एक्सक्लुसिव

कहीं तूल न पकड़ जाए लाठीचार्ज का मसला

विधायक महेंद्र भट्ट का आरोप, आंदोलन को दिए गए पैसे

सोशल मीडिया में पत्थरबाजी की तुलना कश्मीर से

देहरादून। गैरसैंण में विधानभवन का घेराव करने जा रहे आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज और जवाबी पत्थरबाजी का मसला तूल पकड़ता दिख रहा है। चमोली विधायक महेंद्र भट्ट सोशल मीडिया में लिख रहे हैं कि ‘इस आंदोलन के लिए पैसे दिए गए हैं’ तो तमाम लोग पत्थरबाजी को ‘कश्मीर की पत्थरबाजी’ से जोड़ रहे हैं।

सोमवार को चमोली के घाट क्षेत्र के लगभग चार हजार लोग गैरसैंण विस भवन का घेराव करने जा रहे थे। बताया जा रहा है कि इन आम लोगों के साथ यूकेडी और कांग्रेस के कार्यकर्ता भी दे। रास्ते में दिवालीखाल के पास पुलिस ने इन लोगों को रोकने की कोशिश की। इस पर दोनों पक्ष आमने-सामने आ गए। आंदोलनकारियों ने बैरियर हटाकर आगे बढ़ने की कोशिश तो पुलिस ने लाठी चार्ज किया। जवाब में आंदोलनकारियों की ओर से भी पत्थरबाजी की गई। यह अलग बात है कि पुलिस ने दावा किया है कि पहले पत्थरबाजी शुरू की गई। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस लाठीचार्ज की घटना की मजिस्ट्रटी जांच का आदेश दिया है।

स्क्रीन शॉट

सोशल मीडिया में चल रहे ट्रेंड पर नजर डालें तो पता चलेगा कि यह मसला तूल पकड़ सकता है। इस मामले में चमोली के विधायक महेंद्र भट्ट की टिप्पणियां खासी वायरल हो रही है। किसी राजीव चौहान ने अपनी एक पोस्ट में लिखा ‘शर्मनाक घटना, जनता इसका जरूर जवाब देगी 2022 में’। इसके जवाब में विधायक भट्ट ने लिखा कि ‘राहुल चौहान जी, जिनके खातों में आज के आंदोलन के लिए पैसे आए और जिन्होंने नगद दिए, मजिस्ट्रेट की जांच में सब सामने आएगा’। इस पर अनूप सिंह लिखते हैं कि ‘माननीय विधायक जी, आंदोलनकारी माताएं, बहनें, युवा साथी क्या पैसे के लिए आंदोलन में गए थे वाह विधायक जी’।

मामला एक विधायक तक ही नहीं है। सोशल मीडिया में सोमवार को हुआ पत्थरबाजी की घटना को कश्मीर की पत्थरबाजी से भी जोड़ा जा रहा है। कोई हिमांशु रौथाण की टिप्पणी है कि ‘चलो कुछ पत्थरबाज यहां भी पैदा हो गए’। रोहन परमार लिखते हैं कि ;पत्थरबाजों को देखकर कश्मीर की याद आ गई’। वहीद कुरैशी ने लिखा कि ‘इन पत्थरबाजों के लिए कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए’। एक ने लिखा कि किस बात के लिए आंदोलन चल रहा कोई बताएगा। इस पर अनुज गुसांई लिखते हैं कि ‘सुवर के बच्चे उत्तराखंड में भी हैं’।

समाजसेवी अखिलेश डिमरी ने अपने अंदाज में इसका प्रतिवाद किया है। अखिलेश तमाम पोस्ट के स्क्रीन शॉट के साथ लिखा है माफ कीजिए साहब, हमारे परिवारों से शरहद की रक्षा के लिए जान की बाजी लगाने वाले फौजी निकलते हैं। अब तुलना कश्मीर के पत्थरबाजों से हो रही है। अब यह जानना बहुत जरूरी है कि पहले पत्थरबाजी हुई या लाठीचार्ज। कहीं ऐसा तो नहीं कि सोची समझी रणनीति के तहत अब ऐसे आंदोलनों को देशद्रोह से जोड़ दिया जाए ?

अब सवाल यह है कि एक विधायक और अन्य लोग सोशल मीडिया में इस तरह की टिप्पणियां करके आखिर साबित क्या करना चाहते हैं।

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