… तो अवाम को रास नहीं आया इनका ‘दलबदल’ !

‘चौबेजी’ बनने चले थे ‘छब्बेजी’ लेकिन बने ‘दुबेजी’
बमुश्किल ही बाजपुर से जीत सके य़शपाल
पुत्र संजीव को नैनीताल सीट से मिली हार
हरक को नहीं मिल सका कांग्रेस का टिकट
पुत्र वधु अनुकृति खुद भी लैंसडौन से हारी
देहरादून। ऐन चुनावी मौके पर दल-बदल करने वाले दो नेताओं का बार-बार दलबदल करना अवाम को रास नहीं आया। स्थिति ऐसी हो गई, मानो चौबे जी छब्बे जी बनने चले हों और बन गए हों दुबे जी। एक नेता जी बमुश्किल अपनी सीट बचा सके। लेकिन पुत्र को हार का सामना करना पड़ा। दूसरे नेता जी को तो टिकट ही न मिला। पुत्र वधु को मिला भी तो हार का मुंह देखना पड़ा।
2012 में कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे डॉ. हरक सिंह रावत 2016 में पार्टी से बगावत करके भाजपा में शामिल हो गए। 2017 के चुनाव से ऐन पहले इसी कांग्रेस सरकार के काबीना मंत्री य़शपाल आर्य़ भी भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने हरक सिंह रावत और य़शपाल को तो टिकट दिया ही, शर्त के अनुसार आर्य़ के पुत्र संजीव को भी नैनीताल से टिकट दिया। तीनों ने भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की। भाजपा सरकार में आर्य और हरक को कैबिनेट मंत्री बनाया गया।
साढ़े चार साल मंत्री रहने के बाद 2022 के चुनाव से छह माह पहले य़शपाल आर्य को पता चला कि भाजपा लोकतंत्र की पक्षधर नहीं है। ऐसे में वे अपने पुत्र के साथ वापस कांग्रेस में आ गए। दूसरी ओर हरक सिंह की बारगेनिंग से परेशान भाजपा ने उन्हें मंत्री पद से हटाकर भाजपा से निकाल दिया। तमाम पापड़ बेलने के बाद हरक की कांग्रेस में एंट्री हो सकी। इस चुनाव में कांग्रेस ने य़शपाल आर्य को बाजपुर और उनके पुत्र संजीव को नैनीताल से टिकट दिया। हरक सिंह को कहीं से टिकट नहीं दिया पर उनकी पुत्र वधु अनुकृति को लैंडडौन से कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया।
लेकिन लगता है कि अवाम को इन नेताओं का बार-बार दल-बदल करना रास नहीं आया। हालात ये बने कि संजीव नैनीताल से और अनुकृति लैंसडोन से चुनाव हार गईँ। बाजपुर में जीत के लिए एक लगभग अंजान से चेहरे वाले भाजपा प्रत्याशी के सामने एक बार तो दिग्गज य़शपाल के भी पसीने आ गए। हर चुनावी हथकंडा अपनाने के बाद भी महज 1600 मतों के मामूली अंतर से ही आर्य़ बाजपुर सीट बचा सके।