हरदा का सियासी दांवः मेरा फैसला पलटें त्रिवेंद्र
हरकी पौडी प्रकरणः स्वीकारी गलती तो सरकार के सामने खड़ा किया संकट
आसान नहीं इस खांटी नेता को समझना
देहरादून। कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत की सियासत अपने ही अंदाज में चलती है। हरकी पौड़ी मामले में हरदा ने जहां बेबाकी से अपनी गलती स्वीकार करके वाहवाही लूटने की कोशिश की। वहीं उनके इस सियासी दांव से सरकार के सामने संकट जैसी स्थिति पैदा होती दिख रही है।
सियासत के मंझे खिलाड़ी हरदा ने आज फिर एक सियासी दांव खेला है। हरदा ने हरिद्वार अखाड़ा परिषद को एक खत दिया है। इसमें कहा गया है कि एनजीटी ने गंगा तट से 200 के मीटर के दायरे में निर्माण ध्वस्त करने का आदेश दिया था। इससे हरिद्वार के तमाम भवनों पर ढहने का संकट आ गया था। तमाम लोगों ने इससे बचाव का रास्ता निकालने का आग्रह किया। इस पर मेरी सरकार ने फैसला किया कि इन भवनों को बचाने के लिए मां गंगा के प्रवाह को एक तकनीकी नाम (गंगनहर) दे दिया जाए। इस आदेश से ध्वस्तीकरण तो रूक गया। लेकिन एक भावनात्मक गलती हो गई। मां गंगा जहां भी जिस रूप में हैं वो गंगा ही हैं। हरकी पैड़ी पर मां गंगा अपने पूर्ण स्वरूप में प्रवाहमान हैं। सरकारों के निर्णय को आने वाली सरकारें बदलती रहती है। यदि आज की सरकार उस वक्त की मेरी सरकार के फैसले (हरकी पैड़ी पर जल प्रवाह को गंगा की जगह गंगनगर नाम देना) को बदलती है तो उन्हें खुशी होगी।
इस पत्र के जरिए हरदा ने तगड़ा सियासी दांव चला है। एक तरफ तो अपनी गलती को बेबाकी से स्वीकार करके उन्होंने वाहवाही लूटने की कोशिश की तो दूसरी ओर मौजूदा सरकार के सामने संकट खड़ा कर दिया है। अब अगर त्रिवेंद्र सरकार उस फैसले तो बदलती है तो हरिद्वार में सैकड़ों भवनों के भविष्य पर सवाल खड़ा हो जाएगा और अगर सरकार कुछ नहीं करती है तो कुंभ मेले के मद्देनजर अखाड़ा परिषद समेत अन्य साधु-संतों के आक्रोश का सामना करना पड़ सकता है।
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