राजनीति

हम शर्मिंदा हैं एक मंत्री के एक ‘लफ्ज’ से

सियासतः इसी पर हरदा ने पीएम मोदी से पूछा सवाल

राजेश पांडेय

देहरादून। हम शर्मिंदा इसलिए हैं, क्योंकि हम लोगों ने ही उत्तराखंड में राजनीति करने वाले उन लोगों को आगे बढ़ाया, जो गलत शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। वो उन शब्दों को सार्वजनिक तौर पर बोलते हैं, जिनका प्रयोग घर परिवार या सार्वजनिक स्थानों पर नहीं किया जाता। यह नया शब्द इसलिए भी बेचैन करता है, क्योंकि राजनीति में वो लोग आगे बढ़ गए, जिनको यह समझ तक नहीं है कि क्या बोलना है और क्या नहीं बोलना है।

चुनाव का मौसम है और एक दूसरे को आरोप- प्रत्यारोप से घेरने की तैयारी हो रही है। जनता को वोट बैंक समझने वालों ने वादे,  इरादे, संकल्प,  घोषणाओं,  आशीर्वाद, परिवर्तन, सेवाभाव, नेक इरादों, नेक नीयत जैसे तमाम शब्दों का इस्तेमाल किया है। इन शब्दों पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है और न ही होनी चाहिए।  राजनीति करने वालों को जनता के बीच अपनी बात रखने के लिए कुछ शब्द और वाक्य तो चाहिए ही।

चुनाव के वक्त बहुत सारी घोषणाएं कीजिए और  यह भी मत देखिए कि इनके लिए बजट कहां से आएगा। वादों की झड़ी लगा दीजिए। कोरोना संक्रमण की अपनी ही नसीहत की धज्जियां उड़ाते हुए जमकर रैलियां कीजिए। हमको कोई आपत्ति नहीं है। पर,  जुबान को फिसलने से रोक लीजिए। कुछ भी बोलने से पहले सोच लीजिए।

सियासत में इस नये शब्द पर कहने, लिखने और बोलने के लिए बहुत कुछ है। हम यह भी जानते हैं कि यह शब्द किसके लिए इस्तेमाल किया गया है और क्यों किया गया है। पर दो दिन तक इस पर इसलिए भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया, क्योंकि हमें इस तरह की सियासी बदजुबानी पसंद नहीं है। इस पर और इसका राजनीति में प्रवेश कराने वाले पर ध्यान देना, समय की बर्बादी ही कहा जाएगा।

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अब जब इसको सोशल मीडिया पर सार्वजनिक किया ही जा चुका है, तो फिर अपनी बात कहना तो बनता है। ट्वीट करके जनता से संवाद करने वाले, सियासत में घमासान मचाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस नये शब्द पर अपने विरोधी नेताओं की घेराबंदी शुरू कर दी है। हालांकि, हरीश रावत ने इस नये शब्द को सार्वजनिक करने से परहेज नहीं किया, क्योंकि वो इस पर जमकर सियासत करना चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि पूर्व मुख्यमंत्री की पार्टी के नेता बदजुबानी नहीं करते। कर्नाटक के एक विधायक की बदजुबानी तो सबको याद है।

बात करते हैं पूर्व मुख्यमंत्री के ट्वीट की, जिसमें उन्होंने लिखा है क्या प्रधानमंत्री जी जवाब देना पसंद करेंगे कि देशभर में सरकारी सब्सिडी से अपने जीवन यापन करने वाले, सरकारी अनुदान से खड़े होने वाले और आगे पल्लवित-पुष्पित होने वाले सब लोग ……. हैं? मोदी जी आपके एक मंत्री जो उत्तराखंड में भाजपा के प्रवक्ता भी हैं, वो ऐसे लोगों को.…….. शब्द से नवाजते हैं।  

रावत लिखते हैं, मैं देश के करोड़ों- करोड़ों, अरबों में यह संख्या है, उन सबसे क्षमा प्रार्थी हूँ कि सार्वजनिक जीवन में सिद्धांत है- जो नीचे गिरा है उसको ऊपर उठाओ, जो ऊपर उठ करके आगे बढ़ रहा है उसको अंगुली पकड़ करके मजबूती से आगे बढ़ाओ और सरकारें लोगों की लाठी बनती हैं और उस पर गर्व करती हैं, मगर उत्तराखंड के भाजपा के प्रवक्ता ऐसे सब लोगों को ……. जैसे शब्दों के लपेटे में लेने का कुप्रयास करते हैं। रावत लिखते हैं, उत्तराखंड की धरती से इतना घृणित शब्द उच्चारित हुआ है, मैं बहुत दु:खी हूं। क्या मोदी जी आपको भी कुछ दु:ख है?

हमने हरीश रावत के सोशल मीडिया कथन को लिखा, पर उस शब्द के स्थान पर ब्लैक स्पॉट दिया है। जिम्मेदार मीडिया होने के नाते हम इस शब्द का इस्तेमाल करके किसी की राजनीति महत्वाकांक्षाओं को पूरा नहीं करना चाहते। पर, राजनीति के बदलते रूप को सबके सामने लाना तो अत्यंत आवश्यक है। वो भी उस स्थिति में जब उत्तराखंड में जनता के मुद्दों की कमी नहीं हैं। सुविधाओं के इंतजार मे गांव खाली हो रहे हैं और विद्यालयों के भवन जर्जर हैं। खेती किसानी के हाल भी बहुत अच्छे नहीं हैं। बच्चों को कई किमी. चलने के बाद अपने स्कूल दिखाई देते हैं। मातृशक्ति को पीने का पानी लाने के लिए कई किमी. चलना पड़ता है।

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