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दून स्मार्ट सिटीः तो क्या मेयर को तव्वजो न दे रहे ठेकेदार

अफसरों पर नहीं ठेकेदार पर चाहते हैं एक्शन

त्रिवेंद्र के सीएम रहते इन्हीं के गाते रहे हैं गीत

बदले माहौल में धामी की गोद में बैठने की कोशिश

गामा ने धामी को लिखा खत, सभी ठेकेदार है बेकार

पांच साल तक सोते रहे हैं देहरादून के मेयर गामा

देहरादून। सियासत क्या न करा दे इसका सबसे बड़ा उदाहरण आज मेयर सुनील उनियाल गामा के एक पत्र से सामने आया है। त्रिवेंद्र सिंह रावत के सीएम रहते स्मार्ट सिटी के गीत गाने वाले मेयर के सुर आज उस वक्त बदल गए, जब सीएम धामी ने इसकी समीक्षा की। बैठक के बाद गामा ने एक पत्र सीएम को लिखा और तमाम ठेकेदारों को खिलाफ एक्शन की मांग कर डाली। माना जा रहा है कि पाला पदलने में माहिर मेयर गामा और त्रिवेंद्र की जगह सीएम धामी की गोद में बैठना चाहते हैं।

मेयर गामा ने आज सीएम को एक खत लिखा है। इसमें वो लिखते हैं स्मार्ट सिटी मिशन, देहरादून की जब शुरुआत हुई थी तब देहरादून की जनता नये स्मार्ट देहरादून शहर को लेकर उत्साह से भव्य एवं उज्जवल शहर की परिकल्पना की आश बांधे हुई थी लेकिन विगत तीन सालों से जो हो रहा है, वह ठीक इसके विपरीत है। गैर जिम्मेदार ठेकेदारों ने स्मार्ट सिटी देहरादून के उज्जवल भविष्य को न ही केवल अंधकार में धकेला बल्कि जन भावनाओं से खिलवाड़ करने में भी कोई कमी नहीं रखी।

नगर का मेयर होने के नाते बड़े दुखी मन से आपको बताना चाहता हूँ कि स्मार्ट सिटी देहरादून जनता के लिए सरदर्द बन गया है। बात चाहे शहर में स्मार्ट सिटी के नाम पर खुदी हुई सड़कों की करें या खुदे पड़े गडडे की में हो, बेतरतीब काम करते हुए पाईप लाईनों के टूटने की करें या फिर अव्यवहारिक रूप से कार्य करते हुए सीवर लाईनो को क्षतिग्रस्त करने की, सभी जगह स्मार्ट सिटी देहरादून व ठेकेदार अव्यवहारिक कार्य करने के लिए प्रसिद्ध हुए है। मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि स्मार्ट सिटी देहरादून के अब तक हुए समस्त कार्यों की वित्तीय जांच करायी जाय जिससे इसमें हुए भ्रष्टाचार का खुलासा हो सके। इसके साथ ही इस पत्र के माध्यम से मैं आपसे यह भी निवेदन करना चाहता हूँ कि सरकार द्वारा स्मार्ट सिटी देहरादून व गैर जिम्मेदार ठेकेदारों के विरूद्ध कठोर रूख अपनाते हुए ऐसे फैसले लिये जायें जो स्मार्ट सिटी देहरादून व ठेकेदारों के लिए भविष्य में एक नजीर बने।

अब सवाल यह है कि मेयर केवल ठेकेदारों पर ही एक्शन क्यों चाहते हैं। क्या इसके लिए अफसर जिम्मेदार नहीं हैं। मेयर ने अपने खत में एक बार भी अफसरों की जिक्र नहीं किया है। ऐसा लगता है कि त्रिवेंद्र सरकार में ठेकेदार मेयर की मर्जी से काम कर रहे थे और अब वो उन्हें कोई तरजीह नहीं दे रहे हैं। शायद यही वजह है कि मेयर ने सियासी हालात को भांप कर त्रिवेंद्र से किनारा कर लिया और धामी की गोद में बैठने की कोशिश कर रहे हैं।

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