संभव ही नहीं विस सत्र का टलना
दो सिटिंग के बीच छह माह से अधिक गैप बना तो संवैधानिक संकट
विगत 25 मार्च को था पिछले सत्र का अंतिम दिन
दो सत्रों में अधिकतम 180 दिन का गैप ही मान्य
कोरोना महामारी से सरकार के सामने है संकट
देहरादून। कोरोना महामारी की वजह से 23 सितंबर से प्रस्तावित विधानसभा सत्र को लेकर सरकार के सामने तमाम तरह की परेशानियां हैं। मीडिया में कयास लगाए जा रहे हैं कि विस का सत्र टल सकता है। लेकिन ऐसा संभव नहीं हैं। सत्र आगे बढ़ने की दशा में संवैधानिक संकट खड़ा हो जाएगा।
सरकार ने 23 से 25 सितंबर तक विधानसभा का सत्र आहूत किया है। विस सचिवालय स्तर से इसकी तैयारियां शुरू हो गई हैं। लेकिन कोरोना महामारी की वजह से तमाम तरह की दिक्कतें आ रही है। विस मंडप में इतनी जगह नहीं है कि 71 विधायकों को कोविड-19 के डिस्टेंसिंग के मानकों के अनुसार बैठाया जा सके। इसके अलावा मीडिया गैलरी में भी ऐसी ही स्थिति है। स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल तमाम संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं। लेकिन व्यवस्था बन नहीं पा रही है।
उधर, सरकार की ओर संसदीय कार्य देखने के लिए नामित काबीना मंत्री मदन कौशिक खुद ही कोरोना की चपेट में आ गए हैं। उन्हें भी कम से कम 15 दिन चाहिए पूरी तरह से दुरुस्त होने के लिए। ऐसे में उनके सामने सदन में विपक्ष के तेवरों को झेलने और जबाव देने के लिए तैयारियों का भी वक्त नहीं है। इन हालात में मीडिया में इस तरह की बात की जा रही है कि सत्र को आगे के लिए टाला जा सकता है।
जानकारों का कहना है कि सत्र का टलना या आगे बढ़ाया जाना संभव ही नहीं हैं। ऐसा होने पर सरकार के सामने संवैधानिक संकट खड़ा हो जाएगा। संविधान की व्यवस्था के अनुसार एक सत्र की अंतिम सिटिंग और अगले सत्र की पहली सिटिंग के बीच 180 दिन से अधिक का अंतर नहीं हो सकता है। बजट सत्र की अंतिम सिंटिग 25 मार्च को हुई थी। ऐसे में नए सत्र की पहली सिटिंग 23 सितंबर हो ही होना जरूरी है। अगर ऐसा नहीं होता है तो सरकार के सामने संवैधानिक संकट खड़ा जाएगा। अब सत्र को वर्चुअल कराया जाए या फिर कोविड प्रोटोकॉल के साथ कोई नई व्यवस्था बनाई जाए। लेकिन विधानसभा का सत्र किसी भी दशा में 23 सितंबर से ही शुरू होगा।