उत्तराखंड में नहीं होता ग्लेशियरों पर अध्ययन
वाडिया इंस्टीट्यूट ने बंद कर दिया ग्लेशियरोलॉजी विभाग
जिम्मेदार लोगों के देना होगा सवालों का जवाब
हिमाचल में जापान की कंपनी कर रही है काम
मनमोहन भट्ट
देहरादून। चमोली में आपदा ने भारी तबाही मचाई है। अब तमाम ऐसे सवाल खड़े हो रहे हैं जिसका जवाब जिम्मेदार लोगों को देना ही होगा। मसलन उत्तराखंड में ग्लेशियरों का अध्ययन क्यों नहीं किया जा रहा है और बांध बनाने वाली कंपनियां इनकी मानीटरिंग आखिर क्यों नहीं कर सकती है। सवाल उन लोगों से भी पूछा जाना चाहिए, जिन्होंने बांध बनाने की मंजूरी या सहमति दी।
पड़ोसी राज्य हिमाचल में ग्लेशियरों का पूरा वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। ग्लेशियर पर कितनी बर्फ है, वहां का तामपान किस-किस तरह से बदल रहा है और वहां पानी की कोई झील तो नहीं बन रही है, इसका पूरा रिकार्ड रखा जाता है। हिमाचल सरकार ने यह काम जापान की एक कंपनी को दिया है।
उत्तराखंड में ऐसा कुछ नहीं होता है। देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट में दो साल पर इन ग्लेशियरों के अध्ययन के लिए बाकायद ग्लेशियरोंलॉजी डिपार्टमेंट खोला गया गया था। इस विभाग के क्या काम किया, इसकी तो कोई जानकारी नहीं है। लेकिन पिछले साल इस विभाग को ही बंद कर दिया गया। सवाल यह खड़ा हो रहा है कि उत्तराखंड में आखिरकार इन ग्लेशियरों के वैज्ञानिक अध्ययन की आखिर कोई पुख्ता व्यवस्था क्यों नहीं है।
सवाल उन कंपनियों से भी पूछा जाना चाहिए, जो इन ग्लेशियरों के पानी से बिजली का उत्पादन करती है। ये बांध पूरी तरह से इन्ही ग्लेशियरों पर निर्भर हैं। तो ये कंपनियां इन ग्लेशियरों की मानीटरिंग क्यों नहीं करती है। क्या इनका काम केवल ग्लेशियरों से कमाई करने तक ही सीमित है। परियोजना की मंजूरी देते वक्त सरकारें या अन्य संस्थाएं कंपनियों के साथ इस बारे में कोई करार क्यों नहीं करती है।
चमोली आपदा ने एक बांध और परियोजना पूरी तरह से तबाह हो गई है। बताया जा रहा है कि जिस चट्टान या मिट्टी पर कंक्रीट के जंगल खड़े किए गए थे, वह चट्टान पूरी तरह से बह गई। ऐसे में सवाल उन लोगों से भी पूछा जाना चाहिए, जिन्होंने वैज्ञानिक अध्ययन के बाद उस चट्टान या मिट्टी को बांध के लिए उपयुक्त बताकर अपनी मंजूरी दी थी।
जिम्मेदार लोगों को इन सवालों के जवाब देने चाहिए और भविष्य के लिहाज से अपनी रणनीति में बदलाव भी करना चाहिए, तभी दैवीय आपदा से बचा जा सकता है।