तस्वीर का सच

फटी जींसःसीएम के अधूरे बयान से न बनाएं विचार

विरोध और ट्रोलिंग के बीच सोशल मीडिया में छाया उनका पक्ष

पाश्चात्य संस्कृति की तीरथ ने किया विरोध

सवाल यह भी किस मीडिया मैनेजर ने दिया तूल

देहरादून। सीएम तीरथ सिंह रावत रिप्ड जींस को लेकर दिए गए बयान ने खासी चर्चा में हैं। नेशनल मीडिया तक में प्रकरण छाया है। इस बयान पर सीएम को सोशल मीडिया में जहां ट्रोल किया जा रहा है तो उनके पक्ष में लोग लिख रहे हैं। कहा जा रहा है कि सीएम के अधूरे बयान को सुनकर ही कोई विचार नहीं बना लेना चाहिए। सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि इस मामले को राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करने वाला मीडिया मैनेजर कौन होगा।

सोशल एक्टिविस्ट ज्ञानेंद्र कुमार ने फेसबुक में लिखा कि परसों के सम्मेलन में दिया मुख्यमंत्री का पूरा बयान पढ़ लीजिये, फिर कुछ विचार बनाइये। आधा अधूरा वीडियो तो हमने 15 लाख के खाते में आने का भी सुना है और आलू से सोना बनाने का भी। मुख्यमंत्री ने जो पूरी बात कही थी वो यह थी कि वो एक एनजीओ चलाने वाली महिला को फटी हुई जींस पहने हुए देखकर हैरान हुए। वो चिंतित हुए कि वो समाज में किस तरह की मिसाल पेश कर रही थी। उन्होंने कहा, ‘अगर इस तरह के वस्त्र पहनकर महिला समाज में लोगों के बीच जाएगी, उनकी समस्या सुनने,  तो लोग उसको किस निगाह से देखेंगे ? हम अपने समाज, अपने बच्चों को किस तरह की शिक्षा दे रहे हैं? यह सबकुछ घर से शुरू होता है। पिता बेटे को फटी जींस पहनाकर बाहर ले जा रहा है और बेटा फटी जींस पहनकर खुद को बड़े बाप का बेटा मानता है , इसमें शिक्षकों का क्या दोष ? संस्कार तो हम घर से ही दे रहे हैं। हम जो करते हैं बच्चे वही सीखते हैं. अगर बच्चे को घर पर सही संस्कृति सिखाई जाती है तो वो चाहे कितना भी मॉडर्न बन जाए, कभी जिंदगी में फेल नहीं होगा।

एक दूसरी पोस्ट में ज्ञानेंद्र ने लिखा कि  तीरथ सिंह रावत ने महिलाओं के डिस्ट्रेड जींस पहनने पर टिप्पणी क्या कर दी, सूबे भर के ठर्कियों के अंदर का नारीवादी जाग गया। चौड़ी बिंदी ब्रिगेड ने भी हायतौबा शुरू कर दी। यही ठरकी जो डिस्ट्रेड और रिब्ड जीन्स पहनने वाली लड़कियों को राह चलते ऐसे घूरते हैं कि मानो उसने कुछ पहन ही ना रखा हो,  अचानक मां-बेटियों की भावना से भर गये और  पहनावे पर मुख्यमंत्री के कुछ कहे जाने को लेकर व्याकुल हो उठे। कथित फेमिनिस्ट( हालांकि अपने प्रदेश के संदर्भ में मुझे यह शब्द मज़ाक लगता है ) महिलायें जो अपनी शिफॉन साड़ी की सलवटों तक को लेकर चिंतित हो उठती हैं अचानक उनकी चिंता डिस्ट्रेड जीन्स को लेकर हो उठी।

मुख्यमंत्री ने तो यह बात लड़कों के लिये भी कही थी, नारीवादी ठरकी उसे कैसे भूल गये ? फिर मुख्यमंत्री ने यह बात खुद को एनजीओ संचालिका बताने वाली महिला के पहनावे को लेकर कही थी। ज़रा मुझे बता दें कि प्रदेश में कल से कितनी एनजीओ संचालिकायें जो मुख्यमंत्री के यह कहे जाने से आहत हैं , कल से विरोध स्वरूप डिस्ट्रेड जीन्स पहनकर घर से निकलने वाली हैं ?  यह ठीक है कि वो क्या कपड़े पहनेगा या पहनेगी यह व्यक्ति का व्यक्तिगत मसला है और इन कपड़ों के पहनने से समाजिक जीवन में उसे कोई समस्या होती भी है तो वो उसकी शिकायत भी नहीं करेगा या करेगी। सो मुख्यमंत्री को उन्हें , उन्हीं के हाल पर छोड़ देना चाहिये था।  नारीवादी ठरकी खुद की पत्नी, बहन या बेटी को ऐसे परिधान में घर से बाहर भेजने वाले हैं जो मुख्यमंत्री के इस बयान से चिंतातुर हो उठे हैं ?  हां , यह तो माना जा सकता है कि  ठरकीजन मुख्यमंत्री के इस बयान से क्रोधित हों क्योंकि वो सिवाय अपने परिवार की लड़कियों के बाकी सभी को ऐसे ही कपड़ों में देखना चाहते हैं। किंतु आहत एनजीओ संचालिकायें, फेमिनिस्ट या नेत्री  विरोध में डिस्ट्रेड जीन्स पहनकर मार्च करेंगी , लगता तो नहीं। फ़िज़ूल की बातों पर नाटक छोड़ो वरना राज्य स्यापाकारी समूह की सदस्यता ले लो।

समाजसेवी अखिलेश डिमरी ने तो एक नया ही सवाल उठा दिया है। डिमरी लिखते हैं कि सवाल ये है कि इस मुद्दे को राष्ट्रीय मीडिया के पटल पर प्रस्तुत करने के लिए कौन मीडिया मैनेजर होंगे …? कहीं ऐसा तो नहीं कि कुछ समय पहले तो मीडिया मैनेज न कर पाए लोग यहां सफल हो गये। पर इन सब के बीच बातें कम काम ज्यादा वाले चार साल भी भुला दिए गए हैं यह तो तय हुआ। हे गाड़ गदरों वाले विपक्ष काश कि इतनी गर्मजोशी से स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, सड़क आदि आदि मुद्दे उठाए होते, काश कि इब्जे में बंगला न लिया होता काश कि फर्जी तारीफें न कि होती, काश कि आवाम के मुद्दे भी इसी तरह उठाये होते। वैसे तो थोड़े ही दिनों में कामों की तारीफ ही हो रही थी पर ….? फिर भी भैजी को सलाह है कि बाबुओं से भी बच के रहना और सोशल मीडिया के वीरों से भी बच के रहना। बोले तो नजर बनाए रखें नजदीकी के चक्कर में कबाड़ा भी सोशल मीडिया ही करता है।

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