गजबः स्पीकरों को कार्यकाल के अंत में लगा स्टाफ कम
कुतर्कःजरूरत के आधार पर कीं भर्तियां
किसी के भी प्रमाणपत्र की नहीं कराई जांच
देहरादून। अपने-अपने समय में मनमानी भर्तियां करने वाले पूर्व स्पीकरों का कहना है कि जरूरत के आधार पर ऐसा किया गया है। यह पूरी तरह से कुतर्क ही है। इसे इस तथ्य के प्रकाश में देखें कि स्पीकरों ने ये भर्तियां अपना कार्यकाल समाप्त होने से ऐन पहले कीं हैं। सवाल यह है कि क्या पांच साल उन्हें यह पता ही नहीं चला कि विस में स्टाफ कम है। अहम बात यह भी है कि भर्ती होने वालों के प्रमाणपत्रों की जांच तक नहीं करवाई गईं।
मनमानी नियुक्तियों को लेकर सवालों के घेरे में आए पूर्व स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेमचंद अग्रवाल यह कह रहे हैं कि विस में स्टाफ की जरूरत थी। लिहाजा उन्होंने ये भर्तियां कीं हैं। लेकिन दोनों का यह कहना महज एक कुतर्क ही है। इसे इस तथ्य के प्रकाश में देखें कि दोनों ने ये भर्तियां अपना-अपना कार्यकाल समाप्त होने से ऐन पहले कीं हैं।
सवाल यह है कि विस के मुखिया रहे नेताओं को पांच साल यह पता ही नहीं चल पाया कि उनके पास स्टाफ कम है और कामकाज प्रभावित हो रहा है। जब पांच साल तक काम होता रहा तो चुनाव आचार संहिता लागू होने से ऐन पहले ही कीं ये मनमानी सवालों के घेरे में आना स्वभाविक ही है। किसी ने भी यह समझने की कोशिश भी नहीं कि इतने ज्यादा कर्मियों के बैठने के लिए छोटे से विधानभवन में जगह भी नहीं है। साफ जाहिर है कि दोनों का यह कहना कि जरूरत के आधार पर भर्तियां कीं गईं, महज एक कुतर्क ही है। इन भर्तियों के पीछे वास्तविक मंशा कुछ और ही रही होगी।
इन भर्तियों में एक बड़ी बात यह भी सामने आ रही है कि कृपा पात्रों को नौकरी तो एक सादे आवेदन पर दे दी गई। लेकिन इनके प्रमाणपत्रों की सत्यता जानने का कोई भी प्रयास नहीं किया गया। ऐसे में आशंका इस बात की भी है कि अगर जांच की गई तो कहीं अध्यापकों की तरह ही कइयों के अभिलेख फर्जी पाए जाएं।