सब हैं किरदार इक कहानी के, वर्ना शैतान क्या फ़रिश्ता क्या-बशीर बद्र

सब हैं किरदार इक कहानी के
वर्ना शैतान क्या फ़रिश्ता क्या-बशीर बद्र
चार दिन का मानसून सत्र दो घंटे 40 मिनट में स्वाहा
=न तो धराली आपदा का सवाल उठ पाया न पंचायत चुनाव, कानून व्यवस्था
-विधानसभा के मानसून सत्र में बिना बहस के ही पारित हो गए नौ विधेयक
अरविंद शेखर
देहरादून। कहते हैं जल्दी का काम शैतान का। इस बार गैरसैंण में चार दिन के लिए आहूत मानसूत्र डेढ़ दिन के भीतर महज दो घंटे 40 मिनट में ही स्वाहा हो गया। उत्तराखंड विधानसभा के इतिहास में पहली बार विपक्ष की काम रोको प्रस्ताव के तहत मत विभाजन की मांग पर अड़ना।
विधानसभा के वेल में लगातार धरना और फिर रात में बिस्तर लगाकर वहीं डेरा जमा लेना। सदन न चलने देने के लिए एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप। राजनीतिक कटुता और आखिरकार कार्यमंत्रणा समिति से नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य व कांग्रेस विधायक प्रीतम सिंह का इस्तीफा। गैरसैंण में कहने भर को हुए मानसून सत्र का कुल मिलाकर यही हासिल रहा। न तो धराली और हर्षिल की भयावह आपदा में लापता और काल के गाल में समाए लोगों और प्रदेश भर में आपदा से हुए नुकसान के बाद राहत बचाव और पुनर्वास का सवाल उठ पाया। न त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के पूरे घटनाक्रम के बहाने लोकतंत्र में हिंसा, धनबल और बाहुबल के जोर पर ही गंभीर चर्चा हुई। मंगलवार और बुधवार दोनो दिन जनता के सवालों का प्रश्नकाल भी हंगामे की भेंट चढ़ गया।
सरकार इस बात के लिए अपनी तारीफ कर सकती है कि उसने इतने कम समय में नौ विधेयक पारित करा लिए कई रिपोर्ट सदन के पटल पर रखीं। विपक्ष इस बात पर अपनी पीठ थपथपा सकता है कि वह धराली, हर्षिल की व आपदा के मुद्दों, पंचायत चुनाव और बिगड़ती कानून व्यवस्था जैसे जनता के मुद्दों पर झुका नहीं और इस तरह से उसने इन मसलों को बहस के केंद्र में लाने की भरसक कोशिश की।
लेकिन इस पूरे नाटकीय घटनाक्रम में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह अक्सर होता है कि सत्ता पक्ष विपक्ष एक अघोषित समझौता कर लेते हैं। इस तरह सदन में एक तरह की नूराकुश्ती होती है। जिसमें विपक्ष अपने कुछ मुद्दों को लेकर हंगामा खड़ा करता है। यह हंगामा सत्ता पक्ष और विपक्ष को गंभीर मसलों पर बहस से बचने का मौका देता है।
इससे दोनो के उद्देश्य हल हो जाते हैं। सत्ता पक्ष के पास बिना बहस के विधेयक पारित करा लेने का सुनहरा अवसर होता है तो विपक्ष को भी सुभीता रहता है कि उसे विधेयकों के मसौदे के पचड़े मे पड़ने के लिए उनका अध्ययन नहीं करना पड़ता। दूसरे उसे यह फायदा होता है कि वह कह सके कि वह तो जनता के अहम मुद्दे उठाना चाहता था मगर सत्ता पक्ष ने उसे उठाने ही नहीं दिए। सत्र के दौरान सत्ता पक्ष भी विपक्ष जैसा रुख दिखाता नजर आया।
बुधवार को सत्ता पक्ष के तमाम सदस्य हाथों में सत्र जल्दी खत्म होने के लिए विपक्ष को कोसने वाले नारे लिखी तख्तियां लिए नजर आए। सत्ता पक्ष हो या प्रतिपक्ष दोनो अपनी जिद पर अड़े नजर आए। दोनो अगर कुछ लचीला रुख दिखाते कुछ झुक जाते तो शायद ये नौबत न आती। अब फिर पुराने ढर्रे पर कुछ दिन दोनो पक्ष एक दूसरे पर सियासी तीर चलाएंगे । फिर अगले सत्र का समय आएगा और फिर से कम या ज्यादा, वही होगा जो इस बार हुआ। विधानसभा सत्र चलाने में जनता की गाढ़ी कमाई जाएगी। बिना बहस के इकतरफा कानून बनेंगे नीतिगत फैसले होंगे।