एक्सक्लुसिव

पंतनगर के सिडकुल में उगाही से गैंगवार की आशंका!

सियासी संरक्षण की संभावनाओं के चलते हालात खासे गंभीर

रूपेश कुमार सिंह

रुद्रपुर। पंतनगर औद्योगिक आस्थान में नेता, अफसर, माफिया, अपराधियों का गठजोड़ सिडकुल को गैंगवार की ओर ले जा रहा है। ठेकेदारी में वर्चस्व का खेल घिनौने रूप से सामने आने लगा है। सिडकुल के अंदर एक ओर जहां श्रमिक असंतोष बढ़ रहा है, वहीं नेता, जनप्रतिनिधि, माफिया, अफसर, ठेकेदार और अपराधियों के बीच भी मुनाफे को लेकर जंग तेज होने लगी है।

हालिया मामले में जिस तरीके से कमीशन खोरी और कारोबार में हिस्सेदारी को लेकर ऑडियो वायरल हो रहा है, उससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सिडकुल के अंदर सब कुछ सामान्य नहीं है। भविष्य के लिए भी यह अच्छा संकेत नहीं है। क्षेत्रीय विधायक शिव अरोड़ा पर आरोप और सिडकुल के अंदर हिस्ट्रीशीटरों की भूमिका भी कई सारे संदेह पैदा कर रही है।

2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की अगवाई में रुद्रपुर के नजदीक पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय की बेशकीमती हजारों एकड़ जमीन पर सिडकुल की स्थापना इसलिए की गई थी कि उत्तराखंडियों को राज्य में ही रोजगार मिले और पलायन पर रोक लग सके।

पूँजी केन्द्रित बेतरतीब विकास से जहां एक ओर लोगों को काम मिला तो दूसरी ओर शोषण, उत्पीड़न, लूट खसोट, दलाली के चलते पूरा रुद्रपुर अशांत हो गया। वर्चस्व के लिए हत्या और अस्तित्व के लिए आत्महत्या का सिलसिला शुरू हो गया। मुनाफे में हिस्सेदारी की लड़ाई सिडकुल को गैंगवार की ओर ले जा रही है। यदि समय रहते पुलिस ने ठोस हस्तक्षेप या कार्यवाही नहीं की तो सिडकुल में कभी भी कोई अप्रिय बड़ी वारदात हो सकती है।

हिस्ट्रीशीटर राजेश सिंह और भाजपा नेता किरण विर्क के बीच बातचीत का वायरल ऑडियो कई सफेदपोशो को संदेह के दायरे में खड़ा करता है। सिडकुल में मुनाफे का घिनौना कारोबार किस तरह से चल रहा है, इसकी बानगी मात्र है यह वायरल ऑडियो।

सूत्र बताते हैं कि सिडकुल की हर कंपनी में प्रत्येक काम का कमीशन तय है। यह कमीशन नेता से लेकर जनप्रतिनिधि, अफसर से लेकर माफिया, ठेकेदार से लेकर अपराधियों तक बंटता है। सूत्र बताते हैं कि नेता, अफसर, माफिया, दलाल, ठेकेदार व अपराधियों का गठजोड़ ही सिडकुल को संचालित कर रहा है।

मैनपावर सप्लाई से लेकर स्क्रैप के धंधे तक में अपराधियों की दबंगई, जनप्रतिनिधियों की नेतागिरी और माफियाओं, दलालों व ठेकेदारों का अपना कानून चलता है। कारोबार में वर्चस्व की लड़ाई व कमिशन में हिस्सेदारी का गोरख धंधा अब अपने भयावह रूप में सामने आ रहा है।

सिडकुल के अंदर बात तो बुनियादी सुविधाओं की होनी चाहिए थी। मजदूरों और श्रमिकों के अधिकार और सुरक्षा की होनी चाहिए थी। सड़क, पेयजल, शौचालय, सीसीटीवी कैमरों की होनी चाहिए थी। जो फैक्ट्रियां बंद पड़ी हैं उनको दोबारा से चालू करने की बात होनी चाहिए थी। लेकिन सिडकुल के अंदर इस समय बात हो रही है अपराधियों की, ठेकेदारों की, हिस्ट्रीशीटरों की, सफेद पोश नेताओं की। और जो सिडकुल को लूट रहे हैं उनकी बात हो रही है। ऐसे में सिडकुल अपने लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर पाएगा? कैसे सिडकुल गतिमान हो पाएगा और कैसे सिडकुल उत्तराखंड के विकास में अपना योगदान दे पाएगा? यह बड़ा सवाल है।

सिडकुल में अवैध वसूली और काम पर एकाधिकार के मामले में चार पक्ष सामने आ चुके हैं। किरन विर्क, राजेश सिंह, विशाल धामी और विधायक शिव अरोड़ा। इसके अलावा थाने में दी गई तहरीर में उजागर दर्जनों नाम के आपसी संबंधों को जांचना भी जरूरी है। मामले को दबाने की बड़ी राजनीतिक कोशिश भी हो रही है। लेकिन क्या वायरल ऑडियो पर पुलिस का गंभीरता से संज्ञान न लेना जायज है?

जांच गहरी जाएगी तो परत दर परत हमाम में नंगों के चेहरे आएंगे सामने

सिडकुल में भूचाल मचाने वाले वायरल ऑडियो की जांच जरूर होनी चाहिए। दूध का दूध और पानी का पानी होना चाहिए। तभी यह सिडकुल सुचारू रूप से गतिमान हो पाएगा। जो सफेद पोश हैं वे भी बेनकाब होने चाहिए और जो आपराधिक किस्म के लोग कारोबार में हिस्सेदारी और वर्चस्व के लिए सिडकुल को गैंगवार की ओर ले जाना चाहते हैं उनके मंसूबों पर भी पानी फेरा जाना चाहिए। एक बात और सिडकुल के अंदर जब तक श्रमिक और मजदूर असंतोष समाप्त नहीं होता है, तब तक भी सिडकुल शान्तिपूर्ण तरह से अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाएगा।

 

 

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