128वीं बोस्टन मैराथन: 15 अप्रैल को बैंक ऑफ अमेरिका द्वारा स्वीकृत प्रिय जयंती थपलियाल
1978 में उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव में पैदा हुई। पहाड़ी इलाका, खेतों तक जाना आना, दूर से पानी भर कर लाना, जंगल से लकड़ी लाने में माँ की मदद करना, माँ की अनुपस्थिति में छोटे भाई को सभालने की भी जिम्मेवारी। लड़कों को दौड़ में हराकर बहुत खुशी मिलती थी। माँ की डांट भी पड़ती थी तथा कभी-कभी चोट भी लगती थी। इसी सब के साथ बचपन गुजरा। लेकिन अब महसूस करती हूँ की उस संघर्ष भरे बचपन ने ही मुझे शुरू से मजबूत बनाया।
मेरे पिताजी दिल्ली में कार्यरत थे, इसलिए 7 वर्ष की उम्र में परिवार के साथ दिल्ली आ गई । यहाँ पर थोड़ा खेल का माहौल मिला। क्योंकि मैं दूसरी लड़कियों से मजबूत थी, इसलिए कॉलोनी तथा स्कूल की प्रतियोगिताओं को आसानी से जीत लेती थी। बड़ा भाई जो एक अच्छा खिलाड़ी रहा है, वो मेरे प्रेरणा स्त्रोत रहे। उनकी रचनात्मक आलोचना ने मुझे हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। 12 वर्ष की उम्र में त्यागराज स्टेडियम जाना शुरू किया। उसी वर्ष से जीत का सिलसिला चल पड़ा। मैं आगे बढ़ती चली गई। 1993 में राष्ट्रीय स्कूल खेलों में हिस्सा लिया। 1994 में जूनियर नेशनल केंप का हिस्सा रही ।
1996 में सीनियर इंटर स्टेट में पी. टी. ऊषा, बिनामौल जैसी अंतर्राष्ट्रीय दिग्गजों के साथ खेलने का मौका मिला। 1999 में स्पोर्ट्स कोटे से इस विभाग को जॉइन किया। कुछ बीच के समय को छोड़ कर में लगातार स्पोर्ट्स कर रही हूँ।
उपलब्धियां मेरी राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्पोर्ट्स की उपलब्धियां निम्न हैं:-
परेशानियाँ / रुकावटें
लड़की होना :- लड़की होना मेरी सुरू से ही बड़ी परेसानी रही पहले बचपन मे लड़को से आगे घर आने पर भी माँ से डांट पड़ती थी कि लड़को से आगे आने की क्या जरूरत है गिर गई या चोट लग गई तो क्या होगा, अकेले कैसे जाओगी स्टेडियम, कोन लेने छोड़ने जाएगा, स्टेडियम में हर तरह के लोगो के बीच रहकर प्रैक्टिस करना, उसके बाऊजूद मैने हर परेशानी एवं रूकावट को दूर करते हुए स्पोर्ट्स मे यह मुकाम हासिल किया और आगे भी प्रयासरत हुँ।
आर्थिक स्थिति :- घर मे सिर्फ पापा काम करते थे और वो भी सिर्फ क्लर्क थे, बड़ा भाई स्टेडियम जाता था घर की स्थिति ऐसी नहीं थी की घर वाले सब बच्चों को स्पोर्ट्स करा पाए, अच्छी डाइट एवं जरूरतों का आभाव, अच्छे स्टेडियम एवं कोच की फीस ना दे पाना, अच्छे जूतो की कमी जिससे इंजूरी से बचा जा सके, पैसे के आभाव में दिल्ली से बाहर किसी प्रतियोगिता में भाग लेने में परेशानी।
चोट:- 1995 में जूनियर एसियन के ट्राइल की त्यारी करते हुऐ मेरे पाव में कॉर्न हो जिससे की मे जब भी प्रैक्टिस करती इतना दर्द होता था कि पाव जमीन पर भी नहीं रख पाती थी उसका खामियाजा मुझे ऑपरेशन करवा के करना पड़ा और मै ट्राइल भी नहीं दे पायी ।
हमारे समाज मे लड़की के लिए विशेषकर खेलो मे आगे बढ़ने के लिए बहुत बाधाएँ आती है। लड़की होना मेरे लिए भी एक रूकावट थी पहले तो परिवार मे लड़की के लिए अशुरक्षा की भावना । उसके बाद अभ्यास और परतियोगिता भी लड़को के साथ, लड़कियाँ मैदान मे कम ही आती थी ।
कामयाब होने पर तो सब विरोध, सहयोग मे तबदील हो जाता है लेकिन उससे पहले संघर्ष एवं विरोध का सामना करना पड़ा। परिवार के सदस्यों को धीरे-धीरे अपनी मेहनत के बलबूते विश्वाश मे लिया। बड़ा भाई स्टेडियम खेलने जाते थे इसलिए मैं भी जा पाई वरना शायद स्पोर्ट्स न कर पाती। अतः कह सकती हू कि भाई का सहयोग एवं मार्गदर्शन मेरे लिए मददगार एवं प्रेरणादायक रहा ओर इसी कड़ी मे मेरे पति का भी सहयोग सराहनीय रहा है और वह आज भी है। उनके सहयोग की ही बदोलत, आज भी आगे बढ़ने का जज्बा रखती हू ।
परिवार की आर्थिक स्थिति भी अच्छी न होना एक खिलाड़ी के भविष्य में रूकावट बनती है अकेले पापा की नौकरी और तीनों भाई बहन की खेलो मे रूचि, एक खिलाड़ी को अच्छी खुराक, अच्छी क्वालिटी का खेलो का सामान, एक अच्छा फीजीओ, अच्छे मनोचिक्त्सक, अच्छे डॉक्टर, अच्छे कोच की जरूरत रहती है।
आर्थिक स्थिति कमजोर होने के करण इन सबका अभाव झेलना पड़ा। लेकिन मेरे भाई एवं मेरे पति के साथ-साथ मेरे कोच राजेंदर चौधरी के मार्गदर्शन ने इन सब अभावों के बावजूद भी हमेशा अच्छा करने एवं आगे बढ़ने के लिए पेरित किया। आज मे और मेरे पति दोनों नौकरी करते है। हमारा एक बेटा है। खेल को जारी रखने के लिए हमे अपने साथ बच्चे की भी बहुत सी जरूरते काटनी पड़ती है। लकिन मुझे पूरा विश्वास है की भविष्य मे और अच्छा कर सकती हू अगर मुझे स्पॉन्सर मिले तो।
चोट :- चोटों से खिलाड़ी के लिए बचे रहना लगभग असंभव है। सावधानियों के बावजूद भी इंजरी से बच पाना नामुमकिन है। कई दौर मेरे साथ भी बीच मे ऐसे आए जहाँ लगा कि अब नहीं खेल पाऊँगी। लेकिन खेल के प्रति मेरी रूचि एवं द्रडनिश्चय एवं सब दिशाओं से मिला सहयोग (including सपोर्ट from my ऑफिस) मुझे उस स्थिति से उबरने एवं और अच्छा करने के लिए प्रेरित करता रहा। इसका ही में इंजरी के कारण मैं सितंबर 2017 मे चाइना एशियन masters एथ्लेटिक्स चैम्पयनशिप के लिए नहीं जा पाई। इलाज करवाया और फिर मैदान मे उतरी तथा एयरटेल दिल्ली हाफ मेराथन में अच्छे टाइमिंग के साथ प्रथम स्थान प्राप्त किया।
मुझे भविष्य मे अगर मौका मिले एवं साधन मिले तो मैं उत्तराखंड मे जाकर academy खोलना चाहती हूँ क्यूंकि वहा पर संसाधनों की कमी है ना की टैलेंट की। अंत में मैं आप सभी से यह कहना चाहूंगी कि आप सभी अपने लिए नियमित समय निकालिए वह चाहे सुबह 15 मिनट ही क्यूं ना हो लेकिन एक वक्त आयेगा की आप एक मिनट भी न जाने पर दुखी या अच्छा महसूस नहीं करेंगे और कुछ समय पश्चात खुद ही अच्छा फील करेंगे। एक स्वस्थ शरीर के साथ आप सभी भी अपने परिवार का अपितु कार्य करने की जगह पर भी अच्छे से कार्य कर पाएंगे।