न्यूज वेट ब्यूरो
देहरादून। एक दौर था जब कहा जाता था कि खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान। आज के दौर में यह कहावत बदल सी गई है। गर अफसरशाही ही मेहरबान तो भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरा अफसर भी पहलवान। जी हां, उत्तराखंड में कुछ ऐसा ही हो रहा है।
एक निगम में बतौर निदेशक तैनात रहे एक अफसर को दूसरे बड़े निगम में सर्वोच्च पद दे दिया गया है। ये जनाब जब एक निगम में निदेशक थे तो खासे चर्चित रहे। श्रीनगर से काशीपुर तक जाने वाली 400 एमबी की लाइन बिछाने में चर्चा में रहे। मामला तूल पकड़ा तो इस लाइन को तीन टुकड़ों में विभाजित कर दिया। शिकायतें हुईं तो जांच हुई। एक मामले में विजिलेंस की जांच आज भी चल रही है। सूत्रों का कहना है कि एक मामले में तो मुख्यमंत्री के स्तर से भी अहम निर्देश दिए गए हैं। लेकिन निर्देशों पर अमल का जिम्मा जिन लोगों पर है, वही इस अफसर के पैरोकार बन गए।
नतीजा यह रहा कि इस अफसर के खिलाफ चल रही तमाम जांचों (विजिलेंस समेत) के साथ ही मुख्यमंत्री के आदेश को भी फाइलों में दबा कर एक अहम निगम का सर्वोच्च पद दे दिया गया। इसे कहते हैं कि अफसर मेहरबान तो भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरा भी पहलवान।
क्या करेंगे नए राजा
अफसरों ने इस चर्चित अफसर के पुराने निगम की जिम्मेदारी एक नए अफसर को दी है। अब देखने वाली बात ये होगी कि ये नए अफसर पुराने घोटालों पर क्या रुख अपनाते हैं।
नोटः इस मामले में ताजपोशी पाने वाले अफसर से प्रयास के बाद भी बात नहीं हो सकी। इसी वजह से उनका नाम नहीं दिया जा रहा है।