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यह तो बताना ही होगा क्यों हटे त्रिवेंद्र

सवालः क्या भाजपा संगठन और मॉनीटरिंग सिस्टम रहा फेल

हालात को समझ नहीं पाया भाजपा हाईकमान

कांग्रेस को मिला एक बड़ा सियासी मुद्दा

देहरादून। 2017 में उत्तराखंड के अवाम ने भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया। इसके बाद भी मुख्यमंत्री बदलने की परंपरा को भाजपा ने जारी रखा। अब भाजपा को सूबे के अवाम को इस बात का जवाब देना ही होगा कि आखिर सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की विदाई क्यों करनी पड़ी। सवाल यह भी उठेगा अगर त्रिवेंद्र कहीं गलत थे तो भाजपा संगठन और केंद्रीय नेतृत्व की मॉनीटरिंग चार साल तक क्या करती रही।

भाजपा हो या कांग्रेस राज्य गठन के बाद से दोनों ही सियासी दलों ने मुख्यमंत्रियों को ताश के पत्तों की फेंटा। हालात ये हैं कि स्व. एनडी तिवारी को छोड़कर कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। 2017 में सूबे के अवाम ने भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया। उस समय लगा था कि भाजपा इस बहुमत का सम्मान करेगी और मुख्यमंत्री नहीं बदलेगी। आने वाली 18 को त्रिवेंद्र सरकार के चार साल पूरे होने के मौके पर जश्न की तैयारी थी। अचानक मचे सियासी घमासान के बाद भाजपा ने आखिरकार सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को इस्तीफा देने का फरमान सुना दिया।

सवाल यह है कि अगर इतने प्रचंड बहुमत के बाद भी कोई पार्टी अपने नेता को कार्यकाल पूरा नहीं करने दे रही है तो इसमें अवाम का क्या कसूर है। आने वाले चुनाव में भाजपा को अवाम को इस बात का जवाब भी देना होगा कि आखिरकार त्रिवेंद्र को हटाया क्यों। अगर उनकी कहीं कोई गल्ती थी तो उसे पहले क्यों दुरुस्त नहीं किया गया। सरकार के कामों पर निगाह रखने का काम संगठन का भी होता है, ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या संगठन अपने इस काम में फेल हो गया। भाजपा में एक अंदरूनी व्यवस्था भी है। इसके तहत पार्टी हाईकमान अपनी राज्यों की सरकारों की अपने स्तर से भी मॉनीटरिंग करती है। ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या हाईकमान का यह तंत्र भी अपनी जिम्मेदारी निभाने में सफल नहीं रहा। बहरहाल, त्रिवेंद्र के इस्तीफे के बाद मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को भी सियासी मौका मिल गया है। कांग्रेस आने वाले चुनाव में इसे भी मुद्दा बनाएगी।

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