आध्यात्मिक केंद्र भगवान फ्यूंला नारायण धाम के कपाट खुले

आध्यात्मिक केंद्र भगवान फ्यूंला नारायण धाम के कपाट खुले
श्रावण संक्रांति के बजाय इस बार तीन दिन बाद खुले कपाट, नंदाष्टमी को बंद होंगे कपाट
दिनेश शास्त्री
चमोली जिले की उर्गम घाटी के उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित भगवान फ़्यूंला नारायण धाम के कपाट आज दोपहर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। वैसे पारंपरिक रूप से इस धाम के कपाट श्रावण संक्रांति के दिन श्रद्धालुओं के लिए हर वर्ष खुलते हैं किंतु इस वर्ष लौकिक आवश्यकता के मद्देनजर तीन दिन देर से मंदिर के कपाट खोले गए। इस बार उर्गम घाटी में भगवती कालिंका की देवरा यात्रा हो रही है, इस कारण श्रावण संक्रांति के स्थान पर तीन प्रविष्ट को कपाट खुले हैं।
पांच गांवों के आराध्य देव :-
फ्यूंला नारायण धाम कल्पक्षेत्र में पंचम केदार श्री कल्पेश्वर धाम के शीर्ष पर समुद्र तल से करीब 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। प्रतिवर्ष भरकी, भेंटा, पिलखी, गवाणा और अरोसी गांव के लोग प्रति परिवार बारी बारी से यहां पूजा अर्चना करने हेतु पहुंचते हैं।
इस वर्ष के पुजारी विवेक और राजेश्वरी देवी :-
इस वर्ष पूजा अर्चना का दायित्व भरकी गांव के सुभाष रावत के परिवार का है। उनके भतीजे विवेक रावत पुजारी और उनकी माता श्रीमती राजेश्वरी देवी महिला पुजारी के रूप में यहां पूजा करेंगे। फ्यूंला नारायण धाम के कपाट खोलने के सभी प्रक्रियाएं शुक्रवार को पूरी हो गई। नारायण का भंडार भरकी पंचनाम देवता के मंदिर में एक सप्ताह पहले ही रख दिया गया था। भरकी स्थित पंच नाम देवता मंदिर में आज प्रातः ही पूजा अर्चना के बाद फ्यूंला नारायण तीर्थ के लिए भगवान नारायण की चल विग्रह डोली नारायण धाम के लिए रवाना हुई। पुरुष पुजारी के पास पंचनाम देवता के स्थान भरकी से पंचनाम देवता के पुजारी अब्बल सिंह पंवार के द्वारा विवेक रावत को घंटी एवं चिमटा प्रदान किया गया।
पुजारी को करनी होती है कठिन साधना :-
जनदेश के संस्थापक लक्ष्मण सिंह नेगी बताते हैं कि घंटी और चिमटा दोनों का बहुत गंभीर महत्व है। घंटी का संकेत जहां 24 घंटे चेतन रहने से है, वहीं चिमटा का अर्थ है वैराग्य। यानी जितने दिन मंदिर में रहना है, साधक को कठिन नियमों का पालन करना होगा। श्री नेगी बताते हैं कि यहां साधक को प्रातः स्नान करने के बाद भगवान नारायण का श्रृंगार, धूनी एवं पंचनाम देवताओं का पूजन, बालभोग एवं विशेष पूजा नियमित रूप से संपादित करनी होती है जबकि महिला पुजारी को पंचनाम देवता के स्थान से फूल कंडी, घी का विशेष पात्र दिया जाता है। महिला पुजारी का मुख्य काम भगवान नारायण के श्रृंगार की पूरी सामग्री तैयार करना और नारायण का स्नान कराने का अधिकार भी है। यहां आने वाले भक्तों के लिए प्रसाद तैयार करने में भी महिला पुजारी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके अलावा गांव के लोग भी मिलकर भगवान नारायण के भंडारे का सामान फ्यूंला नारायण पहुंचाते हैं। यहां भगवान नारायण की पूजा के लिए दूध, दही एवं घी के प्रबंधन के लिए गाय नारायण धाम ले जाते हैं। खास बात यह है कि इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि गाय को किसी तरह का कष्ट न हो।
बकौल लक्ष्मण सिंह नेगी, यह हिमालय का दिव्य स्थान है, जहां से चारों तरफ पैनखंडा प्रखंड के दो दर्जन से अधिक गांव स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं।
आस्था का बड़ा केंद्र :-
यह स्थान वैष्णव समुदाय के लोगों के लिए आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र है। मंदिर में भगवान विष्णु की चतुर्भुज मूर्ति है। यहां मां लक्ष्मी भगवान नारायण के साथ स्वयं विराजमान है साथ ही जय – विजय दो द्वारपाल मूर्ति रूप में विराजमान हैं। भगवान नारायण की पूजा के अलावा यहां भगवती नंदा स्वनुल देवी, जाख घंटाकर्ण, वन देवियों और दाणू देवता की पूजा की जाती है। इसके अलावा यहां वरुण देवता की पूजा का विधान भी है। इसे स्थानीय तौर पर मडक्वा कहते हैं। विशेष बात यह है कि यहां पूजा के लिए वरुण देवता को बाकायदा आवाज़ लगाई जाती है और आवाज लगाकर उनसे पानी छोड़ने का आग्रह किया जाता है।
निसंदेह प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से यह अत्यधिक रमणीक स्थलों में से एक है। प्रकृति का स्वर्ग समान यह नारायण धाम अपने में बेमिसाल है। वैसे फ़्यूंला नारायण का प्रसंग स्कंद पुराण के केदार खंड में भी मिलता है। उस प्रसंग के अनुसार दुर्वासा ऋषि ने जब मेनका नाम की अप्सरा को एक पुष्प माला इंद्र के स्वागत के लिए तैयार करने के लिए कहा था तो ऐसी मान्यता है कि फ्यूंला नारायण धाम से ही यह पुष्प माला तैयार की गई थी। यह माला इतनी सुंदर थी कि उसमें भंवरे गुंजायमान थे। यहां की पूजा पद्धति भी अत्यधिक कठिन है। मान्यता है कि यदि पूजा पद्धति में किसी प्रकार का बदलाव अथवा भूल हो जाए तो कठोर दंड भी मिलता है। भगवान नारायण के कपाट आगामी नंदा अष्टमी तक खुले रहेंगे। नवमी तिथि को राजभोग देने के बाद सबसे पहले भगवती नंदा के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। एक विशेष प्रकार की वनस्पति है जिसे स्थानीय भाषा में मूतू कहते हैं, उसकी पत्तियों को भगवती के दरवाजे में लगा दिया जाता है और जिस दिन भगवती के कपाट खोलते हैं, इस वनस्पति को वहां से हटा दिया जाता है। यह वनस्पति अत्यधिक खुशबूदार होती है। इसकी महक मनभावन भी होती है। इतिहासकार स्व. डॉ. शिव प्रसाद नैथानी ने अपनी पुस्तक “उत्तराखंड के तीर्थ मंदिर” में लिखा है कि यह स्थान पौराणिक काल में बदरीकाश्रम जाने का एक मुख्य शंकु मार्ग रहा है। यहां से पहले भेड़ बकरियां में भगवान बदरीनाथ के भोग के लिए आटा – चावल पहुंचाया जाता था जो एक मुख्य पड़ाव में था।
बदरीनाथ का उपेक्षित घराट :-
ध्यानबदरी उर्गम घाटी में आज भी एक घराट श्री बदरीनाथ जी के नाम से विद्यमान है। हालांकि रखरखाव के अभाव और मंदिर समिति की उपेक्षा के चलते वह क्षतिग्रस्त होने की स्थिति में पहुंच गया है। मंदिर समिति ने इस धरोहर को संजोना जरूरी नहीं समझा। अतीत में इस घराट को चलाने के लिए गांव के पधान को दिया गया था। किंतु आज के दौर में घराट उपयोगी नहीं रहे तो वह उपेक्षा का शिकार हो गया। हालांकि धरोहर को संजोए रखने के लिए उसका संरक्षण किया जा सकता था।
पूजा व्यवस्था :-
यहां की पूजा के लिए स्थानीय लोग प्रति परिवार चार किलो गेहूं एवं ढाई सौ ग्राम तेल नियमित रूप से अर्पित करते हैं। सैकड़ो वर्षों से यह परंपरा निरंतर चलती आ रही है। पिछले 10 वर्षों से फ्यूंला नारायण फ्रेंड्स ग्रुप के द्वारा मंदिर को भव्य ढंग से सजाये जाने का क्रम निरंतर चल रहा है। इस ग्रुप के अध्यक्ष उजागर सिंह का हाल में देहांत हो गया है, उन्होंने अपने संसाधनों और लोगों के साथ मिल कर मंदिर में काफी अच्छा प्रयास किया है। इस टीम के अन्य सदस्य पूर्व वर्षों की भांति इस वर्ष भी मंदिर को भव्य रूप देने के लिए प्रयास कर रहे हैं। कठिन परिस्थितियों में भी ग्रुप के साथियों ने अपना मनोबल बनाया हुआ है।