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एसडीसी फाउंडेशन को मिला जनाग्रह का साथ

चुनाव में दोनों संस्थाएं शहरी मुद्दों पर करेंगी काम

देहरादून। आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राज्य में सतत शहरीकरण पर लगातार फैक्टशीट जारी कर राजनीतिक दलों को उपलब्ध करवा रही संस्था एसडीसी फाउंडेशन को अब जनाग्रह का साथ मिल गया है। जनाग्रह बेंगलुरु बेस्ड एक अलाभकारी संस्था है।  यह संस्था अर्बन गवर्नेंस और अर्बन पॉलिसी पर पिछले दो दशक से देश के कई शहरों और राज्य सरकारों के साथ काम कर रही है। जनाग्रह और एसडीसी फाउंडेशन विधानसभा चुनावों के मद्देनजर शहरी मसलों पर मिलकर काम करेंगे। सभी राजनीतिक दलों को इन मसलों को अपने घोषणापत्र में शामिल करने के लिए सिफारिशें प्रस्तुत करेंगे और शहरी जीवन में आमूलचूल बदलाव लाने के लिए राज्य सरकार के साथ मिलकर काम करेंगे।

इस संबंध में दोनों संस्थाओं की ओर से जारी एक प्रेस नोट में कहा गया है कि 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड में 30.20 प्रतिशत शहरी क्षेत्र है। औसत विकास की दृष्टि से देखें तो शहरी क्षेत्रों में विकास की दर 4.0 प्रतिशत है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में सिर्फ 1.2 प्रतिशत। राज्य में जिस तेजी से शहरीकरण हो रहा है, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि 2050 तक राज्य के 46 प्रतिशत क्षेत्र का शहरीकरण हो जाएगा।

जनाग्रह के सिविक पार्टिसिपेशन हेड श्रीनिवास अलावल्ली  के अनुसार उत्तराखंड के शहर बेतरतीब तरीके से बसे हुए हैं। देहरादून, हरिद्वार, रुड़की, हल्द्वानी, काशीपुर, रुद्रपुर, ऋषिकेश, कोटद्वार पर क्षमता से ज्यादा प्रेशर है। अपने नागरिकों को बेहतर सुविधाएं देना राज्य के शहरी निकायों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। इसके अलावा, उत्तराखंड के शहरों के सामने पर्यावरण संबंधी चुनौतियां भी हैं। 

श्रीनिवास अलावल्ली ने कहा की दोनों संस्थाएं मिलकर स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार राज्य के स्थानीय निकायों के लिए नीति बनाने की दिशा में भी काम करेंगी। इसके साथ ही शहरी क्षेत्रों में मजबूत और जवाबदेह राजनीतिक नेतृत्व के लिए भी काम किया जाएगा। क्षमता निर्माण के लिए राज्य स्तर पर प्रशिक्षण की व्यवस्था करने की दिया में भी काम किया जाएगा। 

एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल ने कहा कि हम जनाग्रह जैसी अनुभवी संस्था के साथ काम करने के लिए उत्साहित हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि इससे हम राज्य के शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार के लिए कुछ बेहतर कर सकेंगे।

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