राजनीति

हरदा की सक्रियता के कुछ तो हैं मायने

सियासी दांव-पेच में माहिर कांग्रेसी दिग्गज को समझना नहीं आसान

दिल में अब भी 2017 के चुनाव में हार की कसक

परिवार का कोई सदस्य भी नहीं हो सका एडजस्ट

अभी सियासी अदावत वालों से हिसाब है बाकी

चुनाव न लड़ने की बात करके दिए हैं तमाम संकेत

खुद अध्यक्ष न बन पाए तो चहेते दिलवाएं ये कुर्सी

देहरादून। कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की सियासत को समझना आसान नहीं है। उनकी सक्रियता इस बात का इशारा कर रही है कि उन्होंने कई टारगेट तय कर रखे हैं। 2022 में चुनाव न लड़ने और कांग्रेस के सत्ता में लाने की बात करके उन्होंने ये अहसास कराया है कि 2017 में हार की कसक उनके दिल में है। लगातार भागदौड़ करके वे इस बात का संकेत भी दे रहे हैं कि वे अभी चुके नहीं हैं। सियासी अदावत वालों को भी अपने अंदाज में संकेत दे रहे हैं।

स्व. एनडी तिवारी जैसी शख्सियत से सालों सियासी लड़ने वाले हरीश रावत को कोई हल्के में नहीं ले सकता। इन दिनों हरदा अकेले इतना ज्यादा सक्रिय हैं कि उनके सामने पूरी कांग्रेस बौनी साबित हो रही है। दरअसल, हरदा की इस सक्रियता के तमाम सियासी मायने भी हैं। उन्हें लग रहा है कि उनके पास ये आखिरी मौका है, जिसके जरिए वे तमाम काम कर सकते हैं।

हरदा ने साफ कर दिया है कि वे 2022 में विस का चुनाव नहीं लड़ेगे। लेकिन चुनाव लड़वाकर कांग्रेस को सत्ता में लाएंगे। जाहिर है कि ऐसा कह कर हरदा ने खुद को सीएम की कुर्सी की दावेदारी से अलग कर लिया है। लेकिन सत्ता में वापसी की बात करके यह भी साफ कर दिया कि सब कुछ उनके अनुसार ही होगा। प्रदेश कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व और हरदा के बीच हालात सामान्य नहीं हैं। भाजपा सरकार के खिलाफ पूरी कांग्रेस उतनी सक्रिय नहीं है जितने हरीश रावत अकेले। इससे कांग्रेस आलाकमान को भी संदेश दिया जा रहा है कि 2022 में हरदा ही नैया पार लगा सकते हैं।

बस यहीं से शुरू होती है सियासत। अगर हाईकमान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को बदलता है तो पहला नाम होगा हरीश रावत का। अगर कोई दिक्कत आती है तो हरदा की ओऱ से पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय का नाम आगे किया जाएगा। किशोर के अध्यक्ष बनते ही अदावत वाली नेत्री इंदिरा ह्रदयेश की नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी खतरे में। ऐसे में हरदा की पसंद करन माहरा नेता प्रतिपक्ष हो सकते हैं। इस एक तीर से प्रीतम सिंह और इंदिरा तो गए और माहरा की ताजपोशी हो गई।

बात यहीं तक नहीं दिख रही। लंबे समय तक सत्ता में रहे हरदा अपने परिवार के किसी सदस्य को सियासत में चमका नहीं सके। ऐसे में उनके पास मौका होगा कि वे अपने बेटे और बेटी को सियासत की सीढियों पर चढ़ा सकें। अब देखना होगा कि हरदा की ये सियासत आखिरकार किस मुहिम तक परवान चढ़ती है।

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