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कांग्रेसः सत्ता की हनक वाले एक मात्र पद के लिए घमासान

आखिर किसे मिलेगा नेता प्रतिपक्ष का ओहदा

हरदा अपने चहेते की ताजपोशी की कोशिश में

प्रीतम गुट भी दावा छोड़ने को नहीं है तैयार

बेहड़, आर्य, धामी और खुद प्रीतम दौड़ में

देहरादून। विपक्षी दल कांग्रेस के हिस्से में मात्र एक पद नेता प्रतिपक्ष का ऐसा पद आने वाला है, जिसमें सत्ता की हनक रहती है। सरकारी बंगला, विस में दफ्तर और स्टाफ सब कुछ सरकारी खर्च पर ही मिलता है। ऐसे में इस पद पर कब्जे के लिए कांग्रेस में घमासान मचा है। हरदा अपने चहेते की ताजपोशी कराने की कोशिश में हैं तो प्रीतम गुट भी दावा छोड़ने को तैयार नहीं है।

चुनाव में करारी हार से भी कांग्रेसियों ने कोई सबक नहीं लिया है, ऐसा प्रतीत हो रहा है। इसे इस तथ्य के प्रकाश में देखें कि नेता प्रतिपक्ष पद के लिए दोनों गुटों में घमासान मचा है। दरअसल, विपक्षी दल के पास यही एक ऐसा पद होता है, जिसमें सत्ता की हनक शामिल रहती है। नेता प्रतिपक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिलता है और सरकारी बंगला, विस में दफ्तर और सरकारी स्टाफ मिलता है। एक तरह से यह पद विपक्ष के लिए मुख्यमंत्री जैसा ही माना जाता है।

यही वजह है कि विधायक इस पद के लिए लाबिंग करने में जुटे हैं। हरीश रावत चाहते हैं कि उनकी पसंद के विधायक को यह पद दिया जाए तो दूसरा गुट हरदा की पसंद से अब कोई काम करना ही नहीं चाहता है। हरदा गुट की ओर से विधायक हरीश धामी खुद अपनी दावेदारी कर चुके हैं। वे राज्य गठन के बाद हुए सभी चुनावों में विधायक चुने जा चुके हैं।

दूसरी ओर प्रीतम गुट भी इस पद पर निगाहें जमाए है। पिछली सरकार के समय में यह पद प्रीतम के पास ही था। ऐसे में उनकी दावेदारी स्वभाविक तौर पर बन रही है। पहले कांग्रेस और बाद में भाजपा सरकार में मंत्री रहे यशपाल आर्य़ इस बार कांग्रेस के टिकट पर जीते हैं। वे भी राज्य गठन से पहले से विधायक जीतते रहे हैं। राज्य के सभी पांच चुनाव भी उन्होंने जीते हैं। ऐसे में उनकी भी दावेदारी बताई जा रही है।

कांग्रेस ने इस चुनाव में मैदानी क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन किया है। इस बार पूर्व मंत्री तिलकराज बेहड़ भी चुनाव जीतकर विधायक बन चुके हैं। तराई में पकड़ बनाने के लिए कांग्रेस ने उन्हें कार्य़कारी प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया था। फिलहाल बेहड़ सीधे तौर पर किसी भी धड़े के साथ नहीं है। ऐसे में विवाद ज्यादा होने पर यह पद बेहड़ की झोली में भी जा सकता है।

विस का सत्र 29 मार्च से शुरू हो रहा है। ऐसे में कांग्रेस के पास नेता प्रतिपक्ष का चयन करने के लिए महज दो दिन का ही वक्त है। यही वजह है कि दोनों गुटों की ओर से सियासी चालें चली जा रही है। देखने वाली बात यह होगी कि इस सियासी जंग में जीत किस धड़े को मिलती है।

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