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जल्द आएगी गढ़वाली फ़िल्म “ब्यखुनी कू छैल”

पलायन पर फोकस होगा प्रज्ञा आर्ट्स का कलेंडर

फिल्म का निर्देशन करेंगी लक्ष्मी रावत

सिनेमेटोग्राफर होंगे युवा प्रणेश असवाल

देहरादून। प्रज्ञा आर्ट्स की सीनियर थिएटर डायरेक्टर लक्ष्मी रावत इस बार अपनी फिल्म ब्यखुनी कू छैल को लेकर चर्चा में हैं। इसमें न केवल अभिनय कर रही हैं बल्कि फिल्म का निर्देशन भी खुद कर रही हैं। 2020 में उत्तराखंड की शौर्यगाथों को समर्पित एक कलेंडर बनाया गया। इस बार का कलेंडर पलायन पर फोकल होगा। फिल्म और कलेंडर के फोटोग्राफर एंड सिनेमेटोग्राफर प्रणेश असवाल होंगे।

लक्ष्मी रावत

एक प्रेस कांफ्रेंस में लक्ष्मी ने कहा कि मैंने हिंदी नाटकों से अभिनय शुरू किया और गढ़वाली नाटकों के साथ निर्देशन करना शुरू किया और आज मैं ज्यादातर नाटक उत्तराखंडी पृष्ठभूमि से करती हूं। मैं थिएटर में आई और देखा कि थिएटर उन चीजों को दूर करने में मदद नहीं करता है जो आपको असहज महसूस कराती हैं, लेकिन यह सिखाती है कि अगर आप कड़ी मेहनत करते हैं, तो आप वह कर सकते हैं जो आप उन सभी असहज चीजों के साथ करना चाहते हैं।

रंगमंच की एक सुंदरता है कि यहां सभी के लिए एक जगह है। आप कई अलग-अलग चीजों में प्रतिभाशाली हो सकते हैं। अगर आपको मंच पर रहना पसंद नहीं है, तो हमारे पास बैक स्टेज है। अगर आप चमकना चाहते हैं तो मंच है। सबके लिए कुछ न कुछ है। आप यहां हर किसी से प्यार करते हैं, चाहे आप कोई भी हों या कुछ भी करते हों।

उन्होंने कहा कि मैं अपने छात्रों को स्टेज एक्टिंग के साथ-साथ कैमरा एक्टिंग के बारे में भी बताना  चाहती थी, इसलिए मैंने शॉर्ट फिल्मों की ओर रुख किया और अब मैं फीचर फिल्म की तैयारी कर रही हूं। इस बार कलेंडर की थीम पलायन होगी। कैलेंडर और फिल्म दोनों ही प्रज्ञा आर्ट्स, असवाल एसोसिएट और दामोदर हरी फाउंडेशन के बैनर तले  संयुक्त प्रयासों से बन रही है। असवाल एसोसिएट के मालिक रतन सिंह असवाल उत्तराखंड के एक जाने माने चिंतक हैं एवं दामोदर हरी फाउंडेशन के संस्थापक संदीप शर्मा दिल्ली में  रहने वाले  उत्तराखंड के लोगों के बीच एक जाने माने चेहरे हैं।

उन्होंन कहा कि फिल्म और कैलेंडर दोनों ही उत्तराखंड में शूट होंगे । जल्द ही लोकेशन फाइनल करने टीम  प्रज्ञा आर्ट उत्तराखंड के अलग-अलग हिंस्सों में  जायेगी।  कैलेंडर में  पलायन को  आप एक अलग रूप में  देखेंगे वहीँ फिल्म की कहानी उत्तराखंड में नई पीढ़ी  के पलायन  और पीछे रह जाने वाली उनकी पुरानी पीढ़ी के अकेलेपन पर प्रश्न करती है।  नई पीढ़ी की तरक्की देखने की ललक हमें बहुत आगे  तक तो ले जाती है मगर पीछे छोड़ जाती है  कुछ ऐसी  नाकामयाबी जो ज़ख्म बन जाती  है और कभी-कभी तो नासूर और नासूर कभी ठीक नहीं होते। 

प्रणेष असवाल

लक्ष्मी ने कहा कि कलेंडर के लिए फोटोग्राफी और फिल्म की सिनेमाटोग्राफर उभरते युवा प्रणेष असवाल हैं। फ़िल्म  बहुत कुछ पाने के लिए बहुत कुछ को छोड़कर जाने वाले लोगों के लिए एक प्रश्न होगी जिसका जवाब देखने वाले को खुद खोजना होगा। हमारी  कोशिश रहेगी की हम इसे OTT प्लेटफार्म पर दिखाएं।

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