राजनीति

तो पूर्व सीएम त्रिवेंद्र से ही नाराज था हाईकमान !

पूरी कैबिनेट रिपीट होने से सियासी गलियारों में चर्चा

महाराज का दो नंबर का रूतबा रहा बरकरार

चर्चित हरक सिंह रावत की कुर्सी हुई बहाल

रेखा आर्य को भी हाईकमान की क्लीन चिट

देहरादून। शुक्रवार को तीरथ सिंह रावत की कैबिनेट के शपथ ग्रहण के बाद एक बात साफ हो रही है कि भाजपा हाईकमान की नाराजगी केवल पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत से थी। इसे इस तथ्य के प्रकाश में देखें कि एक तो त्रिवेंद्र की पूरी कैबिनेट को नए सिरे से बहाल किया गया तो हरक सिंह रावत और रेखा आर्य पर पूर्व सरकार के प्रहारों को कोई तव्वजों नहीं दी गई है। इतना ही नहीं त्रिवेंद्र से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले सतपाल महाराज का दो नंबर का दर्जा बरकरार रखा है।

त्रिवेंद्र की कुर्सी छीनने के बाद कांग्रेस और आप लगातार यह सवाल उठा रहे हैं कि आखिरकार उनका कसूर क्या था। वो गलत थे तो चार साल तक क्यों ढोया गया और अगर सही थे तो हटाया क्यों गया। विपक्ष के इन सवालों का भाजपा हाईकमान ने अपने अंदाज में जवाब दिया है। तमाम आशंकाओं को दरकिनार करके भाजपा से त्रिवेंद्र कैबिनेट के सभी मंत्रियों को फिर से पद दे दिया है। एक मात्र मदन कौशिक को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाने की वजह से बाहर किया गया है। यह इस बात का इशारा कर रहा है कि भाजपा हाईकमान को दिक्कत त्रिवेंद्र से थी, न कि उनके सहयोगियों से।

यहां यह लिखना भी समीचीन होगा कि त्रिवेंद्र के सीएम रहते हरक सिंह रावत और रेखा आर्य पर तमाम आरोप लगे। हरक के विभाग पर तमाम हमले किए गए। महाराज को उनके विभागों के कार्य़क्रमों में ही नजरअंदाज किया गया। महाराज ने तो त्रिवेंद्र के ड्रीम प्रोजेक्ट के खिलाफ जांच भी बैठा रखी है। हरक सिंह पर भी तमाम हमले हुए। त्रिवेंद्र की रवानगी के बाद यह माना जा रहा था कि हरक सिंह रावत, अरविंद पांडेय और रेखा आर्य़ पर गाज गिर सकती है। साथ ही त्रिवेंद्र के बेहद करीबी धन सिंह रावत और मदन कौशिक के कद में इजाफा हो सकता है। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। सभी अपने पद पर रहे और मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। इतना ही नहीं त्रिवेंद्र के खिलाफ सरेआम बोलने वाले बिशन सिंह चुफाल को भी कैबिनेट मंत्री बनाया गया है।

इस प्रकरण के बाद विपक्ष एक बार फिर हमलावर होने की तैयारी में है। विपक्ष पहले ही कह चुका है कि भाजपा ये बताए कि त्रिवेंद्र अगर ईमानदार थे तो हटाया क्यों और कोई खामी थी तो चार साल तक उत्तराखंड पर जुल्म क्यों ढाया गया।

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