राजनीति

बचपन से ही दबदबा रखती थी इंदिरा

आसमान को कैसे छूना है ये जानती थी एक बालिका

नेता प्रतिपक्ष की मौते से सदमे हैं लोग शहर के लोग

पीलीभीत से मनोज पटेल की रपट

पीलीभीत। इंसान की दुनिया से रुखसती के बाद उसकी शख्सियत की खासियत लोगों की जुबान पर आने लगती है। उत्तराखंड कांग्रेस विधानमंडल दल की नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर इंद्रा हृदयेश की भी तमाम यादें पीलीभीत से जुड़ी हुई हैं। उनका बचपन यहां बीता। इंटरमीडिएट तक की शिक्षा यहीं पर हुई। आज उनके निधन के बाद उनके ऐसे तमाम अपनों की आंखें नम हैं।

पूरनपुर के जमुनिया की रहने वाली इंदिरा पाठक के पिता टीकाराम और माता रमादेवी थी। आर्य समाज मंदिर स्टेशन रोड पीलीभीत के समीप उनकी एक छोटी सी दुकान थी। वे पुत्तू लाल जयसवार के मकान में किराए पर रहती थी। राजकीय बालिका इंटर कॉलेज पीलीभीत में कक्षा छह में उन्होंने दाखिला लिया। कुशाग्र बुद्धि की इंदिरा हमेशा दबदबा रहता। कक्षा छह से इंटरमीडिएट तक इसी जीजीआईसी में शिक्षा ली। फिर बाहर चली गई। पढ़ाई में अव्वल के साथ वह बहुत आला दर्जे की प्रखर वक्ता थी। किसी भी विषय पर हमेशा उद्बोधन के लिए तैयार रहती।

वाद विवाद प्रतियोगिता की वह केंद्र बिंदु रहती।

सिर्फ राजकीय बालिका इंटर कॉलेज ही नहीं बल्कि कई अन्य विद्यालयों के बच्चे और स्टाफ भी सुनने को लालायित रहते।  राजनीति में जबरदस्त दिलचस्पी सामाजिक विषयों पर उनकी पकड़ और असीमित शब्दकोश से लग रहा था कि वे राजनीति की तरफ हैं। पहले उनकी नौकरी लगी और वह एक इंटर कॉलेज में प्रधानाचार्य बनी। उनकी प्रशासनिक दक्षता उनकी निर्भीक कार्यशैली हमेशा चर्चा में रहती। शिक्षक राजनीति से राजनीति की शुरुआत हुई।

इसके बाद कांग्रेस नेताओं के संपर्क में आई और फिर कांग्रेस की सियासत शुरू कर दी। शिक्षक विधायक बनी तो पूरी दबंगई से अपना कार्यकाल बिताया। सदन में शिक्षकों की समस्याओं को तर्कसंगत ढंग से उठाया तो खुलकर विरोध भी किया। उनका शिक्षा विभाग पर इतना दबदबा हो गया कि किसी अफसर की उनके सुझाव को नकारने की हिम्मत नहीं होती थी। जब कांग्रेस से जुड़ी तो कांग्रेस में अपनी पहचान बनाई । बड़े नेता तक उनको पूरा सम्मान देने लगे। पंडित नारायण दत्त तिवारी के सानिध्य में सियासत के सोपान चढ़ती चली गई। बुलंदियों पर पहुंचने के बाद भी उनका पीलीभीत से नाता नहीं टूटा। जब भी पीलीभीत आती तो अपने रिश्तेदार परिचितों और पुरानी सखाओं को नहीं भूलती। उनसे मिलने खुद उनके घर जाती या सब एक जगह इकट्ठा हो जाती और फिर बचपन की यादें ताजा होने लगती। उनकी एक रिश्ते की बहन अंजू जोशी अब भी होली चौराहे पर रहती हैं। उनकी एक और करीबी रिश्तेदार विमला जोशी बजरिया में परिवार के साथ रहती हैं। इस तरह के ऐसे तमाम लोग हैं जिनका संपर्क इंद्रा हृदयेश से लगातार बना रहा।

अगर पीलीभीत का कोई व्यक्ति किसी काम से लखनऊ गया या उनके पास हल्द्वानी गया तो उन्होंने पूरी दिलचस्पी लेकर उसकी मदद की। आज इंद्रा हृदयेश के निधन के बाद पूरे जिले में शोक की लहर है। आज तक जो भी उनसे परिचित है वह हृदय से बहुत दुखी है। शहर में कई जगह आज उनकी ही चर्चा होती रही । यहां के लोगों का तो यही मानना है की वह यहीं की बेटी थी। पहले इंदिरा पाठक थी पर विवाह के बाद डॉक्टर इंद्रा हृदयेश बनी।  इंदिरा हृदयेश की बाल सखा और राजकीय बालिका इंटर कॉलेज की रिटायर्ड प्रधानाचार्य रागिनी सिंह बताती हैं इंदिरा हृदयेश, चित्रा गोयल और उनका एक ग्रुप था जो कॉलेज में काफी मशहूर था। तीनों में गहरी दोस्ती थी। बचपन में इंदिरा हृदयेश के मकान में ही जाकर इख्खट दुखखत खेलते या रस्सी कूदते थे। वह बताती है कि जब उसी जीजीआईसी में प्रधानाचार्य बनकर आई जिसमें वह पढ़ती थी तो इंदिरा हृदयेश खुद उनसे मिलने आई। रागिनी सिंह पूरे 11 साल राजकीय बालिका इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्य रही। कई बार उनका तबादला हुआ लेकिन हर बार इंद्रा हृदयेश ने उनका तबादला रुकवाया।

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