तस्वीर का सच

उत्तराखंड में विशेषज्ञ डॉक्टरों की 50 फीसदी कमी

पर्वतीय जिलों बाल रोग विशेषज्ञ महज नाम मात्र के

फोरेंसिक, स्किन,साइकेट्रिस्ट डॉक्टर सबसे कम

चंपावत में आई सर्जन के तीन सभी पद खाली

देहरादून में 6 पद स्वीकृत और 11 नियुक्तियां

देहरादून। एसडीसी फाउंडेशन ने उत्तराखंड में विशेषज्ञ डॉक्टरों की स्थिति पर किए गए अध्ययन “स्टेट ऑफ स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स इन उत्तराखंड 2021” का अंतिम भाग जारी किया है। अध्ययन में पाया गया कि राज्य में फोरेंसिक, स्किन और साइकेट्रिस्ट डॉक्टर सबसे कम उपलब्ध हैं। विशेषज्ञ डॉक्टरों की संख्या स्वीकृत पदों की आधी ही है। पहाड़ के जनपदों में बाल रोग विशेषज्ञ नाम मात्र के ही है। कोविड की तीसरी लहर में बच्चों में ज्यादा संक्रमण होने की आशंका के बाद भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

संस्था के अध्यक्ष अनूप नौटियाल ने बताया कि अध्ययन में पाया गया कि प्रदेश में 25 डॉक्टरों के स्वीकृत पदों में से केवल एक फॉरेंसिक विशेषज्ञ उपलब्ध है। इसके अलावा स्किन के 32 डॉक्टरों के स्वीकृत पदों में से चार और साइकेट्रिस्ट के मंजूरशुदा 28 पदों में से चार की नियुक्तियां की गई हैं। राज्य में कुल मिलाकर विशेषज्ञ डॉक्टरों के 1147 स्वीकृत पदों में से 493 पदों पर ही नियुक्तियां की गई हैं। आरटीआई में मिली सूचना के अनुसार 30 अप्रैल, 2021 तक राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 654 पद खाली हैं।

एसडीसी की अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि जिलों के बीच विशेषज्ञ डॉक्टरों के वितरण के बीच एक बड़ा असंतुलन है। उदाहरण के लिए चम्पावत में आई सर्जन के तीन स्वीकृत पदों में से एक पर भी नियुक्ति नहीं की गई है जबकि देहरादून मे छह स्वीकृत पदों के मुकाबले 11 आई सर्जन कार्यरत हैं। नौटियाल कहते हैं कि इस अध्ययन के बाद हम यह कहने की स्थिति में हैं कि राज्य में हेल्थ कर्मचारियों के वितरण से संबंधित आईपीएचएस ढांचे पर फिर से विचार करने की जरूरत है। अध्ययन से स्पष्ट है कि मैदानी जिलों की तुलना में पर्वतीय जिलों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की उपलब्धता बहुत कम है। हमें विशेषज्ञ डॉक्टरों को सभी जिलों में समान रूप से वितरित करने की रणनीति पर काम करने की जरूरत है।

अनूप नौटियाल के अनुसार पर्वतीय जिले बाल रोग विशेषज्ञों की भारी कमी से भी जूझ रहे हैं। पौड़ी में 22 में से पांच, अल्मोड़ा में 18 में से चार, पिथौरागढ़ में आठ में से दो, चमोली में 8 में से एक और टिहरी में 14 में से सिर्फ एक बाल विशेषज्ञ उपलब्ध हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञों के बात करें तो बागेश्वर में 5 में से 1, पौड़ी में 22 में से 4, टिहरी में 15 में से 2 और चमोली में 9 में से 1 स्त्री रोग विशेषज्ञ उपलब्ध है। चमोली और चंपावत जिलें में एक भी सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ नहीं है जबकि पौड़ी में स्वीकृत 14 पदों के मुकाबले केवल 1 सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं।

 फाउंडेशन के रिसर्च एंड कम्युनिकेशंस हेड ऋषभ श्रीवास्तव कहते हैं कि राज्य के पर्वतीय जिलों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढांचे की भी भारी कमी है। राजनीतिक नेतृत्व और नौकरशाहों को इस तरफ ध्यान देने में बेहद जरूरत है। आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड राज्य में केवल एक फारेंसिक विशेषज्ञ देहरादून में उपलब्ध है, जबकि 25 पद राज्यभर में स्वीकृत हैं। देहरादून के अलावा राज्य के किसी भी जिले में फॉरेंसिक स्पेशलिस्ट नहीं है। इसी तरह राज्य में स्किन स्पेशलिस्ट के 32 पद स्वीकृत हैं, लेकिन सिर्फ 4 की ही नियुक्ति की गई है। एसडीसी फाउंडेशन के एसोसिएट रिसर्च एंड एडवोकेसी विदुष पांडे कहते हैं कि कोविड के दौर में राज्य में जो स्थितियां बनी, उसके बाद स्वास्थ्य सेवाओं संबंधी ढांचे में बहुत ध्यान देने की जरूरत है। यह जांच का विषय है कि राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भर्ती ने ऐसी लापरवाही क्यों की गई।

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