‘घुड़सवार’ सीएम धामी के ‘घोड़ों’ की चिंता में हरदा ‘हलकान’
नहीं तलाश कर पाए एक अदद वित्त सचिव
सोशल मीडिया में साझा की पुष्कर के प्रति ‘चिंता’
सीएम को फ्रंट से लीड करने की दे डाली ‘नसीहत’
सत्ता के नजदीकी कई ब्यूरोक्रेट हो रहे हैं ‘बेपरवाह’
राज्यहित में अच्छी नहीं होती बेपरवाह ‘ब्यूरोक्रेसी’
देखेंगे कितनों को दी जाती ‘जबरिया’ सेवा निवृति
देहरादून। सियासी तौर पर फिलवक्त ‘खाली’ बैठे कांग्रेसी दिग्गज हरीश रावत को इस समय सीएम पुष्कर सिंह धामी की टीम की चिंता सता रही है। हरदा ने फेसबुक पर लिखी एक पोस्ट में सीएम को तमाम नसीहतें दे डाली हैं। हरदा ‘घुड़सवार’ धामी के ‘घोड़ों’ को लेकर इतने मायूस हैं कि वे एक अदद वित्त सचिव की तलाश भी न कर सके।
पूर्व सीएम हरदा ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है “कि ब्यूरोक्रेसी को मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है, उन्हें फ्रंट से लीड करना पड़ता है। चाहे मुख्यमंत्री जी हों, चाहे मंत्रीगण हों, उन्हें एक बात समझनी पड़ेगी कि ब्यूरोक्रेसी से संवाद समाचार पत्रों के जरिए नहीं होता है। यदि आपको संवाद करना है तो आपको फाइल में, मंत्रिमंडल के निर्णयों में, जहां आप निर्माण कार्य कर रहे हैं या कोई निर्णय कर रहे हैं, उस स्थल पर जाकर नेतृत्व देना पड़ता है। यदि आप फ्रंट से लीड कर रहे हैं तो निश्चय जानिए ब्यूरोक्रेसी आपका अनुकरण करेगी ही करेगी। राज्य में ब्यूरोक्रेसी की स्थिति इस समय चिंताजनक है। सचिव स्तर पर निर्णय लेने वाले लोग घट रहे हैं। मैं पिछले कुछ दिनों से एक अदत प्रमुख सचिव वित्त या सचिव वित्त की अपने मन में तलाश कर रहा हूं, 1-2 नाम टकरा रहे हैं, लेकिन उन नामों में निर्णायक रूप से मन ठहर नहीं रहा है”।
हरदा लिखते हैं कि “राज्य के सामने कुछ गंभीर चुनौतियां हैं, सबसे बड़ी चुनौती है वित्तीय संसाधनों को बढ़ाने की। पिछले दिनों मुख्यमंत्री जी ने केंद्र सरकार में एक जबरदस्त दस्तक दी, तो मैंने भी शाबाश कहा। क्योंकि वह भी संसाधन बढ़ाने का एक सशक्त माध्यम है और भी बहुत सारे उपाय राज्य सरकार को करने होंगे, मगर इस प्रकार की कोई सोच दिखाई नहीं दे रही है। राज्य के सम्मुख बढ़ती हुई बेरोजगारी एक बड़ी चुनौती है। चुनाव से पहले तो हल्ला-गुल्ला सुनाई दे रहा था, वह अब गायब है। यूं तो राज्य के शायद सभी प्रमुख विभागों के ढांचे चरमराये हुए हैं, मगर शिक्षा और स्वास्थ्य का ढांचा चिंताजनक स्तर पर चरमरा चुका है, उसको व्यवस्थित करने की दिशा में कोई सशक्त पहल होती हुई नहीं दिखाई दे रही है। हमारी रुचि भी यह जानने में है कितने अक्षम लोगों को राज्य सरकार चिन्हित करती है और उनको जबरिया सेवानिवृत्ति पर भेजती है! मगर और भी बहुत सारे कदम हैं जिसकी राज्य सरकार से अपेक्षा है, वो उठाएं और फ्रंट से लीड करते हुए दिखाई दें।
वो आगे लिखते हैं कि “कल मैं ऐसे कुछ चुनौतीपूर्ण कार्यों का जिक्र करूंगा, जिनको तत्कालीन सरकारों ने राज्य की नौकरशाही के सहयोग से बहुत उल्लेखनीय तरीके से पूरा किया। यदि लिस्ट थोड़ी लंबी होगी तो हो सकता है दो भागों में मैं इस तरीके के कार्यों का उल्लेख करना चाहूंगा। मगर एक बात स्पष्ट कर दूं, मैं ब्यूरोक्रेसी का न अनावश्यक रूप से निंदक हूं और न मैं प्रशंसक हूं। बेपरवाह ब्यूरोक्रेसी राज्य के हित में अच्छी नहीं होती है और इस समय बहुत सारे नौकरशाह जो सत्ता के नजदीक हैं, बेपरवाह दिखाई दे रहे हैं’।