राजनीति

चीमा को आखिर क्यों आई किसानों की याद

भविष्य के लिहाज से सियासी समीकरण हल करने की चर्चा

सीएम त्रिवेंद्र पर लगाया काशीपुर की उपेक्षा का आरोप

अकाली कोटे से भाजपा के टिकट पर जीता है चुनाव

अभी भी शिरोमणि अकाली दल के हैं प्रदेश अध्यक्ष

गठबंधन खत्म होने से टिकट पर मंडरा रहा है खतरा

देहरादून। काशीपुर सीट से विधायक हरभजन सिंह चीमा को अचानक ही क्षेत्र की जनता और किसानों की याद आ गई है। चीमा ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर उनकी बात न सुनने का आरोप जड़ा है। चीमा का यह नया रूप सियासी गलियारों में चर्चा का विषय है। चर्चा है कि भाजपा-अकाली दल गठबंधन टूटने के बाद उन्हें 2022 में टिकट की आस नहीं है। यही वजह है कि किसान बाहुल्य काशीपुर में किसी नए सियासी गणित में जुटे हैं।

उत्तराखंड का पहला आम चुनाव 2002 में हुआ था। उस वक्त भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के बीच गठबंधन था। अकाली दल के प्रदेश अध्यक्ष हरभजन सिंह चीमा ने पंजाब में अपने ताल्लुकातों का इस्तेमाल किया और काशीपुर सीट अकाली दल के खाते में ले आए। चीमा ने पहला चुनाव भाजपा के टिकट पर ही जीता और बाद के तीन चुनाव भी भाजपा के टिकट पर जीतते रहे। अहम बात यह भी है कि इस अवधि में भी वे अकाली दल के उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष बने रहे।

शनिवार को चीमा को अचानक किसानों की याद आ गई। बोले, 2011 में काशीपुर की चीनी मिल बंद हुई थी। किसानों का 25 करोड़ रुपया आज भी मिल पर बकाया है। सीएम से कई बार बात हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। धान खरीद का काम पूरा हुए चार माह से ज्यादा गुजर चुके हैं। चीमा को अब याद आया कि किसानों को धान का पैसा सरकार ने आज तक नहीं दिया है। विधायक को आज अपने क्षेत्र की जनता भी खूब याद आ गई। चीमा ने कहा कि क्षेत्र की समस्याओं पर सीएम से कई बार बात की गई। लेकिन वो इस क्षेत्र की उपेक्षा कर रहे हैं। चीमा का यह नया रूप सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुई। कहा जा रहा है कि किसान आंदोलन को लेकर अकाली दल और भाजपा का गठबंधन टूट चुका है। ऐसे में उऩ्हें भाजपा का टिकट मिलने की आस न के बराबर है, क्योंकि वे अभी भी अकाली दल के प्रदेश अध्यक्ष हैं। ऐसे में किसान और काशीपुर की जनता की उपेक्षा का आरोप लगाकर वो किसी नए सियासी गणित की फिऱाक में हैं।

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