राजनीति

संविधान की धारा 187 नहीं देती मनमानी नियुक्तियों का अधिकार

भ्रष्टाचार का कवच नहीं है ‘विशेषाधिकार’

कुंजवाल और अग्रवाल दोनों ही दे रहे कुतर्क

जानिए क्या विस में नियुक्तियों की व्यवस्था

देहरादून। विधानसभा में  अपने परिवार तथा अन्य करीबी लोगों को पूर्व स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेमचंद अग्रवाल ने मनमाने तरीके से अपने परिवार तथा जेबी लोगों को विस में नियुक्तियां दी हैं। इतना ही नहीं दोनों ही खुद के विशेषाधिकार का हवाला देकर  अराजक और दंभी होने का जो परिचय दे रहे हैं। इस प्रकार के मनमाने आचरण का कवच कभी भी संसदीय विशेषाधिकार नहीं बन सकता ।

भारतीय संसदीय लोकतंत्र में वेस्ट मिनिस्टर पद्धति से लोकसभा तथा विधानमंडल के सदस्यों को उनकी स्वतंत्रता गरिमा तथा कर्तव्य की स्वायत्तता बचाए रखने तथा नागरिक अधिकारों विदाई कर्तव्यों के निर्वहन में आपराधिक एवं न्यायिक दायित्व से जिस प्रकार के संरक्षण की व्यवस्था है। इसे ही संविधान में विशेषाधिकार कहा गया है।

 संविधान के अनुच्छेद 105 से सांसद महोदय को तो अनुच्छेद 195 से विधान मंडल के सदस्यों को यह विशेषाधिकार प्राप्त है। विधानसभा में नियुक्ति के अधिकार को दोनों पूर्व स्पीकर अपना विशेषाधिकार बता कर दंभ भर रहे हैं। वास्तव में इसका कोई विधायी और नैतिक आधार नहीं है। पूर्व स्पीकर चाहे वह प्रेमचंद अग्रवाल हो या गोविंद सिंह कुंजवाल इस प्रदेश की जनता तथा चुने हुए विधायकों के कम अध्ययन का लाभ उठा कर ऐसा असंगत बयान दे रहे हैं।

संविधान का अनुच्छेद 187 जो विधानसभा सचिवालय की व्यवस्था के प्रावधान करता है। इसमें स्पीकर को व्यवस्थापन के लिए सचिवालय सृजित करने का अधिकार तो है। लेकिन उनका यह अधिकार असीमित नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 187 (एक) में कहा गया है कि ऐसी नियुक्तियां निर्धारित प्रक्रिया से होंगी। अनुच्छेद 187 (दो) ऐसी नियुक्तियां सचिवीय कर्मचारियों के लिए भर्ती और नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों को कानून द्वारा विनियमित कर सकता है। अनुच्छेद 187( 3) भाग-2 के नियम नहीं है तो राज्यपाल से परामर्श के उपरांत स्पीकर नियम बनाकर कानूनी प्रावधानों के अधीन ऐसी नियुक्तियां कर सकता है। यदि अनुच्छेद 187( 3 )के प्रावधानों का अध्यक्ष ने उपयोग किया है तो यहां उस स्पष्ट नियमावली को सार्वजनिक किए जाने की आवश्यकता है।

चूंकि विधानसभा में कार्यरत सभी कर्मचारी राजकोष से अपना वेतन प्राप्त करते हैं इसलिए लोक सेवक की श्रेणी में हैं, ऐसे किसी लोक सेवा को बिना किसी भेदभाव के चुनने का अधिकार प्रत्येक नागरिक का है। इस प्रकार नौकरी में अवसर की समानता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 का भाग है। भारतीय संविधान के मूल अधिकार भाग में यह स्पष्ट व्यवस्था है कि अनुच्छेद 13 के तहत भारत की कोई भी विधि या आदेश जो कि संविधान प्रदत्त मूल अधिकार का जिस सीमा तक उल्लंघन करते हैं उस सीमा तक वह सब विधियां/आदेश शून्य हैं ।

विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार और संविधान प्रदत्त अवसर की समानता के स्पष्ट निर्देशों के बाद भी जब इस प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष अपने विशेषाधिकार के नाम पर अराजकता ,भाई भतीजावाद को प्राथमिकता दे रहे हैं। तो यह पूरा घटनाक्रम प्रदेश की  चुनी हुई विधायिका के कानून की कम जानकारी को दर्शाता है। जिसका खामियाजा प्रदेश की भोली-भाली जनता को भुगतना पड़ रहा है।

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