तो क्या ‘चौबे’ से ‘दुबे’ बनने आए हैं ‘भट्ट जी’
हरियाणा से भेजे गए सुरेश को लेकर सियासी गलियारा गर्म
अब तक तो सत्ता के शीर्ष पर ही रहे हैं नेता जी
उत्तराखंड में अब तक मिला महज महामंत्री का पद
कुमाऊं में भव्य स्वागत कर रहा आगे का इशारा
क्या बंशी की धुन बजने पर तो नहीं कोई खतरा
देहरादून। कई ताज छोड़कर अगर महज आम बन जाए तो सवाल उठना लाजिमी है। ऐसा ही वाक्या हरियाणा से ताज छोड़कर अपने वतन लौटे सुरेश भट्ट है। अब सवाल ये खड़ा हो रहा है कि क्या भट्ट जी को चौबे से दुबे बनाकर उत्तराखंड भेजा गया है या फिर आने वाले समय में वो छब्बे जी साबित होने वाले हैं। वैसे कुमाऊं में जिस तरह से मंत्री पद के दावेदारों ने उनका स्वागत किया है, उससे भी सियासी गलियारा गर्मा गया है।
कुमाऊं के कालाठूंगी निवासी सुरेश भट्ट चंद रोज पहले तक हरियाणा में प्रदेश भाजपा के महामंत्री संगठन थे। उऩके कार्यकाल में ही हरियाणा में भाजपा फर्श से अर्श तक पहुंची। बताया जा रहा है कि उनकी कार्य़शैली के पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी फैन हैं। 2017 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद भट्ट का नाम मुख्यमंत्री के तौर पर भी उभरा था। लेकिन संघ के नजदीकी त्रिवेद्र सिंह रावत सीएम बन गए।
अब पिछले दिनों भट्ट को आरएसएस ने अचानक ही चुनावी राजनीति के लिए न केवल मुक्त कर दिया,बल्कि उन्हें उत्तराखंड भेज दिया। इसके बाद से ही सियासी गलियारा गर्म है। हरियाणा से कार्यमुक्त होने के बाद कुछ दिनों तक उन्हें कोई काम नहीं दिया गया। बताया जा रहा है कि हाईकमान से खुराक के बाद भट्ट को प्रदेश महामंत्री बनाया गया। अब सवाल यह खड़ा हो रहा है कि हरियाण जैसे राज्य का प्रदेश महामंत्री संगठन जैसा ताज छोड़ने के बाद कोई केवल वो भी छोटे से राज्य उत्तराखंड का महामंत्री क्यों बनना चाहेगा।
सियासी गलियारों में चर्चा है कि या तो सुरेश भट्ट का कद भाजपा हाईकमान ने घटा दिया है या फिर उन्हें किसी खास मकसद से उत्तराखंड की चुनावी राजनीति में भेजा गया है। अहम बात यह भी है कि भट्ट कुमाऊं में प्रवेश करने पर उनका भव्य स्वागत उसी तरह से किया गया है जैसी कि उन्हें हरियाणा से विदाई दी गई थी। इस तरह का स्वागत करने वालों में वो विधायक भी शामिल रहे जो दिल में मंत्री बनने का सपना संजोये हुए हैं।
बहरहाल, भाजपा हाईकमान ने किस मकसद से सुरेश भट्ट को उत्तराखंड भेजा है, ये तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन भाजपाई खेमे में चर्चा है कि यूं ही कोई ‘ताज’ छोड़कर ‘चौबेजी’ से ‘दुबेजी’ बनने उत्तराखंड आने वाला नहीं हैं। ऐसे में कहीं ऐसा तो नहीं कि ‘बंशी की धुन’ बजने पर आने वाले समय में कोई खतरा मंडरा रहा है।