राजनीति

पांच सीएम फिर न बन सके विधायक

खंडूड़ी और हरदा तो मुख्यमंत्री रहते हारे चुनाव

दो सीटों से हारने वाले पहले सीएम बने हरीश

हरदा के सीएम रहते ही लगा राष्ट्रपति शासन

अब तक के सभी शिक्षा मंत्री हार चुके चुनाव

सीएम की शपथ लेने वाले पहले विधायक त्रिवेंद्र

देहरादून। बीस साल के इस उत्तराखंड की सियासत में कई अजब-गजब किस्से हैं। इस अवधि में अगल-अगल वजहों से पांच मुख्यमंत्री फिर से विधायक नहीं बन सके। दो नेताजी तो सीएम रहते हुए भी विधायक का चुनाव नहीं जीत सके। अब तक जितने भी शिक्षा मंत्री रहे सभी को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। त्रिवेंद्र सिंह रावत पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने विधायकी जीतने के बाद इस पद की शपथ ली। इस अवधि में उत्तराखंड ने चंद दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन भी देख लिया।

स्व. नित्यानंद स्वामी

पहले बात फिर विधायक न बन पाने वाले मुख्यमंत्रियों की। यूपी विधान परिषद के सभापति रहे नित्यानंद स्वामी अगल राज्य बने उत्तराखंड की अंतरिम सरकार में पहले सीएम बने। स्व. स्वामी ने इसके बाद 2002 और 2007 का विधानसभा चुनाव लड़ा। लेकिन उन्हें जीत नसीब न हो सकी।

स्व. एनडी तिवारी

कांग्रेसी दिग्गज नारायण दत्त तिवारी ने विधायक से पहले सीएम पद की शपथ ली। बाद में रामनगर से चुनाव जीते। लेकिन 2007 के चुनाव में उन्होंने चुनाव ही नहीं लड़ा और बाद में आंध्र प्रदेश के राज्यपाल बनकर चले गए।

बीसी खंडूड़ी

मेजर जनरल (से.नि.) बीसी खंड़ूड़ी 2007 में सीएम बने। उन्होंने भी विधायक का चुनाव बाद में जीता। 2012 के चुनाव आम चुनाव में तत्कालीन सीएम खंडूड़ी को कोटद्वार सीट से हार का सामना करना पड़ा।

विजय बहुगुणा

2012 में कांग्रेस की सरकार में विजय बहुगुणा सीएम पहले बने और सितारगंज से विधायक का चुनाव बाद में जीते। सीएम की कुर्सी से हटने के बाद वे भाजपा शामिल हो गए। 2017 के चुनाव में भाजपा ने विजय बहुगुणा की बजाय उनके पुत्र सौरभ बहुगुणा को सितारगंज से टिकट दिया।

हरीश रावत

कांग्रेसी दिग्गज हरीश रावत भी उन मुख्यमंत्रियों में शामिल हैं। 2017 के चुनाव में हरीश रावत मुख्यमंत्री रहते दो विस सीटों किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण से किस्मत आजमाई। लेकिन उन्हें दोनों ही सीटों पर हार का सामना करना पड़ा।

त्रिवेंद्र सिंह रावत

2002, 2007 और 2012 के चुनाव का एक अजब मामला और भी है। तीनों आम चुनाव के बाद ऐसे नेताओं ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जो विधायक नहीं थे। 2002 में एनडी तिवारी फिर 2007 में बीसी खंड़ूड़ी और 2012 में विजय बहुगुणा और 2014 में हरीश रावत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। ये चारों ही विधायकी का चुनाव बाद में लड़े और जीते। आम चुनाव के बाद के इस सियासी तिलिस्म को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 2017 के चुनाव में तोड़ा। इस चुनाव में वे डोईवाला सीट से विधायक बने और उत्तराखंड में पहली बार किसी विधायक ने सीएम पद की शपथ ली। वैसे इससे पहले खंडूड़ी के सीएम पद से हटने के बाद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने भी विधायक रहते ही सीएम की शपथ ली थी। लेकिन आम चुनाव के बाद त्रिवेंद्र को पहली बार विधायक दल का नेता चुना गया था।

महज बीस साल के इस सियासी सफर में उत्तराखंड को राष्ट्रपति शासन भी देखना पड़ा। हरीश रावत की सरकार से बगावत करने वाले कांग्रेसी विधायकों की मदद से सरकार बनाने की कोशिश भाजपा ने की थी। इसी सियासी खेल के चलते केंद्र ने यहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट में खुद को फंसता देख केंद्र ने इसे खुद ही हटा दिया था।

उत्तराखंड की सियासत में एक और मिथक भी खूब चला। अंतरिम सरकार से लेकर हरीश रावत तक की सरकार में जिस विधायक ने भी शिक्षा मंत्रालय का प्रभार संभाला। उसे अगले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है।

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