प्रदेश के लोगों द्वारा जमीने खरीदने के प्रयास किए जा रहे हैं। यह भविष्य में पहाड़ के सामाजिक ताने बाने, संस्कृति व बोली-भाषा के लिए खतरे का कारण बन सकता है। इसके चलते राजनीतिक प्रतिनिधित्व के भी प्रभावित होने का  अंदेशा है।

असवाल कहते हैं कि 250 मीटर भूमि खरीदने के नियम के बावजूद बड़ी चतुराई से खरीददारों, पटवारी-लेखपालों और रजिस्ट्रार आदि की मिलीभगत से एक ही परिवार के दो या दो से अधिक सदस्यों के नाम से बड़ी जमीनें बेची और खरीदी जा रही हैं। इस मिलीभगत के कारण पहाड़ के गांवों में बड़े पैमाने पर कृषि भूमि पर बाहरी लोगों का स्वामित्व होने लगा है।

पलायन एक चितंन के संयोजक असवाल ने कहा कि कोविड के पश्चात मची इस होड़ के बाद अब समय आ गया है कि उत्तराखंड में भी हिमांचल अथवा पूर्वोत्तर के राज्यों की भांति कृषि भूमि की खरीद फ़रोख्त के कड़े नियम लागू किए जाएं। यदि राज्य के  राजनेता और नीति नियंता प्रदेश की तराई अथवा मैदान को लेकर ऐसे कानूनों को लागू करने में सियासी जोखिम समझते हों तो कम से कम नौ पर्वतीय जनपदों में हर हाल में कृषि भूमि की खरीद फ़रोख्त को नियंत्रित करने के लिए कड़े कानून अब नितांत आवश्यक हो गए हैं। वैसे भी सरकार की पर्वतीय नीति अलग ही रहती है। यदि इसी प्रकार से पहाड़ में जमीनों का स्वामित्व बाहरी लोगों के हाथों में जाता रहा तो पहाड़ की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक अस्मिता को बचाये रखना सम्भव नहीं होगा। इन हालात में राज्य गठन की मूल अवधारणा और राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिकी के अस्तित्व के लिए निमित्त इस भगीरथ प्रयास में पलायन एक चिंतन को सभी के मार्गदर्शन और सहयोग की अपेक्षा है। वैसे भी आपदाओं और पहाड़ का चोली दामन का साथ है। इस सच्चाई से इंकार नही किया जा सकता है। इस राज्य को को अन्य पर्वतीय राज्यों की तरह एक सशक्त भू-कानून की आवश्यकता इसलिए भी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button