जांच के दायरे मनमानी नियुक्तियां और सचिव की पदोन्नति

‘प्रेम’ के सियासी भविष्य़ पर मंडराया संकट !
स्पीकर ऋतु के पहले कदम से मिल रहे हैं ऐसे संकेत
खास चहेते सचिव मुकेश सिंघल को भेजा छुट्टी पर
विस में सचिव का दफ्तर भी करा दिया गया है सील
कमेटी के अध्यक्ष और सदस्य हैं कार्मिक के विशेषज्ञ
पूर्व स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल पर नहीं होगा असर
देहरादून। विधानसभा में मनमानी नियुक्तियों और पदोन्नतियों की जांच का हाईपावर कमेटी गठित करने वाली स्पीकर ऋतु खंडूड़ी का पहला एक्शन कुछ खास संदेश दे रहा है। स्पीकर ने मौजूदा मंत्री और पूर्व स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल के सबसे चहते सचिव मुकेश सिंघल को लंबी छुट्टी पर भेजकर उनका दफ्तर सील करा दिया है। सियासी जानकार स्पीकर के इस एक्शन को मंत्री प्रेमचंद के सियासी भविष्य पर संकट मान रहे हैं।
स्पीकर ने जांच की जो समय सीमा तय की है, उसमें कुंजवाल और प्रेमचंद का कार्यकाल आ रहा है। कुंजवाल कांग्रेसी हैं और सत्ता से बाहर है। ऐसे में उन्हें कोई खास नुकसान नहीं होने वाला। लेकिन प्रेमचंद इस समय काबीना मंत्री हैं और जांच का नतीजा उन पर संकट ला सकता है। वैसे भी स्पीकर का पहला सख्त एक्शन खासा चौंकाने वाला हैं। उन्होंने सचिव मुकेश सिंघल को लंबी छुट्टी पर भेजकर उनका दफ्तर सील करा दिया है। यहां बता दें कि प्रेमचंद ने तमाम नियमों को दरकिनार करके मुकेश को एक साल में तीन प्रमोशन दिए और महज शोध अधिकारी जैसे एक छोटे से कर्मचारी से विधानसभा सचिव के ओहदे तक पंहुचा दिया। मीडिया ने जब इस बारे में सवाल पूछा तो सीना ठोंक कर कहा कि हां, तीन प्रमोशन देकर सचिव बनाया है।
बताया जा रहा है कि भाजपा हाईकमान ने प्रेमचंद के कामों और फिर उनके चुनौतीपूर्ण अंदाज में मीडिया से बात करने को खासी गंभीरता से लिया है। शायद यही वजह है कि स्पीकर ने उनके चहेते सचिव के खिलाफ पहली नजर में ही सख्त एक्शन ले लिया है। जाहिर है कि अगर भाजपा हाईकमान ने प्रेमचंद के कामों पर गंभीरता से मंथन किया है तो उनके सियासी भविष्य पर संकट लाजिमी है।
एक अहम बात यह भी है कि स्पीकर ने जो कमेटी बनाई है, उसमें शामिल अफसर बेहद सख्त रहे हैं। पूर्व प्रमुख सचिव डीके कोटिया और पूर्व कार्मिक सचिव एसएस रावत ने नियमों के खिलाफ कभी कोई काम नहीं किया। ये अफसर बगैर किसी दबाव में आए अपने नियमानुसार काम के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में इस बात की संभावना नगण्य ही है कि इनकी जांच को कोई भी सियासी नेता या किसी अन्य तरह का दबाव प्रभावित कर पाएगा। इस लिहाज से भी प्रेमचंद का सियासी भविष्य उज्जवल नहीं दिख रहा है।