भाजपा में दिल्ली हार पर मंथन, सोशल मीडिया में बदले जा रहे उत्तराखंड के सीएम
ब्यूरोक्रेसी के कामकाज पर भी पड़ रहा बुरा नजर
न्यूज वेट ब्यूरो
देहरादून। एक तरफ भाजपा हाईकमान दिल्ली चुनाव में मिली करारी शिकस्त पर मंथन कर रहा है तो सोशल मीडिया में इस मंथन के नतीजे के तौर पर उत्तराखंड समेत कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बदलने की बात की जा रही है। सोशल मीडिया में कहा जा रहा है कि उत्तराखंड में मिशन-2022 फतह करने के लिए भाजपा मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने वाली है। सवाल यह उठ रहा है कि सूबे में इस तरह से सियासी अस्थिरता का माहौल बनाने के पीछे कौन है। इसी अस्थिरता वाले माहौल चलते सरकारी कामकाज भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।
दिल्ली में मतदान के बाद सामने आए एग्जिट पोल के नतीजों के बाद से ही उत्तराखंड में सियासी माहौल अचानक गर्म हो गया। एक दो समाचार पत्रों ने खबर दी कि भाजपा अपनी पार्टी की राज्य सरकारों के कामों की समीक्षा करेगी। इसके बाद ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को बदलने की बातें सोशल मीडिया में वायरल होने लगीं। हाईकमान भले ही अभी हालात पर मंथन कर रहा हो। लेकिन सोशल मीडिया में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कामकाज की न केवल समीक्षा कर ली गई, बल्कि यह भी बता दिया गया कि अगर मौजूदा नेतृत्व के साथ ही भाजपा 2022 के चुनाव में गई तो नतीजे बेहद खराब आने वाले हैं।
पिछले कई रोज से सोशल मीडिया में संभावित मुख्यमंत्रियों के नाम भी चलाए जा रहे हैं। एक का नाम आगे बढ़ता है तो उसकी टांग खिंचाई शुरू हो रही है। सोशल मीडिया में मुख्यमंत्री को लेकर सर्वे भी चल रहे हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि राज्य में सियासी अस्थिरता का माहौल बनाने की कोशिश हो रही है। कांग्रेसी दिग्गज और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की एक फेसबुक पोस्ट ने इसे और भी बढ़ा दिया है। अब सवाल यह खड़ा हो रहा कि इसके पीछे आखिर है कौन। यह भाजपा हाईकमान को तय करना है कि मुख्यमंत्री बदलेगा या नहीं। ऐसे में सोशल मीडिया में रायशुमारी या फिर 2022 के चुनाव नतीजों की बातें क्या किसी के इशारे पर हो रही हैं। अगर भाजपा यह तय भी करती है कि मुख्यमंत्री को बदला जाए तो क्या इसका खुलासा सोशल मीडिया में इस तथ्य तो लीक करके किया जाएगा।
भाजपा अपने मुख्यमंत्री को बदलेगी या नहीं, यह तो पार्टी हाईकमान को ही तय करना है। लेकिन एक बात साफ है कि फिलहाल बनाए जा रहे सियासी अस्थिरता के माहौल का असर सरकारी कामकाज पर पड़ता दिख रहा है। सूबे की ब्यूरोक्रेसी भी अपने काम पर ध्यान देने की बजाय इन चर्चाओं की असलियत जानने की कोशिश में है।