एक्सक्लुसिव

46 साल पहले ही समिति ने जताई थी इसकी आशंका

गौरा की धरती दरक रही है…!

भूगर्भीय दृष्टि से बड़े निर्माण के लिए सही नहीं जोशीमठ

फिर भी हाइड्रो प्रोजक्ट्स में किया जा रहे मनमाने निर्माण

अखिलेश डिमरी

गौरा की धरती जी हाँ गौरा की धरती ..!  वही धरती जहां से पहाड़, पेड़, जल, जंगल, जलवायु बचाने की चिपको जैसा आंदोलन हुआ और धरती बचाने के लिए जन चेतना की शानदार मिसाल कायम कर गया। वही गौरा की धरती का जोशीमठ कस्बा आज दरक रहा है खिसक रहा है।

ये भू-धंसाव इस कदर है कि जोशीमठ कस्बे के कई इलाकों में घरों की दीवारों मे बड़ी-बड़ी दरारें पड़ चुकी हैं। लोग घरों को छोड़ चुके हैं,  कस्बे की सड़कों में दरारें पड़ चुकी हैं कई जगहों पर पड़ी दरारों से पानी की मोटी धार निकल रही है और लोग बड़ी अनहोनी की आशंका से डरे सहमे हुए हैं। कुछ दिनों पहले कस्बे के दो होटल आपस में झुक गये थे जिसकी तस्वीरें अखवारों में भी छपी आपने देखी ही होंगी।

हालांकि इस सूबे में आपदा प्रबंधन न्यूनीकरण विभाग भी है और उसमें फील्ड स्तर पर भरे गये संविदाकर्मियों के अलावा हमेशा ही पक्की नौकरी वाला एक बड़ा  साहेब उर्फ सचिव आपदा प्रबंधन भी हैं। और बाकायदा सरकार में आपदा प्रबंधन व न्यूनीकरण का एक मंत्रालय भी है और उसके एक माननीय मंत्री भी लेकिन गौरा की धरती में लोग लगभग 14  महीनों से त्राहिमाम त्राहिमाम चिल्ला कर थक गये पर आपदा की दरारें न्यूनीकरण के बजाय  चौड़ी खोखली होती गयी और वह भी इस कदर कि लोग घर बार छोड़ कर भरी ठंडी रातों में सड़कों पर जीने को मजबूर हो गए।

उनकी इन सर्द रातों के संघर्ष की मजबूरी में आपदा न्यूनीकरण के सरकारी इंतजामात को कुछ यूं समझिये कि इलाके का SDM छुट्टी पर है और जिले का DM फोन नहीं उठाता। मौजूदा DM तो सुना लोगों से मिलना ही पसंद नहीं करता।  जिले के हेलंग का घसियारी प्रकरण हो या फिर विधानसभा की बैकडोर भर्तियों पर युवाओं का ज्ञापन देने वाला प्रकरण उसमें इस DM का जनता के प्रति रवैया दिखता रहा है , लेकिन मजे की बात है कि इन्हें मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरुस्कार मिला है। इसलिए फिलहाल DM पर उठ रहे सवालों के सारे जवाब हल हुए मान लिए जाएं।

खैर..! लोगों का मानना है कि जलविद्युत परियोजनाओं की मनमानी और अंधाधुंद निर्माण से गौरा की धरती खिसकने दरकने लगी हैं।  हालांकि इस निमित्त सरकारी स्तर पर भी भूगर्भीय सर्वेक्षण कराया गया। सर्वेक्षण हो भी गया और जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण भी चलता रहा।

वैसे 80 के दशक में भी इसी कस्बे में आज की तुलना में बहुत छोटे से भू-धंसाव पर तत्कालीन सरकार नें तत्कालीन आयुक्त गढ़वाल मंडल महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में दिनांक 08/04/1976 को एक समिति गठित की थी जिसने क्षेत्र का सर्वेक्षण किया और एक महीने के अंदर दिनांक 03/05/1976 को जिला मुख्यालय गोपेश्वर में बैठक आहूत कर जांच समिति नें अपनी आख्या रखी। इसमें स्पष्ट कहा गया कि जोशीमठ कस्बा भूगर्भीय दृष्टि से बड़े निर्माण के लिए सही नहीं है। अतः यहां बड़े निर्माण नही किये जाने चाहिए लेकिन अब तो हम विश्व गुरु बनने को हैं सो मिसरा जी का क्या घिसरा जी !

उस समय की सरकारों की संवेदनशीलता मिश्रा कमेटी की जाँच आख्या में लगने वाले समय से आंकी जा सकती है। इस समय की सरकारों की संवेदनशीलता इस बात से आंकी जा सकती है कि उसी जोशीमठ कस्बे के लोग पिछले 14 महीनों से त्राहिमाम त्राहिमाम कह रहे हैं लेकिन सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगती। तब सरकारें गौरा की धरती से 1000 किलोमीटर दूर लखनऊ में बैठी थी लेकिन एक महीने में हल लेकर जनता के सामने आ गयी और अब पौने तीन सौ किलोमीटर तक पिछले 14 महीनों से तमाम शोर के बावजूद आंखों पर पट्टी और कानों में सन्नाटा।

ये DM, SDM या फिर किसी और को भी मत कोसिए .., इसलिए मत कोसिए कि ये जो भी हैं दरअसल सरकार के असल चेहरे का ही अक्स हैं और आईने में अक्स को कोस कर कोई फायदा हो ऐसा संभव नहीं। आवाजें कितनी लगा लीजिये शोर कितना भी मचा लीजिये पर मतलब तब ही है जब कोई इसे सुने और फिलहाल श्रवण शक्ति के सभी सेंसर और एंटीने कहीं और ही तरफ काम कर रहे हैं उनकी सेंसटिविटी याने संवेदनशीलता आपकी हमारी तरफ कत्तई नहीं है।

मुख्यधारा के मीडिया पर भी भरोसा मत कीजये वो कहानी को कब कौन सा रंग दे दे कि कहानी ही बदल जाये, अगर भरोसा ही करना है तो खुद पर ही कीजिये क्योंकि जिस दिन ये होने लगेगा बाकी सब बेकार होने लगेंगे और जब ये सब बेकार घोषित हो जाएंगे तब ये कचरा हो जाएंगे और हो सकेगा तो इस कचरे को रफा कर फिर ही नया सृजन हो सकेगा।

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