आज से ठीक दो साल पहले गैरसैंण बनी थी ग्रीष्मकालीन राजधानी
…तो ‘सत्ता’ को नहीं भाता गैरसैंण का ‘राग’ !
पहली कैबिनेट करने वाले बहुगुणा ‘नेपथ्य’ में
बिल्डिंग बनवाने वाले हरदा भी दो चुनाव ‘हारे’
घोषणा करने वाले त्रिवेंद्र भी सत्ता से ‘बाहर’
क्या इसी वजह से ‘गैर’ ही रहेगा ‘गैरसैंण’ ?
देहरादून। आज से ठीक दो साल पहले गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का आदेश जारी हुआ था। लेकिन इन गुजरे दो सालों में इस दिशा में एक भी कदम आगे नहीं बढ़ाया गया। हालात पर नजर डालें तो दिखेगा कि जिस भी नेता ने गैरसैंण का राग अलापा उसे सत्ता से बेदखल होना पड़ा है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या इसी वजह से गैरसैंण अब हमेशा ही गैर रहने वाला है।
तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की घोषणा और राज्यपाल की मंजूरी के बाद तत्कालीन मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने आठ जून-2020 को गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने का आदेश किया था। अब यह आदेश कहां हैं, इसकी शायद ही किसी को कोई जानकारी हो। इसे इस तथ्य के प्रकाश में देखें कि ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की दिशा में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया गया है। हालात ये हैं कि 14 जून से गैरसैण में होने वाले विस के सत्र का स्थान भी बदल कर देहरादून कर दिया गया है। इतना ही नहीं त्रिवेंद्र की गैरसैंण को तीसरी कमिश्नरी बनाने की घोषणा का तो आदेश भी जारी नहीं हो सका है।
गैरसैंण से एक मिथक भी जुड़ता दिख रहा है। जिस भी नेता ने गैरसैंण का राग अलापा उसे सत्ता से बेदखल होना पड़ा है। सबसे पहले कांग्रेसी सरकार के मुखिया विजय बहुगुणा ने वहां कैबिनेट की बैठक की थी। कुछ समय बाद उनकी कुर्सी चली गई। दलबदल कर भाजपा में गए बहुगुणा आज सियासी तौर पर नेपथ्य में हैं।
इसके बाद कांग्रेसी सीएम रहे हरीश रावत ने गैरसैंण में विधानसभा भवन समेत अन्य भवनों के निर्माण की दिशा में तेजी से काम कराया। लेकिन 2017 के विस चुनाव में उन्हें दो सीटों से चुनाव हारना पड़ा। इतना ही नहीं हरदा तो 2022 का भी चुनाव हारने के बाद घर पर ही बैठे हुए हैं।
भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी और कमिश्नरी मुख्यालय घोषित किया। राजधानी मामले में तो आदेश भी जारी हो गया। लेकिन हालात ऐसे बने की भाजपा हाईकमान ने बेहद अजीब अंदाज में उन्हें सत्ता की कुर्सी छीन ली। इसके बाद से ही त्रिवेंद्र सियासी तौर पर कोई वजूद नहीं बना पाए हैं। अब सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या इसी मिथक की वजह से गैरसैंण हमेशा ही गैर बना रहेगा। वहां अऱबों रुपये की लागत से खड़े किए गए कंक्रीट के जंगलों का क्या होगा। क्या वक्त के साथ ये आलीशान भवन खंडहर नहीं बन जाएंगे।